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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
भाग 4⃣8⃣
शास्त्र में विधि और निषेध दोनों ही बातों का उल्लेख है केवल एक बात को मानने से काम नहीं बनेगा इसलिए - सत्य बोलो और असत्य मत बोलो, धर्म का पालन करो और अधर्म का त्याग करो, सत्संग करो और असत्संग का त्याग करो, सबसे प्रेम करो और द्वेष मत करो.
भगवान की और मन लगाने से बिना प्रयास के ही संसार के विषयों से अपने आप दूरी बढ़ने लगेगी जैसे जब आप हाइवे पर दिल्ली की ओर चलते हैं तो आगरा से दूरी बढ़ने लगती है उसके लिए आपको कोई विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता,
जिन महान ग्रंथों के आस्वादन से जगद्गुरु, आचार्य और स्वामी बनने की योग्यता प्राप्त की जा सके, ऐसे अनेकानेक ग्रंथों की रचना करने वाले श्रीपाद जीव गोस्वामी रचनाकार के रूप में अपना नाभ लिखते थे - 'जीवकः'। अर्थात कोई एक जीव। कितनी दैन्यता। कोई उपाधि नहीं। एक भी श्री नहीं। जो कहना वह करना। यह है - प्रतिष्ठा शूकरीविष्ठा का सटीक उदाहरण।
।। जय श्र राधे ।।
।। जय निताई ।।
।। जय निताई ।।
लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vindabn
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vindabn
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