✔ *स्वतंत्र एवम् गणतंत्र* ✔
▶ परम् स्वतंत्र हैं हमारे ठाकुर श्री कृष्ण । समस्त सृष्टि के स्वामी । होने न होने वाले कार्य को भी करने में समर्थ ।
▶ जेसे 7 वर्ष की आयु में 7 दिन तक कन्नी ऊँगली पर गिरिराज
▶ हम उन्ही के अंश हैं । वे पूर्ण स्वतंत्र हैं । हम आंशिक स्वतंत्र हैं ।
हम इतने स्वतंत्र अवश्य हैं कि अपने हित अनहित को जान कर निर्णय ले सकें
▶ हमारा संविधान भी संतों ने बनाया हुआ है । लेकिन माया के कारण हम भृमित होकर अपनी स्वतंत्रता का दुरूपयोग करते हैं
▶ स्वतंत्रता के सदुपयोग में कल्याण है । दुरूपयोग में कष्ट है । हम दोनों के चुनने में भी स्वतंत्र हैं । अब निर्णय आपका । हमारा कि हम क्या चुनें आनंद या कष्ट ।
▶ आनंद स्वरूप श्रीकृष्ण के नित्य दास हम उनके नाम का आश्रय यदि ले लें तो इससे बड़ा आनंद कुछ और नही
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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