✔ *अन्य अभिलाषा रहित* ✔
▶ जो शुद्ध या उत्तम भक्ति है । उसमें पहला लक्षण या पहली शर्त है कि वह भक्ति अन्य अभिलाषा से रहित हो ।
▶ अन्य अभिलाषा से पहले ये पता रहे कि क्या अभिलाषा रहे । अन्य तो नहीं रहेंगी । रहे क्या
▶ अभिलाषा तो एक ही अभिलाषा है ।
श्रीप्रिया लाल जी का सुख ।
श्री कृष्ण सेवा सुख के अतिरिक्त कुछ भी नहीं ।
▶ कृष्ण का सुख ।
कृष्ण की सेवा ।
कृष्ण की उपासना ।
कृष्ण का नमन ।
कृष्ण का भजन ।
कृष्ण ही कृष्ण ।
▶ अन्य देवी देवता जो हैं उनको प्रणाम करने में कोई मना नहीं है । लोकाचार वर्श अथवा घर की, नगर की, देश की परंपरा वश उनकी पूजा करने में भी कोई मनाही नहीं है ।
▶ लेकिन उनकी भगवद बुद्धि से , भगवान मान कर पूजा करना अनन्यता में बाधक है । वे भगवान नही । भगवान के दास या प्रकाश हैं
▶ जैसे एक स्त्री एक ही पुरुष को पति रूप में मानती है । साथ ही वह देवर की, ससुर की, सास की, भतीजे की, भाई की भी सेवा करती है लेकिन किसी को पति नहीं मानती । पति एक ही होता है ।
▶ उसी प्रकार अन्य देवी-देवताओं को प्रणाम आदि करने में कोई मनाही नहीं है । वे सब हमारे कृष्ण के ही दास या अंश या प्रकाश हैं । भगवान नहीं
▶ लेकिन हमारे इष्ट हमारे भगवान केवल श्रीकृष्ण ही है यह बुद्धि होने पर भी अन्य अभिलाषा का भाव हो जाता है ।
▶ दूसरा श्री कृष्ण का अनुकूलता पूर्वक सेवन । कंस की तरह नहीं । शिशुपाल की तरह नहीं । दुर्योधन की तरह नहीं ।
▶ वह भक्ति नहीं शत्रुता है । वैसे भी यह परिकर भूत हैं और कृष्ण के आदेश से ही लीला करने के लिए उनके साथ आते हैं ।
▶ इनके साथ जीव की कोई तुलना भी नहीं है ।इसलिए श्री कृष्ण की अनुकूलता पूर्वक, उन्हें जिसमें सुख हो ।
▶ हमें उन्हें देखने में सुख हो यह भाव नहीं, उन्हें जैसे सुख हो और
▶ जीवन में केवल श्रीकृष्ण ही हो ।
कृष्ण स्मृति ।
कृष्ण की बात् ।
कृष्ण की सेवा ।
कृष्ण को चाहना ।
कृष्ण सेवा को पाना ।
▶ कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण और
उनका भजन भजन भजन भजन ।
▶ समस्त वैष्णवजन के चरणों में मेरा सादर प्रणाम
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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