☑️ फिसलन ☑️
☑️ अड़चानानंद जी ने
लिखा
न मैं कोई आचार्य हूँ,
न गोस्वामी,
न ब्राह्मण, न सन्त,
मैं तो आप सब
जैसा ही एक
साधक हूँ ।
आप फिर भी
सुरक्षित हो
☑️ लोग मुझे
श्रेष्ठ समझने लगे हैं ।
मेरे इर्द गिर्द
बहुत फिसलन है ।
पता नहीं कब
इसमें मैं
फिसल जाऊँ
और स्वयं
अपने हाथ से
निकल जाऊँ ।
☑️ अतः आपकी
सबसे बड़ी सेवा
यही है कि मुझको
संभाले रहें ।
मुझे फिसलने से
बचाते रहें ।
मैं फिसलूँ ही नहीं
यदि एक बार
फिसल गया तो फिर
संभल नहीं पाऊँगा।
🙏 समस्त वैष्णव वृन्द को मेरा सादर प्रणाम
🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय निताई ।। 🐚
🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज
LBW - Lives Born Works at Vrindaban
समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम
धन्यवाद!!
www.shriharinam.com
संतो एवं मंदिरो के दर्शन के लिये एक बार visit जरुर करें !!
अपनी जिज्ञासाओ के समाधान के लिए www.shriharinam.com/contact-us पर
क्लिक करे।।
No comments:
Post a Comment