प्रेम के विषय - श्री कृष्ण
दो बात हैं : एक है विषय, दूसरा है आश्रय
प्रेम के एकमात्र विषय हैं - श्री कृष्ण, दूसरा कोई है ही नहीं
अर्थात प्रेम यदि हो सकता है, तो कृष्ण से ही हो सकता है. = विषय
और जो प्रेम करता है, वह है आश्रय = राधाजी , आप, हम, अनेक संत, भक्त.
कृष्ण के अतिरिक्त यदि हम किसी से प्रेम करते हैं तो शास्त्र कहता है कि
वह प्रेम है ही नहीं, हो भी नहीं सकता, क्योंकि प्रेम के एकमात्र आश्रय कृष्ण ही हैं
ठीक वैसे जैसे मिटटी के बिना 'मिटटी का बर्तन' बन ही नहीं सकता,
मिटटी के बिना बनेगा तो वह 'मिटटी का बर्तन' नहीं होगा.
तो फिर हम माता-पिता , भाई - बहिन या पति - पत्नी या
लड़का - लड़की से जो प्रेम करते हैं, वह क्या है ?
लड़का - लड़की से जो प्रेम करते हैं, वह क्या है ?
वह प्रेम नहीं ; 'काम' या कामना है, इसीलिये ऊपर लिखे ये समस्त प्रेम टूट जाते हैं, और
कृष्ण से यदि प्रेम हो जाय तो आज तक किसी का न टूटा है, न टूटेगा
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban
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