१. अंतरंगा शक्ति यानी स्वयं कृष्ण
अंतरंगा ३ प्रकार की है
अ-सत=संधिनी=उनका धाम=वृन्दाबन.
ब-चित-=संवित=श्रीगुरुदेव=संत=विद्वान
स-आनंद=ह्लादिनी=श्रीराधा
२, बहिरंगा शक्ति = माया
माया २ प्रकार की है
अ-गुण माया = सत्व रज तम -त्रिगुणात्मिका प्रकृति
ब-जीव माया-यह जीव को अपने 'नित्य कृष्ण दास' स्वरुप को भुलाती है
और जीव कृष्ण से विमुख , 'मै मेरा' रुपी माया के सम्मुख हो जाता है
३. तटस्था शक्ति = जीव
तट = किनारा. जीव किनारे पर बैठा है
एक और बहिरंगा शक्ति माया है, जो इसे कृष्ण से विमुख करती है
दूसरी और अंतरंगा शक्ति गुरुदेव = संत = विद्वान हैं, जो इसे
कृष्ण के सम्मुख करते हैं.
जीव में इतनी शक्ति भी है, समझ भी है,
वह जिस और जाना चाहे जा सकता है और जो पक्की तरह
चाहते हैं वे जाते भी हैं.
हम बात तो कृष्ण की करते हैं, जाते माया की और ही हैं
बात भी माया की ही मानते हैं.
सद्गुरु संत के पास भी माया की सिद्धि के लिए जाते हैं.
जय श्री राधे
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Tele : 9219 46 46 46 : 12noon - 6
made to serve ; GOD thru Family n Humanity
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