Saturday, 31 December 2011

173. nav varsh 2012




नव वर्षाभिनंदन 

मंगलमय नव-वर्ष यह 
कर दे पूरण काम
नाम सदा सिमरन करें
हो जाएँ निष्काम

सुख - समृद्धि झूठी नहीं
मिले सत्य अविराम
'काम ना' होवे ह्रदय में
यही कामना श्याम 

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ नांगिया
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

Tuesday, 27 December 2011

172. sarva-shreshth upaasanaa




सर्वश्रेष्ठ उपासना 

सर्वश्रेष्ठ उपासना है 
भगवान् विष्णु या श्री कृष्ण की 

देवताओं की उपासना करने से देवता प्रसन्न होकर साधक को 
ऐसी बुद्धि, समर्थ देते हैं 
कि साधक श्री कृष्ण की ओर उन्मुख हो ही जाता है 

लेकिन सभी देवता ऐसे नहीं हैं 
जो सात्विक और प्रभु भक्त देवता हैं वे ही एसा करते हैं 
अन्यथा राजसिक तामसिक 
देवता तो साधक को अपने ही तक सीमित रखते हैं 

ठीक वैसे, जैसे एक वफादार कर्मचारी ग्राहक को मालिक से मिलवाता है, बेईमान नौकर 
ऊपर - ऊपर से ग्राहक का काम कराकर अपनी जेब भरता है.

उपासना करना एक बात है और उपासना स्वीकार्य होना दूसरी बात है 
सफलता तभी मिलती है जब उपासना स्वीकार्य हो जाती है !

















JAI SHRI RADHE


DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

171. exellence award by CM shiela dixit

















Sunday, 25 December 2011

170. kalam pen : shri harinam

kalam pen : shri harinam




सर्वसमर्थ कलम पेन  भक्ति अंग : श्री हरिनाम 

स्रष्टि की विविधता, लोगों की अलग-अलग रूचि, वर्किंग स्टायल के कारण ही आज से करोड़ों वर्ष पूर्व 
भगवान की भक्ति या प्रेम प्राप्त करने हेतु भक्ति के चौंसठ अंगों का वर्णन शास्त्रों में किया गया है

चौंसठ में से फिर नौं विशिष्ट अंगों का नवधा-भक्ति के रूप में वर्णन किया 
नौ में से फिर पांच अंगों का वर्णन किया पांच को भी संक्षिप्त करके फिर केवल एक परनिर्देशित किया और वह एक है - 
श्री हरिनाम का जप, संकीर्तन, माला, आदि 

"कलो केशव कीर्तनात"
"हरेर्नामैव केवलं"
"कलियुग केवल नाम अधारा"

श्री हरिनाम महामंत्र - एक ऐसा साधन है जिसका आश्रय लेकर भक्ति प्रारंभ की जा सकती है और सर्वोच्च 
अवस्था वाला भक्त  भी इसका आश्रय लेता ही है

जैसे कलम या पैन कक्षा एक से लेकर पी-एच-डी तक और उसके बाद भी सदैव उपयोगी रहती है - 
वैसे ही है "श्री हरिनाम" या "हरेकृष्ण महामंत्र" का आश्रय 

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia


Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

Friday, 23 December 2011

169. alag alag I D


 alag alag I D

अलग - अलग आई. डी.

बैंक मैं एकाउंट खुलवाना हो या पासपोर्ट बनवाना हो तो आपकी पत्नी या पुत्र 
की एक अलग आई.डी. चाहिये होती है | आपकी आई. डी. से काम  नहीं चलता है 

इसी प्रकार मेरी पत्नी या पुत्र या पुत्री मेरे हैं, लेकिन स्रष्टि मैं इनकी एक अलग आई. डी. है, अस्तित्व है, 
इनका निश्चित प्रारब्ध है, एक अलग स्वभाव है, प्रभाव है, लक्ष्य है, यहाँ तक की 
प्रथक उपासना है 

Saturday, 17 December 2011

168. sapt devalaya pic n shrngar bt

SHRI RADHA DAMODAR

SHRI RADHA GOKULANAND

SHRI RADHA GOKULANAND

SHRI RADHA GOPINATH

SHRI RADHA GOVIND

SHRI RADHA MADAN MOHAN

SHRI RADHA GOPINATH JI

SHRI RADHA RAMAN JI

SHRI RADHA RAMAN JI
SHRI SHRIGAR BAT : NITAICHAND GADDI

SHRI RADHA SHYAMSUNDAR

Friday, 16 December 2011

167. achchha lagna n hona



लगना और होना

एक माँ या माता-पिता को 
अपना बालक अत्यधिक प्रिय तो लगता ही है 
खूबसूरत भी लगता है, उसके नैन-नक्ष बहुत सुन्दर लगते हैं

कोई दूसरा या सौन्दर्य-विशेषज्ञ ही यह 
बता सकता है कि यह बालक कितना सुंदर है या नहीं भी है

इसी प्रकार भजन-साधन में अनेक लोग अपनी रुचि के अनुसार
साधन भजन करते हैं क्योंकि वह उनको अच्छा लगता है, 
वह उनका साधन है

ये तो कोई संत-वैष्णव-गुरु-ही बतायेगा कि
वह अच्छा है, ठीक है, या ठीक नहीं है

अच्छा लगना एक बात है अच्छा होना दूसरी बात है 
नशेवाजों को नशा करना अच्छा लगता है किन्तु नशा करना कोई अच्छी बात थोड़े ही है
--
JAI SHRI RADHE


DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
made to serve ; GOD  thru  Family  n  Humanity
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

लगना और होना

Thursday, 15 December 2011

166. NAVDHA BHAKTI

NAVDHA BHAKTI


✔  *नवधा भक्ति*  ✔


➡ प्राचीन शास्त्रों में भक्ति के 9 प्रकार बताए गए हैं जिसे नवधा भक्ति कहते हैं।
श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् ।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥

➡ श्रवण (परीक्षित), कीर्तन (शुकदेव), स्मरण (प्रह्लाद), पादसेवन (लक्ष्मी), अर्चन (पृथुराजा), वंदन (अक्रूर),

➡ दास्य (हनुमान), सख्य (अर्जुन), और आत्मनिवेदन (बलि राजा) - इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं ।


➡ श्रवण: ईश्वर की लीला, कथा, महत्व, शक्ति, स्त्रोत इत्यादि को परम श्रद्धा सहित अतृप्त मन से निरंतर सुनना।

➡ कीर्तन: ईश्वर के गुण, चरित्र, नाम, पराक्रम आदि का आनंद एवं उत्साह के साथ कीर्तन करना।


➡ स्मरण : निरंतर अनन्य भाव से परमेश्वर का स्मरण करना, उनके महात्म्य और शक्ति का स्मरण कर उस पर मुग्ध होना।

➡ पाद सेवन: ईश्वर के चरणों का आश्रय लेना और उन्हीं को अपना सर्वस्य समझना।

➡ अर्चन: मन, वचन और कर्म द्वारा पवित्र सामग्री से ईश्वर के चरणों का पूजन करना।

➡ वंदन: भगवान की मूर्ति को अथवा भगवान के अंश रूप में व्याप्त भक्तजन, आचार्य, ब्राह्मण, गुरूजन, माता-पिता आदि को परम आदर सत्कार के साथ पवित्र भाव से नमस्कार करना या उनकी सेवा करना।

➡ दास्य: ईश्वर को स्वामी और अपने को दास समझकर परम श्रद्धा के साथ सेवा करना।

➡ सख्य: ईश्वर को ही अपना परम मित्र समझकर अपना सर्वस्व उसे समर्पण कर देना तथा सच्चे भाव से अपने पाप पुण्य का निवेदन करना।

➡ आत्म निवेदन: अपने आपको भगवान के चरणों में सदा के लिए समर्पण कर देना और कुछ भी अपनी स्वतंत्र सत्ता न रखना। यह भक्ति की सबसे उत्तम अवस्था मानी गई हैं

साभार : श्री दिनेश मित्तल