Saturday, 20 August 2011

13. PREM YA MOH?


PREM YA MOH?

किसी वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा का नाम है - काम
उस वस्तु के प्राप्त न होने पर क्रोध होता है
उस वस्तु को और अधिक - अधिक चाहने का नाम लोभ है
ये वस्तुएं कम न हों, नष्ट न हों, यह भाव मोह है 
उन वस्तुओं के कारन जो श्रेष्ठत्व का भाव है, वह है मद 
जितनी वस्तुएं या धन संपत्ति मेरे पास है,
उतनी दुसरे के पास क्यों है-यह है मात्सर्य
प्रेम इन सबसे अलग एक श्रेष्ठतम भाव है 
प्रेम और मोह का दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं
मोह में नष्ट न होने का भाव है
प्रेम में अपने बारे में तो कुछ सोचना ही नहीं है
हमेशा और हमेशा प्रियतम के हित, सुख की बात करनी है
अपनी बात आते ही प्रेम काम बन जाता है
एक और बहुत पक्की बात है जो ९९.९% लोगों को समझ ही नहीं आती है
यदि कृष्ण से हो तो वह है प्रेम,
किसी भी और से हो तो वह है काम
क्योंकि प्रेम के विषय एकमात्र श्रीकृष्ण ही हैं.
जय श्री राधे
-दासाभास गिरिराज

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