कर्म
माया
जीव
ईश्वर
ये ५ तत्त्व अनादि हैं.
अर्थात ये कब शुरू हुए : यह कोई नहीं पता
कर्म ३ प्रकार के हैं
१. संचित , २. क्रियमाण, ३.प्रारब्ध
जो कर्म हम इस समय कर रहे हैं- वे क्रियमाण
इनमे से कुछ का फल इसी जन्म में मिल जायेगा, और कुछ हमारे खाते में सेव हो जायेंगे - वे संचित
अगला जन्म देते समय संचित में से जो कर्म हमें भोगने केलिए दिए जायेंगे वे प्रारब्ध
जन्म जन्मान्तर यही क्रम चलता है.
कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है.
एक बात सिद्ध है कि प्रारब्ध के लिए हम ही जिम्मेदार हैं, भगवान् नहीं,
दूसरी बात यह सिद्ध है कि हम हमेशा अच्छे कर्म करें, क्योंकि आज नहीं तो कल
इनका फल हमें भोगना ही पडेगा
जय श्री राधे
-दासाभास डा गिरिराज
BABA KA CHELAA HEMANG NANGIA |
No comments:
Post a Comment