✅ त्रिसंध्या ✅
▶ संध्या उस समय को कहते हैं जब एक समय जा रहा होता है और दूसरा समय आ रहा होता है ।
▶ जैसे सूर्योदय से कुछ समय पूर्व रात्रि जा रही होती है और दिन आ रहा होता है ।
▶ ऐसे ही दोपहर में जब सूर्य चढ़ते-चढ़ते उतरने लगता है लगभग 12:00 बजे का समय वह भी संध्या होती है ।दोपहर म् पूर्वान्ह । मध्यान्ह । अपराह्न । ये तीन काल होते हैं ।
▶ ठीक ऐसे ही शाम को जब दिन छुप रहा होता है और रात्रि आ रही है होती है उसको भी संध्या कहते हैं ।
▶ इस प्रकार दिन में तीन संध्या होती है
एक प्रातः वाली
एक दोपहर वाली और
एक शाम वाली
▶ संध्या का समय भजन के लिए, उपासना के लिए बहुत ही उपयुक्त माना गया है ।
▶ वैष्णव लोग त्रिकाल संध्या करते हैं ।
जैसे काल भी तीन हैं
भूत
वर्तमान और
भविष्य
▶ ऐसे ही संध्याएं भी तीन हैं । संध्या का समय शांत होता है, नीरव होता है । जो जा रहा होता है वह भी शांत होता है और जो आ रहा होता है वह भी शांत होता है ।
▶ अतः हम वैष्णवजन को प्रयास करके त्रिकाल संध्या के समय अवश्य थोड़ा-थोड़ा भजन बन् पड़े तो करना चाहिए ।
▶ अन्यथा नाम के लिए तो कोई देश, कोई काल कोई परिस्थिति की अपेक्षा नहीं है । कभी भी, कैसे भी कर सकते हैं ।
▶ जिनका मन अधिक चंचल हो, मन न लगता हो वह प्रयास करके इन तीनों संध्याओं में यदि कुछ भजन करें ।
▶ कुछ उपासना करें , कुछ ध्यान लगाएं , कुछ नाम करें तो उनकी चंचलता अपेक्षाकृत जल्दी ठीक हो सकती है ।
▶ संध्याओं का अपना एक महत्त्व है । उसका लाभ उठाना चाहिए ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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