Saturday, 29 September 2012

252. ARE BABA ! KUCHH KARO !!

ARE BABA ! KUCHH KARO !!

अरे बाबा कुछ करो !

यदि भगवान् चाहते की हम कुछ न करें  तो
हमें एक गोल पत्थर बना कर हिमालय के ऊपर रख देते

हमें आँख, नक्, कान, हाथ, मन, मस्तिष्क 
बुद्धि, वाणी, आदि-आदि देकर सब तरह से लैस 
करके किस लिए भेजा ??

खाली बैठ कर प्रारब्ध-प्रारब्ध रोने के लिए नहीं
अपितु कुछ करने के लिए ये सब दिया है

दिए हुए का उपयोग नहीं करोगे तो अगले जन्म में 
नहिं मिलेगा, मिलेगा भी तो बन्दर की तरह
आँख, नक् आदि सब है, लेकिन किसी काम का नहीं

अतः कुछ करो ! बहुत ही अच्छा हो की भजन करो !!!!!!!!!!
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

Thursday, 27 September 2012

251. shraddhaa


श्रद्धा 

श्री कृष्ण - प्रेम प्राप्त करने की प्रथम सीढी है श्रद्धा
अनेक प्रकार की श्रद्धा का वर्णन शास्त्र में मिलता है

श्री कृष्ण की पूजा करने से समस्त देवताओं की पूजा 
हो जाती है, किसी और की पूजा की कोई आवश्यकता ही
नहीं रह जाती है

जैसे पेड़ की जड़ में जल देने से उस पेड़ के ताना, शाखा, फूल, फल
सब तृप्त हो जाते हैं, सबको अलग-अलग जल देने की ज़रुरत नहीं है

-ऐसी यह श्रद्धा ही कृष्ण प्रेम प्राप्ति की प्रथम सीढ़ी है
इस श्रद्धा के बाद-
साधुसंग
भजन करना
अनर्थों की समाप्ति
निष्ठा
रूचि
आसक्ति
भाव
एवं अंत में प्रेम की प्राप्ति हो जाती है
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

250. ABHISNEH



अभिस्नेह 

महात्मा में अभिस्नेह नहीं होता
महात्मा तो स्नेह की मूर्ती हैं . स्नेह तो उनके हृदय में है. 
उनके रोम रोम में है. 
जैसे आग के पास जाओ तो आंच मिलेगी और तुम्हारी ठण्ड दूर हो जाएगी , 
यह आग का स्वभाव है.

इसी प्रकार महात्मा के पास जाओ  
तो स्नेह तो उसकी आँखों में से झरता है उसकी जीभ में से झरता है . 
उसके रोम रोम से स्नेह की तन्मात्रा निकलती  है. 
जो शुद्ध ह्रदय से जाएगा वह उसमे डूब जाएगा . 

अगर वहां स्नेह नहीं मिलता है तो समझो की 
तुम्हारे मन  में कोई गाँठ पढ़ गयी है. कोई धारना, कोई पूर्वाग्रह 
आकरके ऐसा बैठ गया है की जिससे तुमको वो स्नेह प्राप्त नहीं  हो रहा है. 

यदि गर्मी नहीं मिल रही हो तो हो सकता है की वह आग हो ही  नहीं . 
ऐसे ही यदि स्नेह नहीं है तो पहला कारन तुम्हारे मन की गाँठ . 
दूसरा कारन हो सकता है की वो महात्मा ही ना हो . केवल महात्मा जैसा हो
परन्तु एक बात अवश्य है, महात्मा में "अभिस्नेह" नहीं होता.
जेसे संसारी लोग अपने पुत्र में अटकते है , 
दुसरे के पुत्र में नहीं. 
अपने रिश्तेदार- नातेदार में अटकते है दुसरे में नहीं 
यही "अभिस्नेह" है .
जो महात्मा है वे एक में नहीं अटकते, सब में सामान रहते हैं 
साभार - आनंद बोध  
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Saturday, 22 September 2012

249. SRISHTI K A ADHAAR - BALRAAM



बलराम - सृष्टि के आधार

कल श्री राधा जू का प्राकट्य-दिन : राधाष्टमी है
आज ललिता जू का प्राकट्य-दिन : ललिता-सप्तमी है
कल श्री बलराम जी का प्राकट्य-दिन था

बलराम जू प्रेमा-भक्ति का मूर्तिमान विग्रह हैं
श्री कृष्ण के वस्त्र,अस्त्र,आसन, शैया, पादुका, के रूप में बलराम ही हैं

साथ ही इस समस्त सृष्टि का सीधा संपर्क भी बलराम जू से है
श्री कृष्ण चार रूपों में स्वयं को प्रकट करते हैं
१. वासुदेव. २. बलराम. ३.प्रद्युम्न. ४. अनिरुद्ध

इसमें से बलराम के अंश हैं कारन समुद्र-शाई
कारन समुद्र-शाई के अंश हैं- गर्भोदक शाई
गर्भोदक शाई के अंश है क्षीरोदक शाई विष्णु , ब्रह्मा, महेश
जो श्रृष्टि का पालन, उत्पत्ति व प्रलय करते हैं

सृष्टि के प्रधान तत्व व प्रेमा-भक्ति के मूर्तिमान स्वरूप श्री बलराम जू
को कोटि-कोटि प्रणाम व कृपा की याचना

दाउदयाल  बिरज के राजा , भंग पिये तो ब्रिज में आजा 

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

Thursday, 20 September 2012

248. KRODH KAISE KAM HO ?

248. KRODH KAISE KAM HO ?


क्रोध या तमोगुण कैसे कम हो ?

मधु मक्खियाँ जिस बाग से मधु एकत्र करती हैं, उस बाग में
यदि नीम के पेड़ अधिक है तो उस मधु में 
नीम के गुण भी आ जाते हैं, मधु के गुण तो होते ही हैं.

इसी प्रकार गुलाब के, गेंदा के, अथवा अन्य किसी के गुण उस मधु म होते हैं
साधारणतया वह मधु ही है, laboratory में इस सूक्ष्मता का पता चलता है.

इसी प्रकार हमारे शरीर में बहने वाला रक्त साधारणतया एक जैसा ही लगता है
लेकिन जो भोजन हम करते हैं, उसका प्रभाव उस रक्त पर पड़ता है, 
अपितु  उसी भोजन का वैसा ही  रक्त बनता है.

यदि भोजन तामसिक है, तो रक्त तामसिक बनेगा, रक्त तामसिक होगा तो
हमारा आचरण, सोच, क्रिया, बर्ताव, सभी कुछ तामसिक होगा.

अतः क्रोध या तमोगुण  कम करना है तो अपने भोजन को ठीक करना ही होगा. 
जैसा अन्न - वैसा मन -बहुत पुराणी कहावत है.
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

Wednesday, 19 September 2012

247. 6 BHAG

6 bhag


वैराग्य

१. भगवत स्वरुप में 
श्री, विद्या, यश, वीर्य, वैराग्य,ऐश्वर्य 
इन ६ भगों में 'वैराग्य' भी है.

श्री राम ने तुरंत उसी समय मरते पिता को छोड़कर 
राज - काज  परिवार को छोड़कर बनगमन किया, 
यह उनके अनलिमिटिड वैराग्य का उदहारण है.

वनवास तो लेना ही था 
और चौदह वर्ष काबनवास था, आराम से कुछ दिन रुक कर
पिता का और अन्य राज्य की व्यवस्था आदि करवाकर फिर चले जाते, 
लेकिन वैराग्य की पराकाष्ठा इसी में है की 
तुरंत ही पीछे की व्यवस्थाओ की चिंता किये बिना चल दिए.

२. यही बात कृष्ण ने भी की. 
प्राण प्रियतम  नन्द यशोदा ब्रिजवासी तथा श्री राधा आदि
गोपी गण  को छण   में छोड़कर चले गए .

३. यही बात महाप्रभु गौरांग ने भी दिखाई 
विधवा असहाए वृद्ध शची माँ 
नवविवाहिता विष्णुप्रिया को छोड़कर गृह त्याग दिया.  

श्री, विद्या, यश, वीर्य, वैराग्य,ऐश्वर्य  
यह ६ औरों में भी हो सकते हैं, लेकिन भगवान् में 
ये शत-प्रतिशत होते हैं.

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Tuesday, 18 September 2012

246. aap kya sochte hn ?

आप क्या सोचते हैं ?

घर के अपने ठाकुर जी या किसी मंदिर से प्राप्त प्रसाद को
चीनी, प्लास्टिक, कांच के बर्तन में पाया जय या परोसा जाय तो

१. प्रसाद अशुद्ध हो जायेगा
२. चीनी, कांच,प्लास्टिक शुद्ध हो जाएगा
३. कोई फरक नहीं पड़ता

अपने विचार प्रस्तुत kare

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Monday, 17 September 2012

245. GURU MANGTAA HAI

गुरु 

जो शिष्य से मांगे 
वह कैसा गुरु ?

जो शिष्य को ज्ञान दे
भक्ति दे
प्रभु से शिष्य को मिला दे
वह गुरु !

जो शिक्षा दे
वह शिक्षा गुरु

जो दीक्षा दे
वह दीक्षा गुरु

जो सर पर हाथ रखकर
शिष्य को अपना ले
वह सद्गुरु !!!

जो ले या मांगे
वह कैसा गुरु ???????
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Tuesday, 11 September 2012

244. SHRI GURU

 SHRI GURU


श्री गुरु

नामश्रेष्ठं मनुमपी शचीपुत्रमत्र स्वरूपं
रूपं तस्याग्रजमुरुपुरी माथुरी गोष्ठवाटिम |
राधाकुंदम गिरिवरमहो राधिका माधवाशां
प्राप्तो यस्य प्रथितकृपया श्रीगुरुं तं नतोअस्मी ||

श्रील रघुनाथ गोस्वामी कह रहे है - 
सवश्रेष्ठ हरिनाम ,दीक्षा - मंत्र शचिनंदन श्री गोर हरि और उनके परिकर 
श्री  स्वरूप दामोदर गोस्वामी, श्रील रूप गोस्वामी तथा उनके 
ज्येष्ठ - भ्राता श्रील सनातन गोस्वामिका संग, 
सर्वश्रेष्ठ श्री मथुरा पुरी और उससे भी अत्यधिक श्रेष्ठ श्रीवृन्दावनधाम,
उस वृन्दावन धाम मैं क्रमश : श्रेष्ठताको प्राप्त श्री गिरिराज गोवर्धन, श्री राधाकुंड और 
अहो ! वहाँ पर श्रीश्रीराधामाधव की सेवा प्राप्त करने की परम उत्कट आशा - यह सभी जिनकी 
अहैतुकी कृपा से मैंने  प्राप्त किया है, 
उन श्रील गुरुदेव के श्री चरणों में नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूँ |
JAI SHRI RADHE

Wednesday, 5 September 2012

243. GURUDEV

GURUDEV

श्री गुरुदेव

श्री गुरुदेव भगवान् से कम नहीं है लेकिन भगवान् भी नहीं है.

माना की आप गुरुदेव को भगवान मान्ते है 
तो आपके लिए आपके गुरुदेव भगवान् है मेरे लिए नहीं या 
उनके लिए नहीं जो उनके शिष्य नहीं
 .
लेकिन श्री कृष्ण श्री राम आदि सबके लिए भगवान् है.

स्वामी रामसुख्दास जी कहते है की
 जब तक किसी को संतान प्राप्त नै होती तब तक वेह "पिता" 
नहीं कहलाता है.  जब तक शिष्य को भगवद्भक्ति रुपी कल्याण प्राप्त 
नहीं होता तब तक कोई "गुरु" नहीं  कहला सकता.

गुरु वही जो गोविन्द से मिला दे...........
JAI SHRI RADHE

242. ACHINTYA BHADABHED


अचिन्त्य भेदाभेद 

की मान्यता है की जीव ब्रह्म में जो भेद-अभेद है 
वह बुद्धि या तर्क द्वारा समझने की बजाये 
शास्त्र द्वारा समझा जा  सकता है 
अतः केवल बुद्धि द्वारा अचिन्त्य है.

साधारण भेदाभेद दर्शन की मान्यता है की 
जीव ब्रह्म का भेद समझ ही नहीं आ सकता. 

जबकि अचिन्त्य भेदाभेद 
शास्त्र कृपा से इसे समझ में आने की बात करता है. 
अवश्य केवल तर्क या बुद्धि द्वारा ये अचिन्त्य है.
JAI SHRI RADHE

Tuesday, 4 September 2012

241. kada, aho, adya

kada, aho, adya


कदा,  अहो,  अद्य 

'कदा' में भक्त की विकलता प्रकट होती है- 
कदा करिश्यसीह माँ कृपा....
हे प्रभु कब ? आखिर कब?? मुझ पर कृपा  होगी??

अहो !
"अहो! बकी यं स्तन कालकूटम" में प्रभु की अपरिमित करुना के दर्शन साधक को होते है. 

अद्य  
में ठाकुर के दर्शन श्रृंगार का अनुपम आनंद साधक को प्राप्त होता. 
"आज बनी सुन्दर अति जोड़ी " 
यानी जेसे आज बनी है वैसी कभी नहीं बनी. 

240. BHGVAAN SBKE SAATH


 BHGVAAN SBKE SAATH

 भगवान  सबके साथ

जब  रजोगुन या   तमोगुण  की वृद्धि सृष्टि  में अपेक्षित होती है
तो भगवान रज-तमोगुण की वृद्धि को  होने देते है 

जब सतोगुण  की वृद्धि की आवश्यकता होती है उसे भी होने देते है.

लेकिन प्रायः देखने में ये आता है की वे देवताओं  के साथ है . सात्विक  लोगो  के साथ है.

सत्वगुण  प्रकाशमय या ट्रांसपरेंट होता है. 
अतः भगवन की उपस्तिथि दिखती है.

तमो-रजो  गुन  आवरनात्मक   होते है अतः भगवन की उपस्थिति  दीखटी  नहीं . 
ठीक वैसे, जैसे-  शीशे के बर्तन मे अन्दर जो है वह दिखता है स्टील या मिटटी के बर्तन में नहीं दिखता. 
  
भगवन पक्षपाती तो नहीं है लेकिन निष्ठुर भी नहीं है .
रजा ह्रियान्यकशिपू ने जब वर मांग कर देवताओं को अपने आधीन कर लिया तो प्रभु शांत रह आये 
उस समय भी हिरान्यकशिपू को असहयोग कर सकते थे,

लेकिन जब अपने भक्त प्रहलाद पर कष्ट आया तो खम्बे से प्रकट हो गए.
JAI SHRI RADHE

Monday, 3 September 2012

239. DVESH KISSE



द्वेष किससे  ?



शिव 
दक्ष प्रजापति से नहीं 
उनके अज्ञान से द्वेष करते थे.

दक्ष प्रजापति 
शिव से द्वेष करते थे.

पाप से घृणा में दोष नहीं, 
पापी से घृणा में दोष है.

JAI SHRI RADHE