भगवान की कृपा के तीन द्वार |
भगवान की कृपा के तीन द्वार
1⃣ शास्त्र
शास्त्र या ग्रन्थ वे हैं जो या तो अपौरुषेय हैं या जो विज्ञानी अर्थात् अनुभवी संत । आचार्यों द्वारा लिखे गए हैं ।
धनवान सेठों या नाटकीय लोगों द्वारा अपने यश हेतु ऊल जुलूल लिखे गए ग्रन्थ शास्त्र नही हैं ।
शास्त्रों के अध्ययन से दासाभास सहित सबको भगवान का ज्ञान होता है । भजन करने की आवश्यकता और विधि एवं रहस्यों का ज्ञान होता है ।
इसके बाद । भगवान की महिमा का । अपने दुर्लभ मानव जीवन का ज्ञान होने पर ही मानव भजन म् प्रवृत्त होता है । अतः सबसे पहले शास्त्र कृपा ।
2⃣ गरु
अथवा संत वैष्णव द्वारा भी हमे कृपा की प्राप्ति होती है । इनकी सेवा, इनकी आज्ञा पालन से ये हमे भजन का मार्ग बताते हैं । क्योंकि इन्होंने वह मार्ग देखा होता है, इन्हें अनुभव होता है ।
विशेष कर सच्चे संत निरपेक्ष होते हैं, करुणा शील होते हैं । वे चाहते हैं कि जो आनंद मुझे मिल रहा है वह इसे भी मिले ।
अतः व्यावसायिक गुरु या कथावाचक जो अपनी गृहस्थी चलाने के लिए अध्यात्म में आये हों, उनसे बचते हुए सच्चे सन्तों का संग अवश्य करना चाहिए । यूंकि कृपा अवश्य प्राप्त करनी ही है दासाभास को ।
3⃣ आत्म कृपा
और सबसे महत्वपूर्ण है कि हम अपने पर स्वयं कृपा करें । जो मुर्ख हैं, जो अज्ञानी हैं, जिन्हें जीवन का रहस्य , उद्देश्य नही पता चल पाया, उनकी बात छोड़िये, दासाभास और आपको तो पता चल गया । फिर भी दासाभास भजन म नही लग रहा, भटकता है इधर उधर ।
यहाँ अपने ऊपर अपनी कृपा चाहिए कि दासाभास, बहुत हो गया , अब लग जा । अथवा शरीर म विराजमान जो आत्मा है, उसकी आवाज सुनी जाये । उसकी कृपा ही है ये कि वह आत्म तत्व हमे प्रति क्षण सावधान करता है ।
यदि हम बिलकुल नही सुनते हैं । मद म अंधे हो जाते हैं तो फिर आत्म कृपा भी शांत हो जाती है ।
अतः बहुत हो गया । दासाभास अब तो चेत जा । सावधान हो जा । कोशिश करके इन तीन कृपाओं को प्राप्त करने का प्रयास कर तो फिर दिल्ली अधिक दुर् नहीं ।
शीघ्र ही जीवन का लक्ष्य प्रिया लाल जु की सेवा तुझे प्राप्त होनी ही है ।
॥ जय श्री राधे ॥
॥ जय निताई ॥
लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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