रावण, शिशुपाल, हिरण्याक्ष
जय विजय ने जब सनक सनंदन को द्वार पर रोका तो
उन्होंने श्राप दिया -तुम काम, क्रोध, और लोभ युक्त योनियों में
अधः पतित हो जाओ.
काम योनी में वह रावण कुम्भकरण बने.
क्रोध योनी में वह शिशुपाल दन्तवक बने
लोभ योनी में वे हिरन्यकाशीपु - हिरन्याक्ष बने
हिरन्य= स्वर्ण , कशिपू= तकिया
यानी जिसका तकिया भी सोने का था, इन्हें स्वर्ण -संग्रह का लोभ था.
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
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