✅ नहीं चाहिए । नही चाहिए ✅
▶ जीव उस सत चित आनंद का अंश है । जीव में भी शक्ति है सामर्थ्य है । वह यदि चाहे तो बहुत कुछ कर सकता है ।
▶ चांद पर भी पहुंच गया । समुद्र के अंदर भी होटल बना लिए । बात केवल यहीं तक है की उसको समझ आना चाहिए ।
▶ और सबसे बड़ी बात दासाभास को समझने की यह है की जीव श्रीकृष्ण का दास है । प्रिया लाल की चरण सेवा ही उस का मुख्य उद्देश्य है । उसी में ही उसको परम शांति सुख आनंद प्राप्त होगा ।
▶ जब यह बात उसके समझ में आ जाए तभी वह कृष्ण को परम धन मान कर उनके चरण सेवा प्राप्ति हेतु भजन में लगेगा ।
▶ अन्यथा तो भजन एक दैनिक प्रक्रिया है । 10 20 मिनट्स आधा घंटा किया और राधे-राधे
▶ जिसे यह समझ आ जाएगी कि श्री कृष्ण भजन ही हमारा मुख्य कार्य है । इसी के लिए हम आये हैं , तब वह दासाभास भजन को ही चाहेगा और भजन के अतिरिक्त किसी वस्तु को नहीं चाहेगा ।
▶ जैसे किसी के पास परम धन हो या कोई श्रेष्ठ चीज हो तो वह सामान्य वस्तु के लिए नहीं नहीं करता रहता है ।
▶ जैसाकि महाप्रभु ने शिक्षा अष्टक में कहा है
ना धनं
न जनम्
न सुंदरी
न कविताम्
वा जगदीश कामये
▶ जबकि दासाभास और हम सभी इन्हीं की प्राप्ति में लगे रहते हैं । जिसे इन से भी श्रेष्ठ वस्तु की प्राप्ति का ज्ञान हो गया है । वही इनको मना करेगा ।
▶ नहीं चाहिए । नहीं चाहिए । नहीं चाहिए । वही कहेगा जिसके पास या तो पर्याप्त रूप में है या जो ऑफर किया जा रहा है उससे बहुत श्रेष्ठ उसके पास है ।
▶ जैसे जो महिला 2,000 से ऊपर की साड़ी पहनती है उसको 300, 400, 800 वाली यदि साड़ियां दिखाई जाएं तो वह यही कहती है । अरे भाई । नहीं चाहिए, नहीं चाहिए, नहीं चाहिए ।
▶ हटाओ इनको । बस बात दासाभास और सबके मन में बैठने की है कि हमारा सर्वश्रेष्ठ धन भजन है और भजन द्वारा श्री श्री प्रिया लाल जी का सुख है ।
▶ तब यह सांसारिक वस्तु यह सांसारिक सुख, धन जन सबके लिए हम कहेंगे नहीं चाहिए । नहीं चाहिए । नहीं चाहिए ।
▶ देखना यह है के यह बात दासाभास को
समझ में कब आती है
▶ समस्त वैष्णव जन को मेरा सादर प्रणाम
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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