नहीं तो हम चोर हैं
हमारे आचार्यों द्वारा दिए गये ज्ञान और ग्रन्थ, उनके आचरण
ही हमारे या वैष्णवों के प्राण स्वरूप हैं |
उन आचार्यों की जयंती या तिरोभाव तिथि को उत्सव मानकर,
उनकी तिथियों
की आराधना करके हम उन आचार्यों के प्रति
अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं |
हमें प्राण स्वरूप आचरण, ग्रन्थ, शिक्षा, टीकाएँ
प्रदान करने वाले आचार्य
संत, गोस्वामीगण की तिथियाँ
यदि हम न मनाये तो हम चोर हैं, हम कृतघ्न हैं |
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