✔ *श्रीकाशीश्वर पंडित के श्रीगौरगोविंद* ✔
▶ यह महाप्रभु के अंतरंग भक्तों में हैं । आप पूरी धाम में विराजते थे । महाप्रभु जी ने इन्हें आदेश दिया कि आप वृंदावन जाओ और वहां वास करो ।
▶ इन्होंने कहा प्रभु मैं आपको छोड़कर कहीं भी नहीं जाऊंगा । जहां आप हो वही मेरा वृंदावन है। लेकिन प्रभु ने कहा काशीश्वर आप को वृंदावन जाना ही होगा ।
▶ क्योंकि श्री वृंदावन धाम अपने आप में साध्य हैं श्री वृंदावन धाम वास प्राप्त हो गया और चिन्मय दृष्टि प्राप्त हो गई तो समझो ठाकुर प्राप्त हो गए । तद्धाम वृन्दावनं ।
▶ इसीलिए हमारा वास्तव्य धाम श्री वृंदावन ही है ।अतः आप वृंदावन जाओ । लेकिन काशीश्वर किसी भी प्रकार से समझने को तैयार नहीं हुए।
▶ बोले मैं तो आपके साथ ही रहूंगा । तब इनका आग्रह देखकर महाप्रभु जी ने इनको एक विग्रह प्रदान किया । और उस विग्रह को विराजमान करके काशीश्वर ने महाप्रभु को और उस विग्रह को साथ साथ अन्न प्रसाद आदि भोग लगाया ।
▶ महाप्रभु के साथ उस श्रीविग्रह ने भी महाप्रभु की भांति ही प्रसाद पाया । तब महाप्रभु जी ने कहा कि देखो यह विग्रह मेरा ही साक्षात स्वरुप है ।
▶ तुम्हें मेरे साथ रहना है ना । तुम इस विग्रह को ले जाओ, समझो मैं तुम्हारे साथ हूं । वह विग्रह श्रीकृष्ण विग्रह था ।
▶ तब काशीश्वर को विश्वास हो गया और उस विग्रह का नाम रखा श्री गौर गोविंद । वह गौर गोविंद विग्रह छोटा सा विग्रह है ।
▶ श्रीगोविंद मंदिर जयपुर में पूजित और सेवित होता है उस के दर्शन अनेक बार यहां पर आए हैं उस विग्रह को लेकर काशीश्वर श्रीधाम में आए । और सदैव श्री महाप्रभु की अनुभूति मानकर उसकी पूजा करते हुए अखंड श्रीधाम वास किया ।
▶ उन्होंने ही इस विग्रह को श्री गोविंद देव के दक्षिण हाथ की तरफ विराजमान किया था जो आज भी विराजित है ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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