Tuesday, 17 January 2017

Bhagawan Ki Kripa ke Teen Dwar


Bhagawan Ki Kripa ke Teen Dwar
भगवान की कृपा के तीन द्वार

भगवान की कृपा के तीन द्वार

1⃣ शास्त्र
शास्त्र या ग्रन्थ वे हैं जो या तो अपौरुषेय हैं या जो विज्ञानी अर्थात् अनुभवी संत । आचार्यों द्वारा लिखे गए हैं ।

धनवान सेठों या नाटकीय लोगों द्वारा अपने यश हेतु ऊल जुलूल लिखे गए ग्रन्थ शास्त्र नही हैं ।

शास्त्रों के अध्ययन से दासाभास सहित सबको भगवान का ज्ञान होता है । भजन करने की आवश्यकता और विधि एवं रहस्यों का ज्ञान होता है ।

इसके बाद । भगवान की महिमा का । अपने दुर्लभ मानव जीवन का ज्ञान होने पर ही मानव भजन म् प्रवृत्त होता है । अतः सबसे पहले शास्त्र कृपा ।

2⃣ गरु
अथवा संत वैष्णव द्वारा भी हमे कृपा की प्राप्ति होती है । इनकी सेवा, इनकी आज्ञा पालन से ये हमे भजन का मार्ग बताते हैं । क्योंकि इन्होंने वह मार्ग देखा होता है, इन्हें अनुभव होता है ।

विशेष कर सच्चे संत निरपेक्ष होते हैं, करुणा शील होते हैं । वे चाहते हैं कि जो आनंद मुझे मिल रहा है वह इसे भी मिले ।

अतः व्यावसायिक गुरु या कथावाचक जो अपनी गृहस्थी चलाने के लिए अध्यात्म में आये हों, उनसे बचते हुए सच्चे सन्तों का संग अवश्य करना चाहिए । यूंकि कृपा अवश्य प्राप्त करनी ही है दासाभास को ।

3⃣ आत्म कृपा
और सबसे महत्वपूर्ण है कि हम अपने पर स्वयं कृपा करें । जो मुर्ख हैं, जो अज्ञानी हैं, जिन्हें जीवन का रहस्य , उद्देश्य नही पता चल पाया, उनकी बात छोड़िये, दासाभास और आपको तो पता चल गया । फिर भी दासाभास भजन म नही लग रहा, भटकता है इधर उधर ।

यहाँ अपने ऊपर अपनी कृपा चाहिए कि दासाभास, बहुत हो गया , अब लग जा । अथवा शरीर म विराजमान जो आत्मा है, उसकी आवाज सुनी जाये । उसकी कृपा ही है ये कि वह आत्म तत्व हमे प्रति क्षण सावधान करता है ।

यदि हम बिलकुल नही सुनते हैं । मद म अंधे हो जाते हैं तो फिर आत्म कृपा भी शांत हो जाती है ।

अतः बहुत हो गया । दासाभास अब तो चेत जा । सावधान हो जा । कोशिश करके इन तीन कृपाओं को प्राप्त करने का प्रयास कर तो फिर दिल्ली अधिक दुर् नहीं ।

शीघ्र ही जीवन का लक्ष्य प्रिया लाल जु की सेवा तुझे प्राप्त होनी ही है ।

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

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