Tuesday 13 March 2012

190. MOKSH = MUKTI



मोक्ष 

मोक्ष यानि मुक्ति ! मुक्ति यानि दुखों की निवृत्ति |
धर्म - अर्थ - काम मै लगते लगते या दुसरे पुरुषों को लगे देखकर, उनके 
दुःख, टेंशन, परेशानी, को देखकर कुछ पुरुष इन दुखों के मूल कारण इस शरीर के जन्म होने से ही मुक्ति चाहते हैं

ये आत्मा न शरीर धारण करेगी और न दुख होगा - यह सोचकर वे मुक्ति की कामना करते हैं | 
लेकिन मुक्ति को भी भुक्ति या कामना  की श्रेणी मैं ही रखा जाता है
 "भुक्ति - मुक्ति" स्प्रहा यावत पिशाची हृदि वर्तते | भोग या कामना या मुक्ति ये तीनों पिशाचि है |

ये निवृति परक अवश्य है, लेकिन इसमें भी अपने लिए कुछ चाहना तो है ही, कामना तो है | 
हा कुछ पाने की नहीं, अपने दुःख से छुट भी गए तो वेसे ही है 
जैसे बैंक का लोन उतर जाना | लोन उतर जाने का अर्थ एफ. डी. बनना नहीं है | 

दुःख समाप्ति का अर्थ सुख प्राप्ति नहीं है सुख प्राप्ति कुछ और ही है 
मिलता है सच्चा सुख केवल भगवान् तुम्हारे चरणों मैं 

आगे पंचम पुरुषार्थ  प्रेम पर विचार करेंगे 

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
DASABHAS@GMAIL.COM

 MOKSH = MUKTI

1 comment:

  1. भज निताई गौर राधेश्याम
    जपो हरे कृष्ण हरे राम

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