Wednesday, 29 November 2017

Hanji hanji kahna Isi gaanv me rahna

Hanji hanji kahna Isi gaanv me rahna

हांजी हांजी कहना
इसी गांव में रहना

भक्ति या भजन का प्रथम लक्षण है अपने आप में दीनता का भाव आ जाना ।

इसका एक कारण भी है ।
भक्ति क्या है ।
भक्ति है श्रीकृष्ण चरणों की सेवा,
वैष्णवों की सेवा
तुलसी की सेवा
गुरुदेव की सेवा
ग्रंथ की सेवा
अर्थात सेवा सेवा सेवा सेवा

जब भक्तों का मुख्य कार्य सेवा हो गया तो भक्तों का स्वरूप क्या निकल कर आया । एक सेवक का ।। कहा भी है कि जीव श्रीकृष्ण का नित्य दास है ।

और जब हम एक सेवक हैं, हम एक नौकर हैं, हम एक दास हैं तो फिर अकड़ किस बात की । नौकर या दास या सेवक तो दीन ही होता है

हांजी हांजी कहना इसी गांव में रहना । सेवक में अभिमान कैसा,  सेवक का गुमान कैसा, सेवक की श्रेष्ठता कैसी, वह तो सभी का सेवक ही है सभी की सेवा ही करनी है ।।

यह भाव सदैव एक वैष्णव को पुष्ट करना चाहिए यदि यह भाव दृढ़ता से पुष्ट हो जाएगा तो आप सच मानिए भक्ति का जो प्रथम लक्षण वैष्णवोंमें आता है वह आता है दैन्य । वह आ जाएगा ।

भक्ति का प्रथम लक्षण जो वातावरण में आता है वह आता है क्लेषघ्नी । समस्त क्लेशों को नष्ट कर देती है सच्ची भक्ति ।

आजकल उल्टा हो रहा है भक्ति प्रारंभ हुई और घर में कलेश प्रारंभ हुए । यदि ऐसा है तो हम भक्ति या भजन नहीं कर रहे हैं । हम भक्ति के नाम पर नाटक, अहंकार पोषण एवं अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन कर रहे हैं ।

कर के देखिए अंतर महसूस होगा ।
समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

धन्यवाद!!
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Tuesday, 28 November 2017

Hamara Target Kya



✔ *हमारा टारगेट क्या* ✔

↪सृष्टि में विविधता है और विविधता सृष्टि का प्रथम महत्वपूर्ण गुण है । दो पत्ता भी एक सा नहीं है दो मनुष्यों की शक्ल भी एक सी नहीं है ।

 ↪इसी विविधता के कारण कुछ मनुष्य सदाचार परोपकार स्वधर्म पालन में लगे हुए हैं और उनका टारगेट संभवत यश है ।

↪कुछ मनुष्य धनोपार्जन में लगे हुए हैं येन केन प्रकारेण धनोपार्जन करना उनका टारगेट धन है।

 ↪कुछ मनुष्य येन-केन-प्रकारेण अपनी कामनाओं की पूर्ति में लगे हुए हैं यह कामना यह वासना यह इच्छा वह इच्छा ।

↪कुछ लोग ऐसे हैं जो इस जीवन के दुखों से परेशान हो गए हैं वह इस संसार में बार-बार आने जाने से मोक्ष चाहते हैं ।

↪इन सब के अतिरिक्त हम आप जैसे कुछ लोग हैं जो भक्ति में लगे हुए हैं भजन में लगे हुए हैं कृष्ण चरण सेवा चाहते हैं भगवान की कृपा चाहते हैं भगवान की कृपा से भगवान की चरणों की परमानेंट सेवा चाहते हैं ।

↪अब बात यह है कि जो जो चाहते हैं उस में लगे हुए हैं हम लोग यदि भजन भक्ति चाहते हैं तो हम यह समझ लें कि हमारे जीवन का जो मुख्य उद्देश्य है भजन । भक्ति । हमारा जीवन, कम से कम हमारा जीवन भजन भक्ति के लिए मिला है ।

 ↪और यदि भजन भक्ति के लिए जीवन मिला है तो सबसे अधिक प्राथमिकता हम भजन भक्ति को दें अधिक समय भजन भक्ति को दें और संसार में जो दायित्व हमारे ऊपर हैं उन्हें अनासक्त होते हुए निभाते रहे और संतुलन रखें । जो विभिन्न विषयों में संतुलन रखकर साधते हुए चलता है वही साधु है ।

↪फिर भी जैसे किसी का टारगेट धन है किसी का टारगेट यश है किसी का टारगेट कामना है किसी का टारगेट मोक्ष है । हमारा टारगेट भजन है, भक्ति है ।

↪यह सदा स्मरण रहे तो हमारे प्रयास भी इस ओर अधिक से अधिक होने लगेंगे ।

जय श्री राधे जय निताई
समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

Friday, 24 November 2017

Gyan Kriya Bal


ज्ञान
क्रिया
बल

ये तीन स्थिति हैं
सर्व प्रथम भजन का ज्ञान प्राप्त होता है,
जानकारी होती है

जानकारी के बाद भजन में लगते हैं
क्रिया, करना प्रारम्भ करते हैं

क्रिया करने से बल, आत्मविश्वास
होता है । तभी व्यास जी कहते हैं

व्यास भरोसे कुंवरि के
सोवत पांव पसार

अथवा
हम श्री राधाजू के बल अभिमानी

समस्त वैष्णवजन को दासाभास का प्रणाम


समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn 

Thursday, 23 November 2017

Tentees Pratishat


तेतीस प्रतिशत

यह बात कितनी शास्त्रीय है यह मैं नहीं जानता लेकिन सरल भाषा में सहज में हमें समझ आ जाए इसलिए इस प्रकार की प्रस्तुति कर रहा हूं ।

श्रीकृष्ण की अनंत शक्तियों में से तीन प्रमुख शक्तियां हैं । एक हैं आह्लादिनी शक्ति श्री राधा रानी ।

श्री राधारानी की कृपा मिल जाए, श्री राधा रानी आश्रय तत्व है । श्री राधा रानी हमारी स्वामिनी है और कृष्ण हमारे स्वामी है ।

श्री राधा रानी एवं गोपियों के अनुगत में हमें कृष्ण को सुख देना है, प्रिया लाल की चरण सेवा प्राप्त करनी है । इस बात में यदि निष्ठा बन जाए तो समझ लीजिए 33% कृष्ण मिल गए ।

कृष्ण की एक और शक्ति है संवित् शक्ति । ज्ञान शक्ति । जिसका स्वरुप हैं श्री गुरुदेव और समस्त वैष्णव ग्रंथ ।

यदि ग्रंथों में निष्ठा हो जाए, नियमित रुप से प्रामाणिक ग्रंथों का अध्ययन किया जाए और श्री गुरुदेव में यह निष्ठा हो जाए कि यह भगवान की ही एक शक्ति हैं ।

इनकी सेवा से  , इनकी कृपा से हमें कृष्ण चरण सेवा प्राप्त हो जाएगी और गुरुदेव भी हम से प्रसन्न होकर हमें आत्मसात कर लें तो समझो 33% और कृष्ण मिल गये ।

एक और शक्ति है श्रीकृष्ण की जिसे कहते हैं संधिनी । संधिनी माने धाम  ।

जो कृष्ण का धाम है श्री वृंदावन । यदि वह मिल जाए, श्रीधाम में वास मिल जाए और वास के साथ-साथ श्री विग्रह सेवा, संत साधु जन संगति श्रीमद् भागवत आदि ग्रंथों के अर्थों का आस्वादन और नाम का आश्रय धाम में यदि मिल जाए और धाम के प्रति यह निष्ठा दृढ़ हो जाए के धाम मिल गया तो कृष्ण मिल गए ।

 क्योंकि धाम साधन नहीं है । धाम साध्य है । नाम भी साध्य है तो समझो कि 33 परसेंट और मिल गया ।

यह तीनों यदि प्राप्त हो जाए तो समझो कृष्ण मिल गए । इसमें से पहले कुछ भी मिले बाद में कुछ भी मिले ।

अपनी निष्ठा और उपासना से प्रयास करके यह तीन निष्ठाएं यदि दृढ हो जाए तो कृष्ण प्राप्ति लगभग हो गई ।

और कृष्ण प्राप्ति के बाद यदि निष्ठां सहित आचरण किया जाए तो कृष्ण प्रेम और कृष्ण चरण सेवा भी समझो मिल ही गई ।

समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम

समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn 

Saturday, 18 November 2017

Viray Sahayak hi he


विरह सहायक ही है

हम लोग प्रायः संयोग या मिलन को ही श्रेष्ठ मानते हैं और मिलन में ही आनंदित होते हैं

यदि थोड़ा सा भी सूक्ष्मता से देखेंगे तो मिलन में आनंद तो है ही लेकिन लगातार एक साथ रहते हुए या मिलन की स्थिति में रहते हुए धीरे-धीरे एक उकताव सा आता है

उस उकताव को कम करने के लिए  विरह बहुत अच्छा कार्य करता है । जब कोई अपना प्रिय सदस्य सदा साथ रहे तो उसके प्रति स्नेह और आसक्ति में धीरे-धीरे कमी तो होती है, अपितु उसके दोष भी दिखने लगते हैं ।

वही अपना प्रिय यदि एक माह के लिए बाहर चला जाए और फिर एक माह बाद वह आए तो उससे मिलन की जो स्थिति और आनंद होता है वह कई गुना बढ़ जाता है ।

इसलिए आनंद वृद्धि के लिए विरह बहुत ही आवश्यक है । विरह के बाद या वियोग के बाद जो संयोग होता है उसमें आनंद अतिवृद्धि को प्राप्त होता है ।

और विरह के कारण दर्शन न होते हुए अपने प्रिय से सदा ही वह मिलने की ललक लगी रहती है उस ललक से प्रेम वृद्धि होती है, आनंद वृद्धि होती है ।

इसीलिए ही ठाकुर जी की लीलाओं में भी संयोग और वियोग दोनों ही होते हैं । अनेक बार तो ऐसी स्थिति हो जाती है कि संयोग में भी साथ साथ होते हुए भी ऐसा लगता है कि प्रियतम गए ।

शास्त्र कहता है कि जब कोई हमारे पास होता है तब हमारा यही चिंतन होता है कि अब यह कल चला जाएगा , अब यह कल चला जाएगा , अब यह कल चला जाएगा ।

और जब कोई दूर होता है तब सदा ही यह चिंतन होता है कि अब बस एक दिन में वह आने वाला है  । एक दिन में आने वाला है ।

आने के बारे में सोचने में आनंद अधिक होता है और जाने के बारे में सोचने में आनंद का अभाव होता है । अतः विरह बहुत ही महत्वपूर्ण है और आनंद का एक आवश्यक स्रोत है ।

समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Thursday, 16 November 2017

Apne se shreshth ya kanishth



✔ *अपने से श्रेष्ठ या कनिष्ठ* ✔

▶ शास्त्र म् कहा गया है कि सदा ही

1। अपने से ऊँचे स्तर के वैष्णव का संग करो । परिणाम स्वरूप आप भी ऊँचे की तरफ बढ़ोगे

2। जो स्निग्ध हो । उसका संग करो । वो चिड़चिड़ायेगा नही दासाभास की तरह, अपितु प्रेम से आपको समझायेगा

3 । सजातीय अर्थात जो उपासना, जो सम्प्रदाय, जिस भाव के आप उपासक हो, वह भी उसी भाव आदि का हो, अन्यथा विवाद हो सकता है

▶ ये तो है भजन की बात । ऐसा करने से भजन बढ़ेगा ही । और भजन ही बढ़ाना है , लौकिक विषय को बढ़ाना नही, अपितु छोड़ना है । निकलना है इस जाल से ।

▶ इसलिए लौकिक जगत में सदा ही अपने से छोटे स्तर के लोगों के साथ रहो । इससे सदा संतुष्टि बनी रहेगी ।

▶ यदि अपने से बड़े लोगों के साथ उठेंगे बैठेंगे तो उनकी समृद्धि, उनके स्तर, उनकी विलासिता को देखकर हमारे मन में भी वैसा बनने की इच्छा जागृत होगी ।

▶और कहीं ना कहीं हम भी वैसा बनने का प्रयास करेंगे । यदि वैसा बन गए तो इस जंजाल में फंसते जाएंगे और भजन छूटता जाएगा ।

▶ यदि नहीं बन पाए तो मन में खिन्नता रहेगी और एन केन प्रकारेण वैसा बनने का संकल्प मन में रहेगा जो मन को चंचल करेगा ।

▶अतः श्रेष्ठ भजन आनंदी का संग करने से भजन बढ़ेगा और श्रेष्ठ लॉकिंक सुख सुविधा वाले का संग करने से लौकिक सुख सुविधा बढ़ेगी ।

▶लेकिन एक वैष्णव यह जानता है कि लौकिक सुख सुविधाओं में आनंद नहीं है ।क्लेश ही क्लेश है । यह छोड़नी ही है । और इनको छोड़ने पर जोर नहीं देते हुए, भजन को पकड़ने पर जोर देना है ।

▶जैसे-जैसे भजन बढ़ता जाएगा यह चीजें छूटती जाएगी । अतः एक वैष्णव के लिए संग श्रेष्ठ वैष्णव का और लौकिक संग अपने से छोटे  स्तर वाले व्यक्ति का ।

▶इससे मन भागेगा नहीं और संतुष्ट रहेगा ।
परिणाम स्वरुप भजन में लगे रहेंगे हम और आप ।

▶समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम


🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚

 🖊  लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Tuesday, 14 November 2017

Mukti or Bhakti


✔ *मुक्ति और भक्ति* ✔

▶ अजामिल के चरित्र में बहुत ही सूक्ष्म चिंतन है । अजामिल ने अपने पुत्र का नाम नारायण रखा । अंतिम समय में जब उसे भयानक शक्लों वाले यमदूत लेने आए तो पता नहीं किस कारण से उसको वह दिखाई दिए ।

▶ हमें आपको दिखाई नहीं देते हैं । उनसे भय के कारण उसने अपने पुत्र को नाम लेकर पुकारा । नारायण नारायण ! मुझे बचाओ, मुझे बचाओ ।

 ▶ नारायण कहते ही विष्णु दूत वहां आ गये और उन्होंने यह काम किया कि यमदूतों को वहां से भगा दिया ।

▶ यमदूत यदि उसको ले जाते तो उसके पाप पुण्य भुगवा के पुनः उसे किसी योनि में डालते ।

 ▶ यमदूतों को नहीं ले जाने दिया नाम आभास से बस इतना ही काम हुआ । यमदूत दिखे । और यमदूतों को उसकी आत्मा को नहीं ले जाने दिया ।

 ▶ साथ ही विष्णु दूत भी उसे अपने साथ नहीं ले गए । नारायण नाम आभास से यमदूत भाग गए और विष्णु दूतों का दर्शन हुआ ।

▶ विष्णु दूतों के दर्शन के प्रभाव से उसका विवेक जाग्रत हो गया इसे वैष्णव कृपा, पार्षद कृपा दर्शन का फल कहा जा सकता है ।

▶ उसके बाद उसकी रति मति बदली और वह सब भोग उपभोग छोड़कर गंगा जी के तट को साफ करता रहा ।

▶ गंगा के तट को मार्जन करने से उसका चित्त भी मारजित हो गया और निरंतर फिर नारायण नाम का आश्रय लेता रहा ।

▶ निरंतर अधिक समय तक नारायण नाम का आश्रय लेने का फल यह हुआ कि नारायण ने वैकुंठ से उसको विमान भेजा और अपने लोक में बुला लिया ।

▶ कृष्ण चरण सेवा प्राप्ति उसको फिर भी प्राप्त नहीं हुई जो हम वैष्णवोंका साध्य है ।

▶ नारायण नाम ऐश्वर्यका नाम है । इसलिए उसको ऐश्वर्य लोक की प्राप्ति हुई । अतः नाम आभास नाम और नाम भी नारायण का, कृष्ण का, या किस का । सबका अलग अलग फल प्राप्त होता है ।

▶ समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Monday, 13 November 2017

Kripa


✔ *कृपा * ✔

▶ एक अध्यापक कभी नहीं चाहता कि उसके क्लास का एक भी बालक फेल हो, अपितु वह यह चाहता है की सभी अधिकाधिक नंबर प्राप्त करें ।

▶ लेकिन उसके चाहने से कुछ नहीं होता विद्यार्थियों का परिश्रम ही उसका कारण बनता है ।

▶ जो जितना परिश्रम करता है, जो जितने लगन से पड़ता है, उसको उसकी परिश्रम लग्न एवं योग्यता के अनुसार अंक प्राप्त होते हैं ।

▶ इसी प्रकार कोई भी गुरु देव नहीं चाहते कि मेरा शिष्य भगवत भजन में असफल हो । वे तो यही चाहते हैं कि सभी परम भक्त बन जाए ।

▶ लेकिन ऐसा नहीं होता । जो वैष्णव, जो शिष्य जितना भजन में इनपुट देते हैं वह उसी स्तर के भक्त बनते हैं ।

▶ अतः कृपा प्राप्ति के लिए आवश्यक है परिश्रम हम जितना परिश्रम करते हैं जितना इनपुट देते हैं, उतनी ही कृपा हमें प्राप्त होती है ।

▶ कृपा ना तो गुरुदेव के वश में है । ना भगवान के ही वश में है । कृपा का साक्षात स्वरुप है श्री राधा रानी ।

▶ और श्री राधा रानी के चरणों की सेवा करते रहते हैं श्रीशाम सुंदर । अतः हम अधिक से अधिक साधन करते हुए भजन में लगे ।

▶ जितने अधिक लगेंगे उतनी अधिक कृपा होगी और जितनी अधिक कृपा होगी उतने ही शीघ्र हम अपने जीवन के उद्देश्य प्रिया प्रीतम के चरणों की सेवा को प्राप्त कर लेंगे ।

▶ अतः सावधान कृपा यदि नहीं हो रही है तो कमी गुरुदेव या भगवान की नहीं हमारे ही प्रयास और परिश्रम में कमी है । और प्रयास करें, और परिश्रम करें । कृपा तो प्राप्त होनी ही है होगी ही

समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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Sunday, 12 November 2017

Kinkri Sewa

​​ *किंकरी  सेवा 

 आज अचानक में अपने एक सत्संगी मित्र की कुटिया पर गया । मैंने देखा छोटी सी कुटिया थी वह मित्र ठाकुर जी की सेवा कर रहे थे ।

 उसके बाद उन्होंने तुलसी जी को जल दिया । स्वयं बर्तन मांज, झाड़ू लगाई, पोछा लगाया,  आदि ।

 इस प्रकार अन्य साफ़ सफाई आदि करके मेरे साथ स्थिर हो कर माला लेकर बैठ गए ।

 मैंने उनसे कहा आप तो समर्थवान हैं । आप एक बाई या नौकर रख लीजिए, जो यहां झाड़ू कर देगा, पोछा लगा देगा, बर्तन धो देगा, छोटी-मोटी सफाई कर देगा ।

 हां ठाकुर सेवा, तुलसी सेवा आप स्वयं करिए । वे तपाक से बोले ! दासाभास । कैसी बात करते हो ।

 जीव का स्वरुप क्या है । यह बताओ । मैंने कहा कृष्णदास या अपने गौड़ीय परंपरा में राधा जी की दासी ।

 तो बोले, राधा जी की दासी हम तभी बन पाएंगे ना जब हम इस लौकिक संसार में भी दासियों जैसा काम करेंगे ।

 हमें दासियों जैसा काम करने की आदत रहेगी, संस्कार रहेंगे तभी तो वहां जाकर हम दासियों जैसी सेवा कर पाएंगे ।

 यदि हम जीवन भर रिमोट के बटन दबाते रहे तो प्रिया जी की निकुंज में बूहारी सेवा कैसे करेंगे ।

 प्रिया जी के लिए माला कैसे गूठेंगे । प्रिया जी को जल कैसे प्रदान करेंगे । अतः यह बहुत आवश्यक है कि हम यहां से ही इन छोटी-छोटी सेवाओं का अभ्यास करें ।

 और यह निश्चित है कि निकुंज में हमें यह छोटी-छोटी सेवाएं ही प्राप्त होनी है, यदि अभ्यास नहीं होगा तो वहां यह सेवाएं कैसे कर पाएंगे ।

 अतः मैं अभी से इनका अभ्यास कर रहा हूं, जिससे आगे चलकर मुझे परेशानी न हो ।

समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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Shri Krishan ka Avirbhav


श्री कृष्ण का आविर्भाव

अर्चा विग्रह
संत सद्गुरु
नाम
धाम
श्रीमद्भागवत

इन पांच वस्तुओं में भगवान श्रीकृष्ण का सदा आविर्भाव रहता है अथवा यूं कहें कि यह पांचों श्री कृष्ण का ही स्वरुप है ।

पहला है अर्चा विग्रह

अर्थात वह विग्रह, जो आपके घर के मंदिर में विराजमान हैं और आप उसका अर्चनं वंदनं पूजन सेवा आदि करते हैं । वह कोई शो पीस नहीं । सदा ये भाव रहे कि कृष्ण यहाँ विराजमान होकर हमारी सेवा स्वीकार कर रहे हैं ।

दूसरा है संत सदगुरु

विशेषकर सद्गुरु । सद्गुरु वह होते हैं जो शिष्य को सिर पर हाथ रखकर आत्मसात कर लेते हैं अर्थात शिष्य की भजन क्रिया आदि से प्रसन्न होकर शिष्य के प्रति उनमें आत्मीयता हो जाती है । वह सद्गुरु होते हैं । अन्यथा गुरु होते हैं ।

तीसरा है नाम

श्रीहरिनाम, श्री कृष्ण नाम, श्री राम नाम। भगवान का नाम भी साक्षात श्रीकृष्ण ही है । साक्षात भगवान ही है । नाम में भी सदा श्री कृष्ण का आविर्भाव रहता ही है अपितु नाम को कृष्ण से भी बड़ा कहा गया है ।

चौथा है धाम

कृष्ण के लिए श्री वृंदावन धाम । राम के लिए श्री अयोध्या धाम । धाम भी श्री कृष्ण का ही स्वरुप है । इसलिए शास्त्र कहते हैं कि यदि धाम वास प्राप्त हो गया तो समझो श्रीकृष्ण मिल गए ।

धाम में भी कृष्ण का आविर्भाव है । धाम भी साक्षात श्री कृष्ण का ही स्वरुप है । यदि धाम को छोड़कर हम बार बार भाग रहे हैं तो धाम प्राप्त होने पर भी भागना इससे बड़ी कृष्ण उपेक्षा नही हो सकती ।

पांचवां है श्रीमद्भागवत ग्रंथ रत्न

श्रीमद्भागवत ग्रंथ रत्न में उपरोक्त चारों के विषय में चर्चा की गई है । अर्चा विग्रह, संत सद्गुरु, नाम, और धाम । इसीलिए श्रीमद्भागवत ग्रंथ रत्न में भी सदैव श्रीकृष्ण का आविर्भाव रहता है  ।

यहां मैं कहता चलूँ श्रीमदभगवदगीता में कृष्ण का आविर्भाव शास्त्र में नहीं कहा गया है । क्योंकि उसमें इन चारों की चर्चा नहीं है  ।

जितने भी ग्रन्थ है वह प्रभु के श्री विग्रह ही है  लेकिन श्रीमद् भागवत साक्षात श्रीकृष्ण ही है अतः जब भी हम इन पांचों का सेवन करें तब मन में यह दृढ़ विश्वास रहे कि हम श्रीकृष्ण का सेवन कर रहे हैं ।

समस्त वैष्णवजन को दासाभास का  प्रणाम
जय श्री राधे जय निताई 

Saturday, 11 November 2017

Bihari Ji Mandir me kyo hota hai parda baar baar

क्यों करते है बिहारी जी मन्दिर में बार बार पर्दा

धन्यवाद!!
जय श्री राधे !!
जय निताई !!
श्री हरिनाम प्रेस, वृन्दावन ।।
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Tuesday, 7 November 2017

दासाभास लेखनी भाग 7

दासाभास लेखनी


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             दासाभास लेखनी
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💎 भाग 7⃣

1⃣ ।। सब एक ही बात नहीं है ।।
अपनी साधना में जो सिद्ध हो चुके हैं ऐसे शांतरस के साधक - सिद्ध लोक को
दास्य भाव के साधक - वैकुण्ठ लोक को
शुद्ध सख्य- वात्सल्य- मधुर भाव के साधक गोलोक में जाते हैं। उपासना एवं भाव से अलग-अलग लोकों की प्राप्ति होती है.

2⃣ आम आदमी सांप को मार सकता नहीं। सपेरा मार सकता है, लेकिन मारता नहीं। उसके विषदन्त निकाल कर खेलता है ऐसे ही कामना वासना को मारो नहीं, उनमें से संसार-विषय विष निकाल कर उन्हें श्रीकृष्ण सेवा में लगा कर खेलो और आनंदित रहो.

3⃣ बन्दूक - जिस प्रकार एक गोली अपनी बन्दूक द्वारा प्रयोग करने पर ही काम करती है। उसी प्रकार मंत्र या भजन गुरुदेव द्वारा प्राप्त होने पर, उनके आनुगत्य में करने पर ही फल देता है। यदि भजन शुरू हो भी जाए तो पहले गुरुदेव मिलेंगे। फिर भजन का फल श्रीकृष्ण-सेवा मिलेगी वैसे ही जैसे यदि गोली मिल जाय तो बन्दूक खरीदनी पड़ेगी और बन्दूक मिल जाय तो गोली भी चाहिये।

🔔 ।। जय श्री राधे ।। 🔔
🔔 ।। जय निताई  ।। 🔔

🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
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Sunday, 5 November 2017

Shri Ram Shri Krishan


श्रीराम श्रीकृष्ण

श्री राम हों या श्री कृष्ण हों, वामन हों,  नृसिंह हों, या श्री कृष्ण के अनेक स्वरुप श्री राधारमण हों, श्री बिहारी जी हों, श्री राधावल्लभ हों, श्री गोविंद देव आदि हों, यह सब एक ही स्वरुप है।

यह सब एक ही हैं । इनमें तत्वतः कोई भेद नहीं, ठीक वैसे जैसे बीए हो, बीकॉम हो, बीएससी हो बीसीए हो यह सभी ग्रेजुएट डिग्रियां हैं ।

लेकिन जब हम निश्चित कर लेते हैं कि हमें बीकॉम करना है तो हम बी कॉम की कक्षा में जाते हैं, बीकॉम की पुस्तकें पढ़ते हैं, बीकाम की ही कोचिंग लेते हैं और बीकॉम में पढ़ने वाले अपने साथियों का संग करते हैं ।

इसका अर्थ बीसीए या बीएससी की निंदा नहीं, उपेक्षा नहीं लेकिन केंद्र एक पर ही है ।

थोड़ा-थोड़ा अंतर भी इनमें होता है । बीकॉम करने वाला कभी डॉक्टर नहीं बन सकता । इसलिए उपासना के रूप में जब हम इन भगवान के विभिन्न स्वरूपों को देखते हैं तो यहां भी थोड़ा थोड़ा अंतर है ।

नरसिंह की उपासना और कृष्ण की उपासना और श्री राम की उपासना तीनों में अंतर है और उपासना के फल में भी अंतर है ।

श्रीकृष्ण लीला पुरुषोत्तम हैं
राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और
नरसिंह ने प्रहलाद की रक्षा की

इसलिए जब हम दीक्षित हो गए तब इष्ट रूप में हमें अपने गुरु परंपरा से प्राप्त श्री विग्रह के स्वरूप को ही सदा देखना चाहिए ।

उसी विषय के ग्रंथ पढ़ने चाहिए , उसी विषय के वैष्णवों का संग करना चाहिए, अपमान तो प्राणी मात्र का नहीं करना है फिर यह सब तो भगवान है ।

जब तक उपासना में अनन्यता नहीं आएगी तो इष्ट के प्रति दृढ़ बुद्धि एवं समर्पण नहीं आएगा और दृढ़ निष्ठा एवं समर्पण ना होने से प्राप्ति में बहुत विलंब होगा ।

अतः अनन्यता पूर्वक यथासंभव अधिक से अधिक अपने

इष्ट के विषय में बात करें ।
इष्ट के विषय में चिंतन करें ।
इष्ट का दर्शन करें
इष्ट के आचार्यों से मिले

तो हम शीघ्र ही इष्ट की कृपा प्राप्त कर उनके चरणों की सेवा प्राप्त कर लेंगे

समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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Shringaar Vatt Vrindavan

Shringarvatt

✔  *श्रृंगार वट* ✔

▶ वृन्दाबन की परिक्रमा मार्ग में इम्लितला से 5वीं जीर्ण शीर्ण बिल्डिंग है । प्राचीन सिद्ध स्थान है ।

▶ यह लगभग जमुना के तट पर स्थित है । कभी इसके घाट पर यमुना जी भी बहती थी । रास लीला में जब श्री राधा जी चली गई तब श्री राधा जी का इस स्थान पर ठाकुर ने श्रृंगार किया था ।

▶ इसलिए इसका नाम श्रृंगार वट है । साथ ही जब नित्यानंद प्रभु आए तब नित्यानंद प्रभु ने भी यहां पर वास किया था ।

▶और आज भी यहां नित्यानंद प्रभु के वंशज उनके पुत्र के पुत्र के पुत्र के पुत्र यही विराजमान हैं ।

▶ श्रीनित्यानंद प्रभु के वंशज और उनके शिष्य उनका वंश आज भी श्रृंगार वट में विराजमान है

▶ श्री श्रृंगार वट सप्त देवालयों की गुरु गद्दी है । क्योंकि यह नित्यानंद प्रभु का स्थान है । सप्त देवालय गोस्वामी पाद के स्थान हैं ।  रूप,  सनातन श्री जीव श्री गोपाल भट्ट आदि ।

▶ नित्यानंद  प्रभु है । इसलिए यह गुरु गद्दी है लेकिन समय के प्रभाव से जीर्ण शीर्ण अर्थहीन ऐश्वर्य हीन होने से अब यहां कोई इसको पूछता नहीं है । स्वाभाविक भी है ।

▶ लेकिन यह स्थान सिद्ध है ।

▶प्रिया जी का यहां ठाकुर ने श्रृंगार किया है
और नित्यानंद प्रभु के यहां पर चरण पड़े हैं
नित्यानंद प्रभु के वंशज यहां आज भी विराजमान हैं

▶ यहां निताई गौर और प्रिया प्रीतम के दुर्लभ विग्रह हैं । सेवा पूजा आज भी विधि विधान से श्रद्धा पूर्वक होती है ।

▶ जो अंतरंग भक्त हैं, वैष्णव है । वह नियम से प्रतिदिन यहां दर्शन करते हैं । बहुत बड़ा प्रांगण दर्शनीय है । अवश्य दर्शन करना ही चाहिए

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
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