Thursday 14 June 2012

219. KAISE-KAISE LOG





कैसे कैसे लोग ?


दिल्ली से आज मेरे एक रिश्तेदार का प्रात: ९ बजे फोन आया की मंदिर 
दर्शन कितने बजे मिलेंगे मैं आज वृन्दावन आ रहा हूँ 

मैंने बताया बारह सबा बारह तक |
साथ ही कहा की आप कृपाकर जरुर घर भी पधारिये 

बोले - देखो ! समय मिला तो आयेगे |
मैंने कहा - कष्ट हो तो अलग बात है, अन्यथा अवश्य आइये |


तीन बजे उनका फोन आया की हम 
रमणरेती मैं एक कालोनी मैं फ्लैट देख रहे है- आप यहाँ आ जाओ |

मैं  कदाचित रमणरेती मैं ही था पांच मिनट मैं वहां पहुच गया
मैंने  कहा आप घर नहीं पधारे ?

बोले बस टाइम नही मिला । फिर बताने लगे कि हम आपके भाई की दुकान के सामने से 
निकले तो बन्दर हमर चश्मा लेने को था,बच गया

मेरे भाई की दुकान व घर के बीच केवल दस 
कदम की दूरी है । मैने कहा आप वहां  तक आकार भी घर नही आए ?
बोले बस टाइम नही था ।

मै उनके साथ् एक घण्टा रहा ।
कुल मिलाकर बर बर यही बात थी कि दिल्ली आओ तो घर आओ न इस बार जरुर आओ 

मै चिन्तन कर रहा हू । समय कम नही था ।प्रेम कम था । स्वयं मेरे घर के 
सामने से निकल गये । मुझे किस मुह से बार - बार अपने घर बुला रहे हैं 

पता नही इसे होशियारी कहेगे या मुर्खता या 
चालाकी या कपट 
या मेरा कोइ अपराध् ?

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

KAISE-KAISE LOG

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