✔ *विजय
में कृपा के दर्शन* ✔
▶ दासाभास के पिता जी के एक मित्र थे,
उन्होंने
किसी सेठ से कुछ रुपए उधार लिए थे । उस समय में उधार के रूप में ₹500 भी पर्याप्त होते थे ।
▶ सेठ जी भी वेश्नव वृत्ति के थे और
पिताजी के मित्र भी वैष्णव थे । समय आने पर पिताजी के मित्र ने उन सेठ जी को जो भी
उधार रुपए लिए थे वह वापस कर दिए । उसकी ब्याज आदि न लेनी थी न देनी थी ।
▶ विश्वास का जमाना था । कोई लिखा पढ़ी
नहीं थी समय चलता रहा । साल दो साल बाद कहीं उन सेठ जी को ऐसा लगा कि इस वैष्णव ने
अभी तक मेरी राशि नहीं लौटाई है ।
▶ उन्होंने दासभास के पिताजी के मित्र से
कहा भइया काफी समय हो गया आपने ज़िक्र भी नहीं किया आप कृपा करके मेरी वह राशि वापस
कर दें ।
▶ वैष्णव तो भौचक्का रह गया और उसने कहा
सेठ जी मैंने तो आपको राशी फला फला दिन 2 साल पहले ही वापस कर दी थी । आप वहां
घर में बैठे थ, मैं गया था और मैंने आपको राशि देनी थी ।
▶ सेठ जी को बिल्कुल विस्मृति हो गई और
उन्होंने डराया-धमकाया । दासाभास के पिताजी से भी कहा । अंततः उस पर मुकदमा ठोक
दिया ।
▶ कोर्ट में डेट लगने लगी । सेठ जी को
विस्मृति और इस वैष्णव को अफसोस । बेईमान दोनों में से कोई न था । एक बस घटना चक्र
होना था।
▶ अंतिम निर्णय होना था आज के दिन । एक परम सिद्ध संत स्वामीजी हुआ करते थे ।
स्वामी ललित लडैती जी, वह वैष्णव उनके पास गया और रोया के ऐसे ऐसे
मैंने वह राशि वापस कर दी थी ।
▶ आज फैसला होना है यदि मुझे दोबारा पैसे
देने पड़ गए तो मेरे पास तो आज इतनी राशि भी नहीं है ।
▶ स्वामी जी ने उनकी आंखों में आंखें
डालकर पक्का कराया के क्या यह बात सही है । स्वामी जी से बोला मैं अपने बच्चों की
कसम, अपनी कसम एक दम सही है ।
▶ स्वामी जी ने बोला चलो जाओ आज की डेट
देखो । देखते हैं क्या होता है । कोर्ट में पेश हुए । जज ने अंतिम बार पूछा कि आप
अंतिम बार बताइए आपने पैसे दिए तो कब दिए, कहां दिए, इसने साफ-साफ
वही बात बताई । इतना समय था । में इन के घर गया, यह कुर्सी पर
बैठे हुए थे फलाना ढिकाना सारा विवरण देकर मैंने इनको राशि वापस थी ।
▶ पता नहीं क्या हुआ । सेठ जी की
विस्मृति स्मृति में बदल गई और सेठ जी की तो आंखें चौड़ गई और बीच में ही बोल उठे
। हां हां हां हां । जज साहब । हां । इसने मुझे पैसे दिए । मेरी गलती है मैं भूल
गया । अभी इस के याद दिलाने पर मुझे याद आ गया । मैं माफी चाहता हूं । मेरा इससे
कोई लेना-देना नहीं है । इस््ने पैसे दे दिए थे ।
▶ केस खारिज हो गया। सेठ जी ने खेद
व्यक्त किया । दोनों अपने घर आ गए । यह सब एक संत की कृपा से हुआ ।
▶ लेकिन वह वैष्णव स्वामी जी से कहने लगे
के इस सेठ को अब मैं मज़ा चखाऊंगा । इसने मेरी बदनामी की । मेरे को परेशान किया ।
मैं इस पर मानहानि का दावा करूंगा ।
▶ स्वामी जी ने कहा । बेटा, ठाकुर
जी की कृपा से उसकी स्मृति लौट आई तेरा काम
बन गया । अब यह इस प्रकार का अहंकार या अभिमान करना नितांत अनुचित है ।
▶ और सेठ जी वैष्णव है । बेईमान नहीं है
। उसकी विस्मृति के कारण यह सब हो रहा था । वह यदि स्मृति आने पर भी नहीं मानता तो
तुम क्या कर लेते । उसने तुम से ब्याज भी नहीं ली ।
▶ अतः ठाकुर जी की कृपा का अनुभव करो और
भजन में लगो । यह मान अपमान वैष्णव के लिए शोभा नहीं देता ।
▶ इस कथा से यह एक हमें उपदेश मिलता है
कि हमारे जीवन में भी इस प्रकार की घटनाएं होती हैं । कभी ऐसा हो तो ठाकुर की कृपा
का ही अनुभव करना चाहिए ।
▶ हमें ईगो-या सामने वाले को बार बार
नीचे दिखाने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए ।
॥ जय श्री राधे ॥
॥ जय निताई ॥
लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
॥ जय निताई ॥
लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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