Friday, 14 July 2017

Jivan me prashan aavashyak

जीवन में प्रश्न आवश्यक

✔  *जीवन में प्रश्न आवश्यक*    ✔

▶ गीता में कहा गया है "तद्विद्धि प्रणिपातेन परि प्रश्नेन सेवया" । ऐसा करने पर साधु संत लोग उपदेश करते हैं । और उनके उपदेश पर आचरण कर के दासाभास साधक का कल्याण होता है ।

▶ प्रश्न का अर्थ जिज्ञासा ।
हम जीव, चाहे लौकिक विषय हो, चाहे पारमार्थिक । पेट से सीखे तो आते नही ।

▶ दासाभास या आप कुछ भी करते हैं तो उस विषय में निश्चित ही हमारे सामने कुछ समस्याएं आती है,  कुछ बाधाएं आती हैं और उनके समाधान के लिए हमारे मन में प्रश्न खड़े होते हैं ।

▶ प्रश्न खड़े होने पर अवश्य ही उनका समाधान करना चाहिए, करवाना चाहिए ।

▶ इस विषय में हम महान गलती करते हैं कि एरे गैरे नत्थू खैरे से उन विषयों पर चर्चा करने लग जाते हैं । दासाभास ये गलती नही करता ।

▶ जबकि जब हमारा इनकम टैक्स का नोटिस आता है तो हम डॉक्टर के पास नहीं जाते, हम ऐरे गैरे नत्थू गैरे से बात नहीं करत, हम इनकम टैक्स के वकील या  C A से ही उस विषय में सलाह करते हैं ।

▶ इसलिए जब हमें भक्ति या भजन में कोई बाधाएं आती हैं । प्रश्न आते हैं तो हमें योग्य आचरण शील संत विद्वान गुरुदेव आदि से ही उनका समाधान कराना चाहिए ।



▶ और समाधान या प्रश्न का भी गीता में विधि लिखी "तद्विद्धि प्रणिपातेन" उनको आदर सहित प्रणाम करें । उनकी सेवा करें । उनसे निवेदन करें । फिर प्रश्न या अपने साधन का मार्ग पूछेँ

▶ यह नहीं कि फालतू में बैठे बैठे ठोक दिया दासाभास के पास प्रश्न और वह भी उल्टा सीधा उसमे भी अपना नाम स्वरूप गोपनीय ।

▶ यह अनुचित ह । क्योंकि अधिकारी क अनुसार ही समाधान होता है । प्रश्न से ही सत्संग का प्रादुर्भाव होता है । आप और दासाभास किसी विद्वान संत से प्रश्न पूछेंगे तो वह भगवत विषय में, भगवत कथा विषय में हमारा मार्गदर्शन करेगे ।

▶ यही सत्संग है, यही श्रवण है, यही कीर्तन है, इसको बाद में फिर एकांत में स्मरण किया जाए तो श्रवण कीर्तन स्मरण भक्ति के प्रमुख अंग का आचरण हो जाएगा और हो जाएगा हमारा कल्याण ।

▶ समस्त वैष्णव जन को मेरा सादर प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

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