धर्म अर्थ काम मोक्ष
धर्म अर्थ काम ये तीनों प्रवत्तिपरक पुरुषार्थ कहे गए हैं
पुरुशार्थ यानि पुरुष होने का अर्थ या लक्ष्य या पुरुष को क्या प्राप्त करना है
जिससे उसका पुरुष होना या जीवन सफल मन जाय |
१. धर्म - अपने आश्रम,गृहस्थ या वानप्रस्थ या ब्रहमचर्य या संन्यास के धर्मों नियमों का पालन करना |
अपनी जाती - ब्राह्मन, वैश्य, क्षत्रिय,शुद्र के धर्मों का पालन करना, सदचार्य, दान
सत्कर्म करना - साधारनतया धर्म कहलाता है
इसका पालन करने वाले को स्वर्ग प्राप्त होता है |
ज्यादा धर्म करने वाले को स्वर्ग मैं ज्यादा सुविधाए कम वाले को कम सुविधाए दी जाती हैं |
फल भोगने के बाद उसे पुन: नीचे के लोकों मैं गिरा दिया जाता है |
धर्म अर्थ काम मोक्ष्य : चारों का भगवान् के सुख, भगवान् की अनुकूलता, भगवान् की भक्ति से सीधा सम्बन्ध नहीं है |
न ही ये भक्ति के अंग हैं |
भक्ति - भजन, वह भी विशुद्ध एक प्रथक चीज है |
आगे एक दो दिन में अर्थ पर विचार करेंगे |
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
www.shriharinam.com
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