🍁 गुरु - शरणागति 🍁
🍁 भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से जब उनके भक्तजनों का संग
प्राप्त होता है और उनके मुख से भक्ति की महिमा सुनी जाती है,
तो उस भक्ति को प्राप्त करने की अभिलाषा जाग उठती है । उसकी
पूर्ति के लिए मनुष्य को सद्गुरु की शरण ग्रहण करनी चाहिए;
क्योंकि श्री गुरुचरण का आश्रय लेने वाला व्यक्ति ही श्रीभगवान
तथा उनकी भक्ति के तत्व को जान सकता है ।।
🍁 मनुष्य इस लोक में अनेक दुखों का नित्य अनुभव करता है
और शास्त्रों में सुना जाता है कि परलोक स्वर्ग नरकादि लोकों में भी
असहाय यातनाएँ भोगनी पड़ती हैं। इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को इन
समस्त दुःखों से छुटकारा पाने की इच्छा करनी ही चाहिए ।।
🍁 श्रीदत्तात्रेय जी ने कहा है ( श्री भा0 11। 9 । 29 ) - बुद्धिमान व्यक्ति
को अनेक जन्मों के बाद अति दुर्लभ मनुष्यतन की प्राप्ति होती है ।
मनुष्य तन ही एक मात्र परमार्थ या भगवत् प्राप्ति का कराने
वाला है । किन्तु यह मनुष्य तन भी नाशवान है । इसलिए जब तक
इस तन की मृत्यु नहीं होती तब तक यत्नपूर्वक संसार के बन्धन
से मुक्त होने का शीघ्र उपाय करना चाहिए । अनेक प्रकार के विषय
भोग तो पशु आदि समस्त योनियो में भी प्राप्त होते हैं ।।
🍁 स्वयं भगवान ने भी कहा है, (श्री भा0 11 । 20 । 17) समस्त
मंगलों का मूल मनुष्य तन अति दुर्लभ है, मेरी कृपा से सहज में
नौका के रूप में यह प्राप्त होता है, गुरु रूप कर्णधार ( केवट )
विद्यमान है, फिर मेरा स्मरणरूप अनुकूल वायु इस नौका को
प्राप्त है, फिर भी जो मनुष्य इन सब साधनो को पाकर संसार
समुद्र से पार नहीं होता, वह आत्मघाती है, अपनी हिंसा करने
वाला है ।।
( श्रीहरिभक्तिविलास ग्रंथ में वर्णित )
🙏 समस्त वैष्णव वृन्द को मेरा सादर प्रणाम
🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय निताई ।। 🐚
🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vrindabn
धन्यवाद!!
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