Friday, 23 December 2011

169. alag alag I D


 alag alag I D

अलग - अलग आई. डी.

बैंक मैं एकाउंट खुलवाना हो या पासपोर्ट बनवाना हो तो आपकी पत्नी या पुत्र 
की एक अलग आई.डी. चाहिये होती है | आपकी आई. डी. से काम  नहीं चलता है 

इसी प्रकार मेरी पत्नी या पुत्र या पुत्री मेरे हैं, लेकिन स्रष्टि मैं इनकी एक अलग आई. डी. है, अस्तित्व है, 
इनका निश्चित प्रारब्ध है, एक अलग स्वभाव है, प्रभाव है, लक्ष्य है, यहाँ तक की 
प्रथक उपासना है 


यदि अलग नहीं तो मेरे तीनों पुत्रों की शक्ल अक्ल, सोच, विकास
गरीबी - अमीरी अलग अलग क्यों है !

इसलिए   लोकिक संबंधों के अनुसार अनासक्त होकर, ऊपर ऊपर से अपना 
कर्तव्य करते रहना है | इन लोकिक रिश्तों में आसक्त होकर जीवन नहीं गँवाना है 

आसक्ति तो केवल और केवल प्रभु मै रखनी है, जो  हमारी सदैव से व्यवस्था 
करता आ रहा है और इस जन्म में भी जिसने हमें दुर्लभ मानव शरीर दिया - कृपा की
उसकी  प्रेम प्राप्ति ही हमारा लक्ष्य या टारगेट हो ये  सब तो रस्ते पड़ने वाले काम हैं,करते चलो फंसों मत ! 
"आसक्तिस्तद गुनाख्याने" ! आसक्ति तो केवल उसके गुणों के वर्णन  - आस्वादन मै रहे |

JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ नांगिया
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban



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