दुर्गा - बलि
कभी-कभी देखने मैं आता है की वृन्दावन की अति प्रसिध्द देवालय - मंदिरों
के गोस्वामि स्वरूप , जो अपने हाथों से श्री विग्रह की सेवा कर उनका सानिद्य
प्राप्त करते हैं | वे भी कहीं और जाकर काली या दुर्गा की पूजा आदि करते हैं |
वृन्दावन जैसे कृष्ण के धाम मैं दुर्गा - पूजा की धूम देखते ही बनती है |
इसका एक कारण तो परम्परा निर्वाह है
दूसरा अनिष्ट भय है
तीसरा अपने प्रभु मैं अनन्यता का अभाव है |
शास्त्र - वचन है कि दुर्गा कि उपासना
यदि बिना बलि दिये कोई वैष्णव करता है
तो दुर्गा अपने मूल स्वरूप द्वारा अति दुर्गम
भक्ति देने वाली होकर उसे श्री हरि कि और ही उन्मुख करती है |
ऐसे वैष्णव प्रधान उपासकों को दुर्गा अपनी
उपासना हेतु आकृष्ट नहीं करती |
हाँ, जो पशु बलि देते हैं - वे वैष्णव - भ्रष्ट हो जाते है और
दुर्गा उन्हें अपनी तामसिक उपासना मैं खेच लेती है |
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
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