Thursday 15 March 2012

193. sakaam se nishkaam = dhruv



सकाम से विशुद्ध तक 

न करने से अच्छा है सकाम-भक्ति करना
सकाम यानी कामना सहित = भक्ति करके अपने लिए कुछ मांगना

विशुद्ध यानी= भक्ति करके भक्ति मांगना. भक्ति = प्रेम 
प्रेम केवल प्रभु से, सुख या आनंद केवल प्रभु का, प्रसन्नता केवल प्रभु की.

अपनी कामना की पूर्ति के लिए भक्ति करते करते एक समय ऐसा आता है जब साधक को कामना की असारता का
ज्ञान हो जाता है, और वह प्रभु प्रेम मांगने लगता है

ध्रुव इसका उदाहरण है.
 ध्रुव ने राज्य व् पिता की गोदी में बैठने के लिए भक्ति प्रारम्भ की थी
भक्ति करते-करते जब भगवान् प्रकट हुए तो 
उन्होन्हें भगवान् के चरणों की सेवा ही मांगी.

भगवान् ने भक्ति तो दी ही, साथ में उन्हें राज्य-सुख भी दिया,
 जिससे लोगो को यह भ्रम न हो जय की भगवान्
भक्ति ही देते है, लौकिक सुख नहीं देते.

जो मांगोगे वही मिलेगा, लेकिन भाई ! इतने बड़े भगवान्  से छोटी-मोटी चीज़ मांगने में क्या समझदारी है ?
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
made to serve ; GOD  thru  Family  n  Humanity
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

सकाम से विशुद्ध तक

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