Thursday, 28 June 2012

226. RAAVAN, SHISHUPAL, HIRANYAKSH




रावण, शिशुपाल, हिरण्याक्ष 

जय विजय ने जब सनक सनंदन को द्वार पर रोका तो
उन्होंने श्राप दिया -तुम काम, क्रोध, और लोभ युक्त योनियों में 
अधः पतित हो जाओ.

काम योनी में वह रावण कुम्भकरण बने.

क्रोध योनी में वह शिशुपाल दन्तवक बने 

लोभ योनी में वे हिरन्यकाशीपु  - हिरन्याक्ष  बने 


हिरन्य= स्वर्ण , कशिपू= तकिया 
यानी जिसका तकिया भी सोने का था,  इन्हें स्वर्ण -संग्रह का लोभ था.


JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

RAAVAN, SHISHUPAL, HIRANYAKSH

Monday, 25 June 2012

225. THODA YA BAHUT



थोडे को बहुत 

जो थोड़े को बहुत समझते है
वह सज्जन है तो संतोषी, दुर्जन है तो अहंकारी.

जो बोहोत को थोडा समझते है 
वह सज्जन है तो  विनम्र , दुर्जन है तो लालची

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Friday, 22 June 2012

224. LADDU KA CHURA



लड्डू का चुरा 

खूब लड्डू बांधो लेकिन चुरा यदि झड़ता रहेगा तो हमे क्या आपत्ति है.
अर्थात तुम लड्डू खाते  रहो हमे भी थोडा थोडा चूरा खिलते रहो.

इतिहास गवाह है आन्दोलन प्रकट में कुछ और होता है 
और वास्तव में कुछ और
मुह बंद होते ही आन्दोलन बंद .

इन्तेजार  कीजिये चूरा मिलते ही आजकल के
आन्दोलन कारी भी न जाने कहा खो जाएँगे.

Thursday, 21 June 2012

223. PASSWORD

वेरिफिकेशन : पासवर्ड

जब हम किसी भी तोल फ्री नम्बर पर अपनी किसी समस्या या  पूछताछ  
या खाते या क्रेडिट कार्ड का बैलेंस पूछने के लिए कॉल करते है
 तो वह हमसे हमारी वेरिफिकेशन डिटेल पूछते है.

वेरिफिकेशन डिटेल सही होने पर ही वो हमारी समस्या का समाधान करते है 
हमारी समस्त गोपनीय जानकारी भी हमे दे देते है 
और डिटेल सही नहीं होने पर किसी भी कीमत पर हमारी जानकारी हमे नहीं  देते है और इग्नोर करते है.

ठीक इसी प्रकार किसी संत या वैष्णव के दर्शन करने, उनकी कृपा प्राप्त करने की इच्छा करने पर 
बहार खड़े अनेक सेवक आपसे वेरिफिकेशन डिटेल पूछते है, देखते हैं.

यदि आपके ललाट पर तिलक, गले में तुलसी कंठी हो, हाथ में माला झोली है 
तो वह तुरंत ही  राधे राधे प्रणाम करके आपका प्रवेश करवा देते है. 
अन्यथा आपसे पूछताछ करते है और ताल मटोल करते है.

यह तिलक ही हमारा पासवर्ड है जिसे हम भूल गए है. फोरगेट पासवर्ड पर   क्लिक करने से यह पुनः नहीं  मिलता. 
यह मिलता है संतो की कृपा रुपी दीक्षा प्राप्ति से. एक बार पासवर्ड मिला तो आनंद ही आनंद.
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

वेरिफिकेशन : पासवर्ड

Tuesday, 19 June 2012

222. HUM CHOR HAIN





नहीं तो हम चोर हैं 

हमारे आचार्यों द्वारा दिए गये ज्ञान और ग्रन्थ, उनके आचरण 
ही हमारे या वैष्णवों के  प्राण स्वरूप हैं |

उन आचार्यों की जयंती या तिरोभाव तिथि को उत्सव मानकर, 
उनकी तिथियों 
की आराधना करके हम उन आचार्यों के प्रति 
अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं |

हमें प्राण स्वरूप आचरण, ग्रन्थ, शिक्षा, टीकाएँ 
प्रदान करने वाले आचार्य 
संत, गोस्वामीगण की तिथियाँ 
यदि हम न मनाये तो हम चोर हैं, हम कृतघ्न हैं |  


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JAI SHRI RADHE

 आचार्यों की जयंती

Monday, 18 June 2012

221. bhakt paraadhinta


 भक्त पराधीनता 

श्री जीव गो० ति० म० तिथि पर श्रीचन्द्रशेखर बाबा के वचनाम्रत


कही भी नही कह गया है कि 
"अहं योगी पराधीनो" 
"अहं ज्ञानी पराधीनो"

लेकिन श्री गीता मै श्री कृष्ण ने कहा है कि  
अहं भक्त पराधीनो 
भक्ति एवं भक्त ही एसा मार्ग है जिसके वशीभूत हो जाते है - भगवान् 

भक्त वश्यता - श्री भगवान् की 
मजबूरी नही, वे असमर्थः नही है

वे चाहे तो वशीभूत होने की कोई जरुरत नही

लेकिन सूर्य की गर्मी, चन्द्र की शीतलता 
की भाति यह उनका स्वरुप धर्म  है 
स्वभाव है । सामथ्य का अभाव  नही । 

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

bhakt paraadhinta

Friday, 15 June 2012

220. KALI N VAISHNAV



काली की पूजा और वैष्णव

काली, महाकाल श्री विष्णु की ही एक शक्ति हैं - ऐसा 
सोचकर यदि कोई काली की उपासना
करता है 
तो काली भी उसे  अपने स्वामी श्री विष्णु या कृष्ण की 
और उसे उन्मुख करती है |

काली को पशु बलि देकर स्वतंत्र मान कर 
जो  उनकी उपासना करता है 
वह वैष्णवता से पतित होकर तामसिक पूजक ही कहलाता है  
वैष्णव नहीं रह जाता.

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Thursday, 14 June 2012

219. KAISE-KAISE LOG





कैसे कैसे लोग ?


दिल्ली से आज मेरे एक रिश्तेदार का प्रात: ९ बजे फोन आया की मंदिर 
दर्शन कितने बजे मिलेंगे मैं आज वृन्दावन आ रहा हूँ 

मैंने बताया बारह सबा बारह तक |
साथ ही कहा की आप कृपाकर जरुर घर भी पधारिये 

बोले - देखो ! समय मिला तो आयेगे |
मैंने कहा - कष्ट हो तो अलग बात है, अन्यथा अवश्य आइये |

218. KALI M SANNYAAS




ब्रह्म वैवर्त पुराण- १८५/१८०कृष्ण जन्म खंड में लिखा है कि

अश्वमेध  गवालाम्भम   संन्यासम  पल्पैत्रिकम 
देवरेन सुतोत्पत्ति   कलौ  पञ्च   विवर्जयेत    |

अर्थात

१. अश्वमेध
२. गौमेध
३.संन्यास
४. मांस से श्राद्ध 
५. देवर से पुत्र-उत्पत्ति

कलियुग में ये ५ नहीं करने चाहिए

चार तो शायद नहीं ही होते हैं, हाँ ! संन्यास चलता तो है,
लेकिन उसका पालन होता नहीं दीखता है.


JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Tuesday, 12 June 2012

217. DURGA BALI




दुर्गा - बलि

कभी-कभी देखने मैं आता है की वृन्दावन की अति प्रसिध्द देवालय - मंदिरों 
के गोस्वामि स्वरूप , जो  अपने हाथों से श्री विग्रह की सेवा कर उनका सानिद्य 
प्राप्त करते हैं | वे भी कहीं और जाकर काली या दुर्गा की पूजा आदि करते हैं | 
वृन्दावन जैसे कृष्ण के धाम   मैं दुर्गा - पूजा की धूम देखते ही बनती है |

इसका एक कारण तो परम्परा निर्वाह  है 
दूसरा अनिष्ट भय है
तीसरा अपने प्रभु मैं अनन्यता का अभाव है | 

शास्त्र - वचन है कि दुर्गा कि उपासना 
यदि बिना बलि दिये कोई वैष्णव करता है 
तो दुर्गा अपने मूल स्वरूप द्वारा अति दुर्गम 
भक्ति देने वाली होकर उसे श्री हरि कि और ही उन्मुख करती है |

ऐसे वैष्णव प्रधान उपासकों को दुर्गा अपनी 
उपासना हेतु आकृष्ट नहीं करती |

हाँ, जो पशु बलि देते हैं - वे वैष्णव - भ्रष्ट हो जाते है और 
दुर्गा उन्हें अपनी तामसिक उपासना मैं खेच लेती है | 
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

216. jeevakah




जीवक:

श्री जीव गोस्वामी ने अपनी भक्ति - जात दीनतावश अपने आपको 
जीवक: लिखा - अर्थात कोई एक सामान्य सा जीव |

लेकिन श्री विश्वनाथ चक्रवर्ती पाद ने 
जीवक: की व्याकरण सम्मत व्याख्या की 
कि जिन्होंने अपने आचरण द्वारा अपने द्वारा रचित दर्शन ग्रन्थ
व्याकरणआदि रचनाओं के द्वारा जीवों को जीवन दान 
दिया - वह जीवक = यानी जीवों को अपनी 
करुना द्वारा जीवनदान देने वाले | 
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JAI SHRI RADHE

jeevakah

Friday, 8 June 2012

215. panch tatv

पञ्च तत्वों के गुण 

आकाश - शव्द 
वायु - स्पर्श 
तेज - रूप
जल - रस 
प्रथ्वी - गंध 
लेकिन हर अगले मैं पिछले का गुण भी रहता है

आकाश - मैं केवल शव्द
वायु मैं - शब्द, स्पर्श 
तेज मैं - शब्द, स्पर्श, रूप 
जल मैं - शब्द, स्पर्श, रूप, रस 
प्रथ्वी मैं - शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध भी है 
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

panch tatv