✔️ *श्री नित्यानंद त्रयोदशी* ✔️
▶️ गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के अनेक आचार्यों में से एक श्रील नरोत्तम दास ठाकुर भगवान की स्तुति में लिखते हैं कि जब कोई भगवान श्री नित्यानंद प्रभु के चरणकमलों का आश्रय लेता है तो उसे सहस्त्र चंद्रमाओं की शीतलता का आभास होता है । यदि कोई वास्तव में राधा-कृष्ण की नृत्य-मंडली में प्रवेश करना चाहता है तो उसे दृढ़ता से उनके(नित्यानंद प्रभु के) चरण-कमलों को पकड़ लेना चाहिए ।
कलियुग में भगवान श्री कृष्ण इस भौतिक जगत में श्री चैतन्य महाप्रभु के रूप में अवतरित होते हैं और उनके साथ बलराम जी, श्री नित्यानंद प्रभु के रूप में आते हैं । भगवान नित्यानंद, निताई, नित्यानंद प्रभु और नित्यानंद राम के नाम से भी पुकारे जाते हैं । उन्होंने श्री चैतन्य महाप्रभु के प्रधान पार्षद की भूमिका में भगवान श्री कृष्ण के पवित्र-नाम को हरिनाम-संकीर्तन द्वारा प्रचार करने का उत्तरदायित्व उठाया था ।
कलियुग में भगवान श्री कृष्ण इस भौतिक जगत में श्री चैतन्य महाप्रभु के रूप में अवतरित होते हैं और उनके साथ बलराम जी, श्री नित्यानंद प्रभु के रूप में आते हैं । भगवान नित्यानंद, निताई, नित्यानंद प्रभु और नित्यानंद राम के नाम से भी पुकारे जाते हैं । उन्होंने श्री चैतन्य महाप्रभु के प्रधान पार्षद की भूमिका में भगवान श्री कृष्ण के पवित्र-नाम को हरिनाम-संकीर्तन द्वारा प्रचार करने का उत्तरदायित्व उठाया था ।
▶️ उन्होंने सामूहिक रूप से भगवान के पवित्र-नाम का कीर्तन करके भौतिक जगत के पतित एवं बद्ध जीवों के मध्य भगवान श्री कृष्ण की कृपा को वितरित किया । हमारे पूर्वाचार्यों की शिक्षाओं के अनुसार ब्रह्माण्ड के आदि (मूल) गुरु, श्री नित्यानद प्रभु का आश्रय लिए बिना श्री चैतन्य महाप्रभु तक पहुँचना या उन्हें समझना असंभव है । वे श्री चैतन्य महाप्रभु और उनके भक्तों के बीच एक मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं । वे भगवान का प्रथम विस्तार हैं, जो श्री कृष्ण के संग बलराम, श्री राम के संग लक्ष्मण एवं श्री चैतन्य महाप्रभु के सं नित्यानंद प्रभु के रूप में प्रकट होते हैं ।
▶️ वे भगवान कृष्ण की सेवा के लिए पांच अन्य रूप लेते हैं । वे स्वयं भगवान कृष्ण की लीलाओं में सहायता करते हैं तथा वासुदेव, संकर्षण, अनिरुद्ध और प्रद्युम्न के चतुर्व्यूह रूप में सृष्टि के सृजन में सहायता करते हैं । वे अनंत-शेष के रूप में भगवान की अन्य कई सेवाएं करते हैं । हर रूप में वे भगवान कृष्ण की सेवा का दिव्य-आनंद का अनुभव करते हैं ।
॥ जय श्री राधे ॥
॥ जय निताई ॥
लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindan
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindan
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