Wednesday, 14 March 2012

191. PREM


पंचम पुरुषार्थ प्रेम 

पुरुष का लक्ष्य क्या है, उसे क्या प्राप्त करने पर उसके जीवन की सफलता है - इसके 
लिए यह जानना आवश्यक है कि यह पुरुष या "जीव" है कोन ?

जीवेर स्वरूप सदा  नित्य कृष्णदासं 
यह पुरुष श्रीकृष्ण का नित्य, सदा सदा से दास है | 

दास का काम है सेवा | न कि सब समाया मांगते ही रहना 
सेवा भी ऐसी जिससे प्रभु का सुख विधान है स्वामी कि अनुकूलता हो, स्वामी को आनंद हो 

सेवा का ही नाम भक्ति है 
केवल और केवल स्वामी का सुख, स्वामी कि अनुकूलता, स्वामी के आनंद को द्रष्टि
मैं  रखकर की जाने वाली सेवा या भक्ति  ही विशुद्ध  भक्ति है, प्रेम भी भक्ति का ही पर्याय है 
या यों कहे की प्रेम के कारन ही ऐसी भक्ति की जा सकती है अत: 
पंचम और सर्वश्रेठ पुरुषार्थ है अपने स्वामी भगवान् से  'प्रेम' |

पूर्व के चारों पुरुषार्थों का सामंजस्य  कुछ कुछ इस प्रकार भी कर सकते है 
धर्म पूर्वक अर्थ अर्जित करो, उस अर्थ से अपनी उचित कामनाओं की पूर्ति करके उस कामनाओं 
से मोक्ष्य या मुक्ति पा लो मन भर लो और अंत मैं पंचम पुरुषार्थ प्रेम या भक्ति मैं ही जीवन को लगा लो 
तो तुम्हारा पुरुष होना(पुरुषार्थ) सफल हो जायेगा | 

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JAI SHRI RADHE


DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
www.facebook.com/dasabhasgirirajnangia

PREM

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