Friday, 30 March 2012

197. SAJJAN YA CRIMNAL




सज्जन या क्रिमनल
कभी हमारा कोई काम अटक जाए तो 
हम या तो नगर के प्रतिष्ठित सज्जन व्यक्ति से निवेदन करते हैं 
अथवा फिर किसी क्रिमिनल टाइप के आदमी से संपर्क करते हैं. 
और शायद हमारा काम हो जाता है 

काम होने के बाद सज्जन व्यक्ति भविष्य में कभी ब्लैक मेल नहीं करता, 
लेकिन क्रिमनल के साथ इस बात की पूरी सम्भावना रहती है. 
उसे महत्व न देने पर वह हमें परेशान भी कर सकता है.

सज्जन एवं क्रिमनल की भांति  देवता भी 
सात्विक, राजसिक, तामसिक तीन प्रकार के होते हैं.

इन्द्र की पूजा जब तक होती रही, तब तक तो ठीक. 
पूजा न होने पर ब्रज को तहस-नहस करने चला था.

लोक में भी दुर्गा-काली आदि की पूजा में यदि
भूल हो जाए तो ये तुरंत अनिष्ट करती हैं-यह प्राय देखा गया है.

लेकिन सात्विक देवता, विशेषकर देवताओं के भी देव भगवान श्री कृष्ण या राम
की पूजा-भक्ति करो तो वे प्रसन्न. न करो तो भी प्रसन्न. 

इनकी पूजा न करने से ये अनिष्ट नहीं करते. 
सर्व श्रेष्ठ हैं तो फिर क्यों भागना इधर-उधर ?

DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

SAJJAN YA CRIMNAL

Thursday, 22 March 2012

196. BEL KA PHAL



बेल का फल 

पेड़ से गिरा हुआ  बेल का फल आँगन में पड़ा हो.
तो  कोई भी बालक उसे उठाकर 
स्वाभाविक ही मुंह में डालता है.

ऐसा करने से

१.उसके दाँत टूटेंगे 
२. मुंह में खून आएगा 
३. पल्ले कुछ नहीं पड़ेगा .लाभ के बजाय हानि होगी 

यदि उसी फल को वह अपनी माता-पिता को लाकर दे 
तो माता उसे छील-छाल कर 
उसका बढ़िया रस उस बालक को पिलाएगी. 
परिणामत न दाँत टूटे, न खून
निकला अपितु आनंद एवं बल वृद्धी होगी.

इसी प्रकार बालक-साधक या प्रारंभिक साधकों को 
अपने गुरुदेव, वरिष्ठ संत विद्वानों के आश्रय 
में, अनुमति में, मार्गदर्शन में, साधनों का अनुष्ठान, 
ग्रंथों का अध्यन करना चाहिए.
अन्यथा वही हाल होगा जो बालक का होता है.

फिर लोग शिकायत करते है की आप तो कहते हो ये फल है, 
लेकिन इसके खाने से तो मेरे दन्त टूट गए.

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ नांगिया

ऐसी और बहुत सारी पोस्ट्स रेगुलर पढने के लिए कृपया SHRIHARINAM group join करें 

Monday, 19 March 2012

195. ahankar se prem-prapti




अहंकार से भगवत्प्राप्ति
मैं धनवान हूँ, मैं बहुत प्रतिष्ठित व्यक्ति हूँ, मैं बहुत सुन्दर हूँ, 
समझदार हूँ, ब्राह्मण हूँ, छत्रिय हूँ 
विद्vaan हूँ...... 
आदि आदि जितने भी लोकिक अहंकार  हैं -ये सब नर्क के द्वार  हैं 

"मैं श्री कृष्ण का दास हूँ"
यह एक ऐसा अहंकार हैं कि जो श्री कृष्ण को, 
श्री कृष्ण प्रेम को प्राप्त करा देता है.

हमें मनुष्य शरीर मिलना ही इस बात का प्रमाण है कि 
भगवान् की कृपा हम पर हैं,
नहीं होती तो हम कुत्ता, बिल्ली आदि पशु पक्षी होते.

साथ ही 'जीवेर स्वरुप हय  नित्यकृष्णदास' 
हम स्वरूपत श्रीकृष्ण के दास ही हैं. 
यह अहंकार रखते हुए सदैव श्रीकृष्ण की 
सेवा में यदि तन्मय रहेंगे तो प्रेमप्राप्ति हो ही जाएगी.
 यह शरीर कृष्ण प्रेम प्राप्ति के लिए ही मिला है 

वैसे  भी अहंकार स्रष्टि की रीढ़ की हड्डी है 
यह न तो नष्ट हो सकता है, न इसे नष्ट करना है,
 इसे बस सही दिशा में मोड़ना है.
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

 ahankar se prem-prapti

Saturday, 17 March 2012

194. vrindaban k vriksh



PRACTICAL

विज्ञान के सिद्धांत पहले हम पुस्तकों में पढते हैं,फिर उन्हीं सिद्धांतों को प्रयोगशाला में जाकर practical करते हैं.
ऐसा करने से वह सिद्धांत सत्य सिद्ध तो होता ही हैसाथ ही हमारे दिल-दिमाग में पक्की तरह बैठ भी जाता है.

श्री मद्भागवत में वर्णन है कि उद्धव ने वृन्दावन में गुल्म, लता, औषधि रूप में अपना जन्ममाँगा है.
उद्धव के साथ-साथ अनेक संतों ने भी ऐसा माँगा होगा और उन्हें लता  औषधि, पौधे के रूप में जन्म मिला भी होगा.

इस theoritical बात का practical यदि देखना है तो भगवद्भक्ति प्राप्त संतों का संग प्राप्त करना होगा. 
बाबा श्री चंद्रशेखर जी ने अपने दान्तुन के लिए भी कभी किसी वृक्ष को नहीं तोडा. 
प्रथम तो अनेक वर्षों तक ब्रज रज से ही मंजन करते रहे. बाद में बाज़ार से लाये पाउडर से मंजन किया.

भक्ति-विषयक सिद्धांतों की प्रयोगशाला हैं-भगवद्भक्ति प्राप्त साधू-वैष्णव संत गन .
इनका प्रकष्ट संग करने से ही सभी सिद्धांतों  का प्रक्टिकल स्वत हो जाता है.


संतों का संग करने पर फिर 
वृन्दाबन के वृक्ष को मर्म न जाने कोय, डाल डाल अरु पात-पात पर राधे-राधे होय'
इस बात पर कोई संशय नही रहता और वृक्ष 'राधे-राधे' कैसे बोलते है यह बात समझ आ जाती है.

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

वृन्दावन के वृक्ष

Thursday, 15 March 2012

193. sakaam se nishkaam = dhruv



सकाम से विशुद्ध तक 

न करने से अच्छा है सकाम-भक्ति करना
सकाम यानी कामना सहित = भक्ति करके अपने लिए कुछ मांगना

विशुद्ध यानी= भक्ति करके भक्ति मांगना. भक्ति = प्रेम 
प्रेम केवल प्रभु से, सुख या आनंद केवल प्रभु का, प्रसन्नता केवल प्रभु की.

अपनी कामना की पूर्ति के लिए भक्ति करते करते एक समय ऐसा आता है जब साधक को कामना की असारता का
ज्ञान हो जाता है, और वह प्रभु प्रेम मांगने लगता है

ध्रुव इसका उदाहरण है.
 ध्रुव ने राज्य व् पिता की गोदी में बैठने के लिए भक्ति प्रारम्भ की थी
भक्ति करते-करते जब भगवान् प्रकट हुए तो 
उन्होन्हें भगवान् के चरणों की सेवा ही मांगी.

भगवान् ने भक्ति तो दी ही, साथ में उन्हें राज्य-सुख भी दिया,
 जिससे लोगो को यह भ्रम न हो जय की भगवान्
भक्ति ही देते है, लौकिक सुख नहीं देते.

जो मांगोगे वही मिलेगा, लेकिन भाई ! इतने बड़े भगवान्  से छोटी-मोटी चीज़ मांगने में क्या समझदारी है ?
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
made to serve ; GOD  thru  Family  n  Humanity
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

सकाम से विशुद्ध तक

Wednesday, 14 March 2012

192. rajaa se aashaa



राजा से आशा छोडिये

अब वह समय नहीं रहा की राजा या प्रशाशक प्रजा के हित की बात सोचें 

पहले भी नहीं था, लेकिन फिर भी कुछ राजा ऐसे
अवश्य हुए हैं | लेकिन कलियुग मैं एसी कल्पना करना व्यर्थ है 

आजकल राजा या प्रशासक का टारगेट सड़क बनवाने से मिलने वाली अपनी कमीशन पर रहता है 
आनुसंगिक रूप से सड़क बनने का लाभ प्रजा को मिल जाय तो ठीक, न मिले तो तो ठीक 

इसलिए इनसे आशा छोडिये और स्वयं पर स्वयं का शासन रखिये |
ज्यादा ज्यादा छोटी - छोटी निजी संस्था या 
संगठन बनाइये और अपनी व्यवस्था दुरुस्त रखिये | 

-- 

JAI SHRI RADHE


DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
made to serve ; GOD  thru  Family  n  Humanity
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

191. PREM


पंचम पुरुषार्थ प्रेम 

पुरुष का लक्ष्य क्या है, उसे क्या प्राप्त करने पर उसके जीवन की सफलता है - इसके 
लिए यह जानना आवश्यक है कि यह पुरुष या "जीव" है कोन ?

जीवेर स्वरूप सदा  नित्य कृष्णदासं 
यह पुरुष श्रीकृष्ण का नित्य, सदा सदा से दास है | 

दास का काम है सेवा | न कि सब समाया मांगते ही रहना 
सेवा भी ऐसी जिससे प्रभु का सुख विधान है स्वामी कि अनुकूलता हो, स्वामी को आनंद हो 

सेवा का ही नाम भक्ति है 
केवल और केवल स्वामी का सुख, स्वामी कि अनुकूलता, स्वामी के आनंद को द्रष्टि
मैं  रखकर की जाने वाली सेवा या भक्ति  ही विशुद्ध  भक्ति है, प्रेम भी भक्ति का ही पर्याय है 
या यों कहे की प्रेम के कारन ही ऐसी भक्ति की जा सकती है अत: 
पंचम और सर्वश्रेठ पुरुषार्थ है अपने स्वामी भगवान् से  'प्रेम' |

पूर्व के चारों पुरुषार्थों का सामंजस्य  कुछ कुछ इस प्रकार भी कर सकते है 
धर्म पूर्वक अर्थ अर्जित करो, उस अर्थ से अपनी उचित कामनाओं की पूर्ति करके उस कामनाओं 
से मोक्ष्य या मुक्ति पा लो मन भर लो और अंत मैं पंचम पुरुषार्थ प्रेम या भक्ति मैं ही जीवन को लगा लो 
तो तुम्हारा पुरुष होना(पुरुषार्थ) सफल हो जायेगा | 

-- 
JAI SHRI RADHE


DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
www.facebook.com/dasabhasgirirajnangia

PREM

Tuesday, 13 March 2012

190. MOKSH = MUKTI



मोक्ष 

मोक्ष यानि मुक्ति ! मुक्ति यानि दुखों की निवृत्ति |
धर्म - अर्थ - काम मै लगते लगते या दुसरे पुरुषों को लगे देखकर, उनके 
दुःख, टेंशन, परेशानी, को देखकर कुछ पुरुष इन दुखों के मूल कारण इस शरीर के जन्म होने से ही मुक्ति चाहते हैं

ये आत्मा न शरीर धारण करेगी और न दुख होगा - यह सोचकर वे मुक्ति की कामना करते हैं | 
लेकिन मुक्ति को भी भुक्ति या कामना  की श्रेणी मैं ही रखा जाता है
 "भुक्ति - मुक्ति" स्प्रहा यावत पिशाची हृदि वर्तते | भोग या कामना या मुक्ति ये तीनों पिशाचि है |

ये निवृति परक अवश्य है, लेकिन इसमें भी अपने लिए कुछ चाहना तो है ही, कामना तो है | 
हा कुछ पाने की नहीं, अपने दुःख से छुट भी गए तो वेसे ही है 
जैसे बैंक का लोन उतर जाना | लोन उतर जाने का अर्थ एफ. डी. बनना नहीं है | 

दुःख समाप्ति का अर्थ सुख प्राप्ति नहीं है सुख प्राप्ति कुछ और ही है 
मिलता है सच्चा सुख केवल भगवान् तुम्हारे चरणों मैं 

आगे पंचम पुरुषार्थ  प्रेम पर विचार करेंगे 

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
DASABHAS@GMAIL.COM

 MOKSH = MUKTI

Saturday, 10 March 2012

189. kaam




 काम 

स्रष्टि मैं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो काम यानी कामना | इच्छा | चाहे वह
शरीर सुख भोग से सम्बंधित हो या यश, मान, प्रतिष्ठा, भोतिक सुख सुविधाओं से सम्बंधित हो,

जीवन भर अपनी कामनाओं की पूर्ति मैं येन केन प्रकारेण लगे रहते हैं 
इसके लिए वे धन कमाते भी है और धन मारते भी हैं, ऋण  भी लेते हैं | अन्याय अधर्म करते हैं |

कैसे भी ये इच्छा पूरी हो बस ! 
लुट जाएँ, पिट जाएँ, ऋणम कृत्वा घ्र्तम पिबेत

कामना भी एक एसी चीज है कि एक पूर्ण हुई, दूसरी खड़ी हो गई | 
दूसरी पूर्ण हुई, तीसरी खड़ी हो गई कामनाओं का अंत नहीं है | 

अर्थ - धर्म - काम ये तीन प्रवत्तिपरक   हैं | 
आगे मोक्ष् पर विचार करेंगे |

धर्म पूर्वक 
अर्थ उपार्जन करके अपनी उचित 
कामनाओं को पूर्ण कर उनसे 
मोक्ष पाना ही बहुत नहीं  है

इसके आगे भी है , कल चर्चा करेंगे.

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

kaam, काम

Saturday, 3 March 2012

188. ARTH


अर्थ
कुछ मनुष्य ऐसे होते हैं, जो पैसा कमाना ही जीवन का उद्देश्य समझते है, उसी में लगे रहते हैं | 
और जीवन को सफल समझते हैं |

धन कमाने के लिए ये कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं | मन - सम्मान, पिता - पुत्र, रिश्ते
 - नाते, धर्म अधर्म सब गौण  करते हुए पैसा - पैसा करते रहते हैं 

जिनका उद्देश्य धन होता है वे शायद उस धन का उपयोग भी नहीं करते हैं आज एक लाKH अब एक करोड़  अब सों करोड़ हो गया, 
अब -इतना हो जायेगा, अपने तन मन को 
कष्ट देकर भटकते रहते हैं और उस धन को बिना भोगे
 या तुलना में कम खर्च 
करते हुए म्रत्यु को प्राप्त होते हैं | 


dhan ki 3 gati hai

1. sarvottam - daan

2. madhyam - bhog ya swayam par kharch karke 
bhautik sukh prapt karna

3. adham -  na dan doge, na sukh bhogego to chhod jaoge to sarkar le jayegi yaa chor le jayenge

आगे  kaam  पर विचार करेंगे |

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia


Friday, 2 March 2012

187. dharm, arth, kam, moksh



धर्म अर्थ काम मोक्ष 

धर्म अर्थ काम ये तीनों प्रवत्तिपरक पुरुषार्थ कहे गए हैं 
पुरुशार्थ यानि पुरुष होने का अर्थ या लक्ष्य या  पुरुष को क्या प्राप्त करना है 
जिससे उसका पुरुष होना या जीवन सफल मन जाय |

१. धर्म - अपने आश्रम,गृहस्थ या वानप्रस्थ या ब्रहमचर्य या संन्यास के धर्मों नियमों का पालन करना |
 अपनी जाती - ब्राह्मन, वैश्य, क्षत्रिय,शुद्र के धर्मों का पालन करना, सदचार्य, दान 
सत्कर्म करना - साधारनतया धर्म कहलाता है
इसका पालन करने वाले को स्वर्ग प्राप्त होता है |
ज्यादा धर्म करने वाले को स्वर्ग मैं ज्यादा सुविधाए कम वाले को कम सुविधाए दी जाती हैं | 
फल भोगने के बाद उसे पुन: नीचे के लोकों मैं गिरा दिया जाता है | 

धर्म अर्थ काम मोक्ष्य : चारों का भगवान् के सुख, भगवान् की अनुकूलता, भगवान् की भक्ति से सीधा सम्बन्ध नहीं है |
 न ही ये भक्ति के अंग हैं | 
भक्ति - भजन, वह भी विशुद्ध एक प्रथक चीज है | 

आगे एक दो दिन में  अर्थ पर विचार करेंगे |

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
www.shriharinam.com