✔ *जीव दुखी क्यों* ✔
▶ जीव श्रीकृष्ण का ही अंश। है । अपितु श्री कृष्ण की तीन शक्तियों में से एक है ।
▶ स्वरूप शक्ति
माया शक्ति और
जीव शक्ति
▶ शक्ति और शक्तिमान में अभेध है । जब जीव श्रीकृष्ण की शक्ति है तो दुखी क्यों ।
▶ तटस्था कहते हैं तट पर बैठी हुई । उसके एक तरफ श्री कृष्ण हैं और एक तरफ संसार या माया है ।
▶ माया की तरफ आकर्षित होकर श्रीकृष्ण को भूलने से ही यह दासाभास जीव दुखी है । यह अनादि विस्मृति ही उसके दुख का कारण है ।
▶ यदि कभी गुरु शास्त्र संत कृपा से उसको अपनी इस भूल का एहसास हो जाए और कृष्ण की स्मृति हो जाए तो उसके सारे दुख कट जाएं और परम आनंद सुख स्वरूप श्रीकृष्ण की चरण शरण सेवा में वह चला जाए और आनंदित हो जाएं ।
▶ चलिए अब दासाभास भूल गया । विस्मृति हो गई । तो सर्व सुलभ सहज उपाय क्या है । सहेज उपाय है शास्त्र और साधु वैष्णव का संग ।
▶ प्रश्न उठता है कि क्या अकेला शास्त्र समर्थ नहीं या क्या केवल अकेला साधु समर्थ नहीं । तो चैतन्य चरितामृत में कविराज कहते हैं कि
▶ साधु और शास्त्र एक दूसरे के पर्याय हैं । जो शास्त्र पर आधारित नहीं वह साधु नहीं । उसमें भी शास्त्र श्रेष्ठ है ।
▶ लेकिन शास्त्र दासाभास को स्वयं समझ नहीं आता है । शास्त्र को समझने के लिए ऐसे साधु का संग करना पड़ेगा जो शास्त्र का अनुभव किया हुआ हो
और साधु का संग करने पर भी वह शास्त्र की ही बात बताएगा । इसीलिए साधु और शास्त्र ग्रंथ इनका आश्रय लेने से ।
▶ विशेषकर शास्त्रों का ग्रंथों का अनुभवशील विज्ञानी संतो साधुओं का संग करते हुए आश्रय लेने से दासाभास जेसे जीव को अपनी भूल का ज्ञान होकर श्रीकृष्ण की सेवा का परिचय प्राप्त हो जाता है ।
▶ और उसकी अनादि बहिर्मुखता समाप्त हो जाती है । यह बहिर्मुखता है तो अनादि । किंतु सांत है अर्थात इस का अंतर है ।
▶ और हम देखते हैं कि इस बहिर्मुखता का अंत हो कर हम आप श्री कृष्ण भजन में लग जाते हैं ।
▶ और श्री कृष्ण भजन ही जीवन का सार ह । सब सुखों का सार है । परम आनंद का स्रोत है ।
▶ सभी वैष्णवजन को दासाभास का सादर प्रणाम
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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