Saturday, 15 July 2017

Aacharya Kaun?

Aacharya Kaun?

​ ✔  *आचार्य कौन*    ✔

▶ आचार्य कहते हैं उसे, जो आचरण करे । जो भक्ति भजन के अंगों का आचरण करेगा वह दीन हो जाएगा । और दीन कभी अभिमानी नहीं होता । दीन और अभिमान विरोधी हैं परस्पर ।

▶ अतः सिद्ध हुआ की यदि अभिमानी है तो वह आचार्य नहीं । हाँ अभिमान का आचार्य हो सकता ह । भक्ति का नहीं ।

▶ और इसका दर्शन गौड़ीय आचार्यों में प्रारम्भ से है । आज भी संस्कार में है । न तो हमारे पूर्वाचार्य, न अभी के आचार्य कोई भी चांदी सोने के सिंघासनो पर न बेठे न उनके साथ ऐश्वर्य होता है ।



▶ ब्रज म तो कौन कितना बड़ा पदेन महंत या सन्त है इसका पता ही नही चलता है । वह सामान्य संत जन के बीच में ही रहता, उठता, बैठता है ।

▶ अतः आचार्य वह जो भजन का आचरण करे ।
दीन हो । अभिमानी कभी आचार्य नही हो सकता ।

▶ हम सब जीव हैं । दास हैं । हम छोटे दास । हमारे आचार्य बड़े दास । कोई कोई तो दासाभास । और दास तो दास । दास या सेवक का क्या अभिमान । क्या सम्मान । क्या अहम ।

▶ अपितु जितना बड़ा दास होगा। वह अपने को "तृण कर मानि" अर्थात उतना ही छोटा मानेगा ।

▶ समस्त वैष्णवजन को मेरा सादर प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

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