जीवक:
श्री जीव गोस्वामी ने अपनी भक्ति - जात दीनतावश अपने आपको
जीवक: लिखा - अर्थात कोई एक सामान्य सा जीव |
लेकिन श्री विश्वनाथ चक्रवर्ती पाद ने
जीवक: की व्याकरण सम्मत व्याख्या की
कि जिन्होंने अपने आचरण द्वारा अपने द्वारा रचित दर्शन ग्रन्थ
व्याकरणआदि रचनाओं के द्वारा जीवों को जीवन दान
दिया - वह जीवक = यानी जीवों को अपनी
करुना द्वारा जीवनदान देने वाले |
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