कैसे कैसे लोग ?
दिल्ली से आज मेरे एक रिश्तेदार का प्रात: ९ बजे फोन आया की मंदिर
दर्शन कितने बजे मिलेंगे मैं आज वृन्दावन आ रहा हूँ
मैंने बताया बारह सबा बारह तक |
साथ ही कहा की आप कृपाकर जरुर घर भी पधारिये
बोले - देखो ! समय मिला तो आयेगे |
मैंने कहा - कष्ट हो तो अलग बात है, अन्यथा अवश्य आइये |
तीन बजे उनका फोन आया की हम
रमणरेती मैं एक कालोनी मैं फ्लैट देख रहे है- आप यहाँ आ जाओ |
मैं कदाचित रमणरेती मैं ही था पांच मिनट मैं वहां पहुच गया
मैंने कहा आप घर नहीं पधारे ?
बोले बस टाइम नही मिला । फिर बताने लगे कि हम आपके भाई की दुकान के सामने से
निकले तो बन्दर हमर चश्मा लेने को था,बच गया
मेरे भाई की दुकान व घर के बीच केवल दस
कदम की दूरी है । मैने कहा आप वहां तक आकार भी घर नही आए ?
बोले बस टाइम नही था ।
मै उनके साथ् एक घण्टा रहा ।
कुल मिलाकर बर बर यही बात थी कि दिल्ली आओ तो घर आओ न इस बार जरुर आओ
मै चिन्तन कर रहा हू । समय कम नही था ।प्रेम कम था । स्वयं मेरे घर के
सामने से निकल गये । मुझे किस मुह से बार - बार अपने घर बुला रहे हैं
पता नही इसे होशियारी कहेगे या मुर्खता या
चालाकी या कपट
या मेरा कोइ अपराध् ?
JAI SHRI RADHE
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