Monday, 19 March 2012

195. ahankar se prem-prapti




अहंकार से भगवत्प्राप्ति
मैं धनवान हूँ, मैं बहुत प्रतिष्ठित व्यक्ति हूँ, मैं बहुत सुन्दर हूँ, 
समझदार हूँ, ब्राह्मण हूँ, छत्रिय हूँ 
विद्vaan हूँ...... 
आदि आदि जितने भी लोकिक अहंकार  हैं -ये सब नर्क के द्वार  हैं 

"मैं श्री कृष्ण का दास हूँ"
यह एक ऐसा अहंकार हैं कि जो श्री कृष्ण को, 
श्री कृष्ण प्रेम को प्राप्त करा देता है.

हमें मनुष्य शरीर मिलना ही इस बात का प्रमाण है कि 
भगवान् की कृपा हम पर हैं,
नहीं होती तो हम कुत्ता, बिल्ली आदि पशु पक्षी होते.

साथ ही 'जीवेर स्वरुप हय  नित्यकृष्णदास' 
हम स्वरूपत श्रीकृष्ण के दास ही हैं. 
यह अहंकार रखते हुए सदैव श्रीकृष्ण की 
सेवा में यदि तन्मय रहेंगे तो प्रेमप्राप्ति हो ही जाएगी.
 यह शरीर कृष्ण प्रेम प्राप्ति के लिए ही मिला है 

वैसे  भी अहंकार स्रष्टि की रीढ़ की हड्डी है 
यह न तो नष्ट हो सकता है, न इसे नष्ट करना है,
 इसे बस सही दिशा में मोड़ना है.
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

 ahankar se prem-prapti

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