Monday, 16 April 2018

Bandhan Bhi Sukhkari


✔  *बन्धन भी सुखकारी*    ✔

▶ सामान्यतः बन्धन दुःख व कष्टकारक ही होता है। इसलिए कृष्ण बन्धना नहीं चाहते थे किन्तु जब उन्होंने मैया का परिश्रम व विकलता देखी तो अपना दुःख भूल कर तत्क्षण बंध गये।

▶ बंध गये तो मैया के अपने रसोईघर आदि के काम में जाने पर सखाओं द्वारा उस बंधन को खोलने का प्रयास भी किया। किन्तु प्रेम बंधन था न ! खुला नहीं ।
कृष्ण ने सोचा बंधन में ही आनंद लो ।
ऊखल को इधर उधर खेचना लुड़काना भी उनका खेल बन गया । उनके प्रिय सखा भी वहाँ थे ही।

▶ यही दो दुःख के कारण थे कि वे बंधना नहीं चाह रहे थे
1 - सखाओं के साथ खेल, जो कि बंधन में भी चल रहा है ।
2 - माखन चोरी, उसका भी रास्ता निकाल लिया ।
सखाओं से कहा कि
रोज मैं चोरी करता था, तुम खाते थे। आज तुम चोरी करके लाओ- मैं खाऊँगा। ऐसा ही हुआ ।
फिर तो कृष्ण भी निश्चिंत हो गये।
बंधन से खुलने की छट-पटाहट भी समाप्त हो गई ।
वैसे भी प्रेम बंधन था न, उसमें तो आनंद ही आनंद था ।

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

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