Thursday, 3 May 2018

Do Aankhe । दो आंखे


☀️  दो आँखें  🌝

🌝 एक वैष्णव हेतु आचार एवं प्रचार
अपनी दो आँखों के समान है ।
किसे बंद करे, किसे खोले ?

☀️ यदि अन्तर्मुखी होकर
भजन करेगा तो
'जीवे दया' कैसे होगी ?
अन्य जीव- जगत का उद्धार
कैसे होगा, करना ही है ।
सन्त का स्वभाव है

🌝 और यदि प्रचार में ही
लग जायेगा तो भजन कब करेगा ।
भजन का आचरण छूट जायेगा ।

☀️ लेकिन शास्त्र सन्त कहते हैं कि
दोनों में संतुलन रखना होगा
यदि प्राथमिक साधक हो तो
आचरण अधिक, प्रचार कम
और जैसे-जैसे अनुभव
मिलता जाए प्रचार भी करो ।

🌝 इतना प्रचार नहीं कि
आचरण-भजन छूट जाय,
एक आँख फूट जाय,

☀️ हमारे पूर्व के सन्तों ने
गोस्वामीपाद ने निष्ठा पूर्वक
भजन आचरण किया और
प्रचार हेतु अनन्त ग्रंथों की
रचना की है जिससे हम
भजन की शिक्षा ले रहे हैं ।

🌝 अतः आचरणशील प्रचारक बनना है,
आचरण हीन नहीं । यदि भजन छूटे
आचरण छूटे तो भले ही प्रचार कम
कर दें। लेकिन भजन बंद तो क्या
कम भी नहीं होना चाहिए ।

🙏 समस्त वैष्णव वृन्द को दासाभास का प्रणाम

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय  निताई ।। 🐚

🖋 लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vrindabn
समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

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