✔ *साधक, साधना, साध्य* ✔
▶ यह तीनों ही आवश्यक है ।
साधक है जीव, जिसने साधना करनी है ।
साधना है भजन और
साध्य है प्रिया लाल जू का सुख
▶ यह बात जब जीव को समझ आ जाती है और उसको अपना स्वरूप समझ आ जाता है कि मेरा जीवन प्रियालाल के सुख के लिए ही मुझे मिला है ।
▶ तो उसके लिए वह उपाय ढूंढता है । कि प्रिया लाल को मैं कैसे सुख प्रदान कर सकता हूं ।
▶ प्रिया लाल को सुख देने वाले जो भी उपाय हैं उनको साधन कहा गया है ।
▶ साधन में तब तक प्रवृत्ति नहीं होती जब तक प्रिया लाल में दासाभास का आकर्षण नहीं होता ।
▶ प्रिया लाल में आकर्षण तब तक नहीं होता जब तक उनकी महिमा का ज्ञान नहीं होता ।
▶ उनकी महिमा का ज्ञान कराने के लिए दो ही उपाय हैं । एक हैं संत । दूसरे हैं ग्रंथ ।
▶ संत से भी बेहतर है ग्रंथ । क्योंकि संत की उपलब्धि में कठिनाई हो सकती है । समय की पाबंदी हो सकती है । लेकिन ग्रंथ राउंड द क्लॉक आपके पास है ।
▶ संत शायद कभी भूल भी कर जाएं । लेकिन ग्रंथ कभी भूल नहीं करते हैं । जब भी सन्त से मिलें तो उनसे पूछे की हम कौन सा ग्रन्थ पढ़ें । ऐरे गेरे ग्रन्थ अपने मन से न पढ़े ।
▶ इस प्रकार ग्रंथों के अध्ययन से और संतो के संग से प्रिया लाल की महिमा का दासाभास को ज्ञान होता है ।
▶ प्रिया लाल की महिमा के ज्ञान के साथ-साथ दासाभास को अपने स्वरूप का ज्ञान होता है । तब साधन में स्वाभाविक ही रुचि हो जाती है ।
▶ बिना जाने, बिना समझे भी यदि साधन किया जाए तो फल तो देता ही है लेकिन विलंब होता है ।
▶ अतः सबसे पहले स्वयं को जानें,
फिर प्रिया लाल को जाने ।
उनकी महिमा को जाने ।
फिर उस को प्राप्त करने का साधन जाने ।
और उस साधन में यदि हम जुट जाएं तो हमारा जीवन सफल हो जाए और आनंद से भर जाए ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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