गोपियों की न कोई पूजा थी, न पद्धति थी
'गोपी प्रेम की ध्वजा'
यानी गोपियाँ प्रेम का ही मूर्तिमान रूप थीं.
पहले अनेक बार कहा जा चुका है की
जो कृष्ण से हो वाही प्रेम - बाकी सब काम
बस वो तो कृष्ण से केवल और केवल प्रेम करती थीं
वह यदि श्रृंगार करती थी तो इसलिए की कृष्ण हमें देख कर प्रसन्न होंगे
कृष्ण को जो जो अच्छा लगे वाही करती थीं, इससे उनका चाहे कुल नष्ट हो या धर्म या कुछ भी.
विशुद्ध 'कृष्ण सुखैक तत्पर्यमयी' भक्ति करती थीं.
उनका सम्पूर्ण रूप, रस, आचरण, ध्यान, पूजा कुल, धर्म, अधर्म, सब कुछ
जय श्री राधे
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Tele : 9219 46 46 46 : 12noon - ६
made to serve ; GOD thru Family n Humanity
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