Saturday, 25 February 2017
Monday, 20 February 2017
TriSandhya
✅ त्रिसंध्या ✅
▶ संध्या उस समय को कहते हैं जब एक समय जा रहा होता है और दूसरा समय आ रहा होता है ।
▶ जैसे सूर्योदय से कुछ समय पूर्व रात्रि जा रही होती है और दिन आ रहा होता है ।
▶ ऐसे ही दोपहर में जब सूर्य चढ़ते-चढ़ते उतरने लगता है लगभग 12:00 बजे का समय वह भी संध्या होती है ।दोपहर म् पूर्वान्ह । मध्यान्ह । अपराह्न । ये तीन काल होते हैं ।
▶ ठीक ऐसे ही शाम को जब दिन छुप रहा होता है और रात्रि आ रही है होती है उसको भी संध्या कहते हैं ।
▶ इस प्रकार दिन में तीन संध्या होती है
एक प्रातः वाली
एक दोपहर वाली और
एक शाम वाली
▶ संध्या का समय भजन के लिए, उपासना के लिए बहुत ही उपयुक्त माना गया है ।
▶ वैष्णव लोग त्रिकाल संध्या करते हैं ।
जैसे काल भी तीन हैं
भूत
वर्तमान और
भविष्य
▶ ऐसे ही संध्याएं भी तीन हैं । संध्या का समय शांत होता है, नीरव होता है । जो जा रहा होता है वह भी शांत होता है और जो आ रहा होता है वह भी शांत होता है ।
▶ अतः हम वैष्णवजन को प्रयास करके त्रिकाल संध्या के समय अवश्य थोड़ा-थोड़ा भजन बन् पड़े तो करना चाहिए ।
▶ अन्यथा नाम के लिए तो कोई देश, कोई काल कोई परिस्थिति की अपेक्षा नहीं है । कभी भी, कैसे भी कर सकते हैं ।
▶ जिनका मन अधिक चंचल हो, मन न लगता हो वह प्रयास करके इन तीनों संध्याओं में यदि कुछ भजन करें ।
▶ कुछ उपासना करें , कुछ ध्यान लगाएं , कुछ नाम करें तो उनकी चंचलता अपेक्षाकृत जल्दी ठीक हो सकती है ।
▶ संध्याओं का अपना एक महत्त्व है । उसका लाभ उठाना चाहिए ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
Sunday, 19 February 2017
Sukshm Sutra Part 39
⚱⚱⚱⚱⚱⚱⚱⚱⚱⚱
सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
🏺🏺🏺🏺🏺🏺🏺🏺🏺🏺
🔮 भाग 3⃣9⃣
💡 इच्छा दो प्रकार की होती है-
प्राप्त वस्तु को भोगने की इच्छा और
सुनी सुनाई अप्राप्त वास्तु को
प्राप्त करने की इच्छा .
साधक को दोनों का परित्याग कर
भजन करना चाहिए अन्यथा
मन इच्छाओं में ही रमता रहेगा
भजन नही हो पायेगा
💡 बुद्धिमान और ज्ञानवान मनुष्य
का भक्त होना कठिन है.
भक्ति के लिए तो सब कुछ का
त्याग करना आवश्यक है.
अपनी बुद्धि भी- अपना ज्ञान भी
क्रुश्नार्प्न करना पड़ेगा तभी
वह भक्त बन पायेगा.
अन्यथा इस अहंकार से ही वह
अधर में लटका रह जाएगा.
💡 जो संसाधन हमे प्राप्त है
उनसे ही अपना वर्तमान
श्रेष्ठतम बनाने का प्रयास करना है.
भविष्य के लिए अपना वर्तमान
बिगाड़ना कोई बुद्धिमानी नही है.
हर अवस्था में यदि इस मूल मन्त्र
को अपना ले तो संतोष-सुख
अवश्य प्राप्त होगा.
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
Saturday, 18 February 2017
Madhurya Kadambini 6
✴️माधुर्य कादम्बिनी कथा ✴️
भाग 6⃣
🎙 सवर: दासाभास डा गिरिराज
🏚 वृन्दावन धाम
🙇🏼 प्रस्तुती : अनंत हरिदास
http://yourlisten.com/Dasabhas/madhurya-6-6
Tuesday, 14 February 2017
Suksham Sutra Part 38
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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
🏺🏺🏺🏺🏺🏺🏺🏺🏺🏺
🔮 भाग 3⃣8⃣
💡 निंद्रा का त्याग और जागना दोनों
एक ही क्षण होता है.
ऐसे ही सांसारिक विषयों का त्याग
और भगवान् की ओर सन्मुखता
एक ही क्षण में होगी. इसलिए
ये सोचना मुर्खता है कि अभी संसार से
मन हटा रहे है फिर भगवान् में लगायेंगे.
💡 कड़वा किन्तु सत्य
जीवन भर प्रवचन सुनते रहना
मोटे मोटे ग्रंथो का स्वाध्याय करना
गुरुचरणों में बैठकर
अनेक ज्ञान की बातें सीखते रहना
ऐसे ही है जैसे जीवन भर एम बी ए की क्लास में
बैठे रहना पर नौकरी के लिए किसी कम्पनी को
ज्वाइन न करना. इसलिए आज ही
भजन करो -भजन.
सुनते ही रहोगे-आचरण में कब लाओगे
💡 जाने या अनजाने में भी
यदि किसी वैष्णव के प्रति
अपराध बन जाये तो
सविनय उन्ही के
चरणों में ही जाकर उनसे
क्षमायाचना करनी चाहिए
क्योंकि अपने भक्त के प्रति
किये गये किसी अपराध को
स्वयं प्रभु भी क्षमा नही करते
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
Monday, 13 February 2017
Panchdev Aur Bhagwan
✔ *पंचदेव और भगवान* ✔
▶ सृष्टि में 5 देवों की उपासना प्रचलित है ।
▶ विष्णु
▶ शिव
▶ देवी
▶ सूर्य
▶ गणेश
▶ वैसे तो सभी की उपासना सब करते ही हैं, लेकिन जो लोग गणेश को सर्वोपरि सत्ता मानते हैं वह गाणपत्य कहलाते हैं ।
▶ जो सूर्य को सर्वोपरि सत्ता मानते हैं वह सौर कहलाते हैं ।
▶ जो देवी को सर्वोपरि सत्ता मानते हैं वे शाक्त कहलाते हैं ।
▶ जो शिव को सर्वोपरि सत्ता मानते हैं वह शैव कहलाते हैं और जो
▶ विष्णु को सर्वोपरि सत्ता मानते हैं वह वैष्णव कहलाते हैं ।
▶ विष्णु आदि यह सभी पांच "देव" हैं और यह सभी किसी न किसी प्रकार से भगवान श्री कृष्ण के अंश ही है या आवेश है या शक्तियां हैं या अंश के अंश है । इनमें से कोई भी भगवान नहीं है ।
▶ इसीलिए पंचदेवोपासना कही गई है "पंच भगवान उपासना" नहीं कही गई है । देव अनेक होते हैं । भगवान एक ही होता है ।
▶ श्रीमद भागवत में इन सब का वर्णन करते हुए स्पष्ट कहा है "एते चांश कला पुंसः कृष्णस्तु भगवान स्वयं" । कृष्ण साक्षात भगवान हैं ।
▶ इन् देवों की पूजा करना कोई मना नहीं है लेकिन यदि इनको सर्वोपरि सत्ता या ईश्वर या भगवान मानकर पूजा किया जाए तो श्री कृष्ण के प्रति यह उपेक्षा एवं अपराध है ।
▶ कृष्ण के दास, कृष्ण के सेवक, कृष्ण के अनुचर मान के इनकी पूजा प्रणाम में कोई हानि नहीं है अपितु ऐसा करने से यह देवी देवता भी साधक को कृष्ण प्रेम पथ प्रदान करते हैं । कृष्णा सेवा प्रदान करते हैं । कृष्ण की ओर मोड़ देते हैं ।
▶ भगवान श्री कृष्ण के प्रकाश हैं बलराम । बलराम के अंश है महा विष्णु । महा विष्णु के फिर अंश के अंश है यह ब्रम्हा विष्णु महेश । विष्णु शब्द एक तो इन विष्णु का वाचक है ।
▶ दूसरा विष्णु शब्द का अर्थ होता है विभु जो सर्वत्र व्याप्त है । अथवा विष्णु शब्द का अर्थ इष्ट भी है । जहां लिखा गया इसके पश्चात विष्णु की पूजा करें अर्थात अपने इष्ट की पूजा करें ।
▶ भगवत स्वरुप इष्ट वह कृष्ण, राम, वामन, नरसिंह जो स्वयं भगवत स्वरुप हैं । उनकी पूजा करें यह भाव है ।
▶ विष्णु का अर्थ इष्ट है और वेदों में अथवा पुराणों में विष्णु तक का ही वर्णन है । विष्णु के जो मूल तत्व है श्रीकृष्ण उनका वर्णन विशेष रूप से श्री मदभागवत में हुआ है ।
▶ इसलिए जो श्रीमद्भागवत के परिचय में है वह श्रीकृष्ण को अच्छी तरह जानते हैं और जो कर्मकांडी लोग पुराण आदि के टच में रहते हैं वह विष्णुस्वरूप तक ही पहुंच पाते हैं ।
▶ उसके ऊपर जो उनका मूल तत्व श्री कृष्ण है जो स्वयं भगवान है वहां तक उनकी गति नहीं जा पाती है । इसीलिए हम वैष्णव जन को अपने इष्ट के प्रति समर्पित हमें सदा श्री कृष्ण का ही पूजन उपासना करनी चाहिए ।
▶ श्रीराम से भी श्री कृष्ण में चार माधुर्य अधिक है । श्रीकृष्ण ही मूल तत्व है । परात्पर तत्व हैं । सर्वोपरि सत्ता है । परम ब्रह्म है । परात्पर ब्रहम है । इस बात को सदैव समझे रहना चाहिए ।
🙇🏼समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
Thursday, 9 February 2017
Shri Nityanand Tryodashi
✔️ *श्री नित्यानंद त्रयोदशी* ✔️
▶️ गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के अनेक आचार्यों में से एक श्रील नरोत्तम दास ठाकुर भगवान की स्तुति में लिखते हैं कि जब कोई भगवान श्री नित्यानंद प्रभु के चरणकमलों का आश्रय लेता है तो उसे सहस्त्र चंद्रमाओं की शीतलता का आभास होता है । यदि कोई वास्तव में राधा-कृष्ण की नृत्य-मंडली में प्रवेश करना चाहता है तो उसे दृढ़ता से उनके(नित्यानंद प्रभु के) चरण-कमलों को पकड़ लेना चाहिए ।
कलियुग में भगवान श्री कृष्ण इस भौतिक जगत में श्री चैतन्य महाप्रभु के रूप में अवतरित होते हैं और उनके साथ बलराम जी, श्री नित्यानंद प्रभु के रूप में आते हैं । भगवान नित्यानंद, निताई, नित्यानंद प्रभु और नित्यानंद राम के नाम से भी पुकारे जाते हैं । उन्होंने श्री चैतन्य महाप्रभु के प्रधान पार्षद की भूमिका में भगवान श्री कृष्ण के पवित्र-नाम को हरिनाम-संकीर्तन द्वारा प्रचार करने का उत्तरदायित्व उठाया था ।
कलियुग में भगवान श्री कृष्ण इस भौतिक जगत में श्री चैतन्य महाप्रभु के रूप में अवतरित होते हैं और उनके साथ बलराम जी, श्री नित्यानंद प्रभु के रूप में आते हैं । भगवान नित्यानंद, निताई, नित्यानंद प्रभु और नित्यानंद राम के नाम से भी पुकारे जाते हैं । उन्होंने श्री चैतन्य महाप्रभु के प्रधान पार्षद की भूमिका में भगवान श्री कृष्ण के पवित्र-नाम को हरिनाम-संकीर्तन द्वारा प्रचार करने का उत्तरदायित्व उठाया था ।
▶️ उन्होंने सामूहिक रूप से भगवान के पवित्र-नाम का कीर्तन करके भौतिक जगत के पतित एवं बद्ध जीवों के मध्य भगवान श्री कृष्ण की कृपा को वितरित किया । हमारे पूर्वाचार्यों की शिक्षाओं के अनुसार ब्रह्माण्ड के आदि (मूल) गुरु, श्री नित्यानद प्रभु का आश्रय लिए बिना श्री चैतन्य महाप्रभु तक पहुँचना या उन्हें समझना असंभव है । वे श्री चैतन्य महाप्रभु और उनके भक्तों के बीच एक मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं । वे भगवान का प्रथम विस्तार हैं, जो श्री कृष्ण के संग बलराम, श्री राम के संग लक्ष्मण एवं श्री चैतन्य महाप्रभु के सं नित्यानंद प्रभु के रूप में प्रकट होते हैं ।
▶️ वे भगवान कृष्ण की सेवा के लिए पांच अन्य रूप लेते हैं । वे स्वयं भगवान कृष्ण की लीलाओं में सहायता करते हैं तथा वासुदेव, संकर्षण, अनिरुद्ध और प्रद्युम्न के चतुर्व्यूह रूप में सृष्टि के सृजन में सहायता करते हैं । वे अनंत-शेष के रूप में भगवान की अन्य कई सेवाएं करते हैं । हर रूप में वे भगवान कृष्ण की सेवा का दिव्य-आनंद का अनुभव करते हैं ।
॥ जय श्री राधे ॥
॥ जय निताई ॥
लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindan
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindan
Tuesday, 7 February 2017
Madhurya Kadmbini Part 4
✴️माधुर्य कादम्बिनी कथा ✴️
भाग 4⃣
🎙 स्वर: दासाभास डा गिरिराज
🏚वृन्दावन धाम
🙇🏼 प्रस्तुति : अनंत हरिदास
http://yourlisten.com/Dasabhas/madhurya4-4#
Sabhi Ki Alag Alag Kksha
✔ *सभी की अलग-अलग कक्षा* ✔
▶ 'जिस प्रकार एक विद्यालय में पढ़ने वाले 400 बच्चे एक ही क्लास में नहीं पढते हैं ।
▶ 'कोई 2 में कोई 8 में कोई 6 में कोई 12 में पड़ता है । उसी प्रकार भजन करने वाले समस्त भक्त एक ही स्तर के नहीं होते हैं ।
▶ 'उनके भी स्तर होते हैं । बहुत से प्राइमरी स्तर वाले किसी के कहने से या अपने मनमाने ढंग से किसी भी देवी देवता की उपासना या मंत्र या आधा-अधूरा जप करते रहते हैं ।
▶ 'करते करते उन्हें किसी वैष्णव से संपर्क होता है वह वैष्णव फिर उन्हें सही जप, सही मंत्र, सही राय , सही उपाय बताता है ।
Monday, 6 February 2017
Madhurya Kadmbini Part 3
✴️माधुर्य कादम्बिनी कथा ✴️
भाग 3⃣
🎙 स्वर: दासाभास डा गिरिराज
🏚वृन्दावन धाम
🙇🏼 प्रस्तुति : अनंत हरिदास
http://yourlisten.com/Dasabhas/madhurya3-3
Sunday, 5 February 2017
Madhurya Kadmbini Part 2
✴️माधुर्य कादम्बिनी कथा ✴️
भाग 2⃣
🎙 स्वर: दासाभास डा गिरिराज
🏚वृन्दावन धाम
🙇🏼 प्रस्तुति : अनंत हरिदास
http://yourlisten.com/Dasabhas/madhurya-2
Sukshm Sutra Part 37
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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
🏺🏺🏺🏺🏺🏺🏺🏺🏺🏺
🔮 भाग 3⃣7⃣
💡 जिस पुष्प में मकरंद होता है
उसका पान करने के लिए
भौरें उसपर मंडराते रहते हैं|
ऐसे ही धन के आ जाने पर योग्य
अथवा योग्य व्यक्ति के पास भी
लोग मंडराने लग जाते है| यह
धन का प्रभाव है परन्तु मनुष्य
कितना भोला है कि इसे वह अपना
प्रभाव समझने लग जाता है|
💡 अपने कर्म द्वारा किए गये
पापों के विनाश के लिए
भगवान को कर्मफल अर्पण
और भगवान की प्रीती के लिए
जो भगवान की पूजा करता है
वह सात्विक भक्त है.
💡 यश, ऐश्वर्य, विषयवासना
और भेद्बुद्दी होकर विबिन्न
प्रतिभाओ में जो
मेरी पूजा करता है
वह राजसिक भक्त है.
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
Saturday, 4 February 2017
Madhurya Kadmbini Part 1
✴️माधुर्य कादम्बिनी कथा ✴️
भाग 1⃣
🎙 वक्ता: दासाभास डा गिरिराज
🏚वृन्दावन धाम
http://yourlisten.com/Dasabhas/madhurya-1-1
Kacha AAm Khatta Meetha Aam Meetha
✔️ *कच्चा आम, खट्टा मीठा, आम मीठा* ✔️
▶️ भजन भक्ति करते हुए जो दासाभास सहित हम साधन भक्ति करते हैं, जिसमें श्रवण कीर्तन स्मरण पादसेवन पूजन-वंदन आत्मनिवेदन आदि नवधा भक्ति आती है ।
▶️ भक्ति के इन सब साधनों को इन सब उपायों को भक्ति के इस स्वरूप को शास्त्रों में कच्चा आम की उपाधि दी गई है ।
▶️ इसके बाद इन साधनों को करते-करते हम
▶️ श्रद्धा
▶️ साधु संग
▶️ भजन क्रिया
▶️ अनर्थ निवृत्ति
▶️ निष्ठा
▶️ रुचि
▶️ आसक्ति और
▶️ भाव
▶️ तक की कक्षा में पहुंचते हैं ।
जब हम भाव की कक्षा में पहुंच जाते हैं, जब हमारे अंदर भाव उदित हो जाता है ।उस अवस्था को खट मित्ठा आम कहा गया है ।
▶️ यह ध्यान रहे कि इस वर्तमान शरीर में हम केवल भाव तक ही पहुंच पाते हैं और वह भी करोड़ों में से कोई एक ।
▶️ भाव के बाद जब यह शरीर और हमारा अंतःकरण, हमारा हृदय प्रेम को धारण करने योग्य हो जाता है, तब इस शरीर का पात हो जाता है ।
▶️ ये समझे रहें । इस जीवन म् साधक भाव तक ही पहुँचता है । प्रेम प्राप्ति इस शरीर म् नही होती । प्रेम प्राप्ति की योग्यता आते ही शरीर राधे राधे ।
▶️ अच्छे से अच्छे सन्त भी भाव में ही रहते हैं । और शरीर पात होने पर
▶️ भगवान की लीला शक्ति योग माया हमारे इस जीव को ले जाकर वहां उस ब्रह्मांड में जहां श्रीकृष्ण की प्रकट लीला आज भी हो रही है उनके परिकर भूत किसी गोपी के गर्भ में हमें स्थापित कर देती है ।
▶️ फिर वहां उस गोपी के गर्भ से हमारा जन्म होता है और हम वहीं कृष्ण लीला परिक्र में ही जन्म लेकर अपने भाव के अनुसार धीरे धीरे बड़े होकर कृष्ण की उस लीला में सहायक बनते हुए कृष्ण की नित्य लीला में साक्षात प्रवेश करते हैं ।
▶️ और जब कृष्ण की साक्षात लीला में हम प्रवेश करते हैं तब हमें उस प्रेम की प्राप्ति होती है ।
▶️ उस प्रेम को कहा गया मीठा आम ।
जब कृष्ण प्रकट लीला का संवरण करते हैं तब वह अपने परिकर को नित्य गोलोक धाम में ले जाते हैं अथवा अपने साथ वहां उस ब्रह्माण्ड में ले जाते हैं जहाँ अब लीला होनी है ।
▶️ ठीक वैसे जैसे एक कथा करने वाले की टीम उसके साथ साथ चलती है ।
▶️ और वहां पर सब अपनी-अपनी सेवा करते हैं तो हम भी क्योंकि उस परिकर में शामिल हो जाते हैं तो हम भी लीला संवरण के समय कृष्ण के साथ साथ साथ रहते हैं और नित्य उनकी लीला में सेवा करते हैं ।
▶️ ऐसा एक क्रम है । तो
साधन हुआ कच्चा आम
भाव हुआ खट मीठा आम और
प्रेम हुआ मीठा आम
जो कि हमारा साध्य है ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
Wednesday, 1 February 2017
Shri Vishnu Priya Devi Ji Janm Mahotsav
🎉श्रीविष्णुप्रियादेवीजी जन्म-महोत्सव🎉
🌿🌼श्रीभगवान् की अनेक-अनेक शक्तियां है, जो उनकी अवतार-लीला को सम्पन्न करने के लिये उनके साथ-साथ पृथ्वीतल पर आविभूर्त होती हैं, मधुररस-भक्ति की परिकर हैं सब कान्तागण।
🌿🌼श्रीगौरगणोद्देशदीपिका में आपका परिचय इस प्रकार दिया गया हैं-
🌿श्रीसनातनमिश्रो$यं पुरा सत्राजितो नृप:।
🌿विष्णुप्रिया जगन्माता यत्कन्या भूस्वरूपिणी।।
🌿🌼व्रज-लीला में जो राजा सत्राजित है, जिनकी कन्या श्रीसत्यभाभा जी हैं, वे नवद्वीप में श्रीसनातन मिश्र हुए और भू स्वरूपिणी जगन्माता श्रीविष्णुप्रिया जी उनकी कन्यारूप में आविर्भूत हुई।
🌿🌼श्रीचैतन्यदेव पृथ्वी की अंश-रुपिणी श्रीविष्णुप्रिया को अपनी कान्ता जानकर उसका पाणिग्रहण करेगें और फिर जगत् को वैराग्य की शिक्षा देने के लिए स्वयं किशोर अवस्था में संन्यास लेकर उस किशोरी का परित्याग कर देगें। श्रीभगवान् की तीन मुख्य शक्तियां है-श्री शक्ति, भू-शक्ति तथा लीला-शक्ति। सौन्दर्य एवं सम्पत्ति की अधिष्ठात्री शक्ति का नाम है श्रीशक्ति। जगत् की उत्पत्ति स्थिति की अधिष्ठात्री शक्ति का नाम है भू-शक्ति और श्रीनारायण की लीला-विधान करने वाली शक्ति को लीला-शक्ति कहते है। श्रीविष्णुप्रियाजी उस भू-शक्ति अर्थात जगत् की उत्पत्ति तथा स्थिति करने वाली अधिष्ठात्री शक्ति की मूर्तरूप हैं।
🌿🌼श्रीसनातन मिश्र नवद्वीप मे ही रहते है, परम उदार, दयालु एवं परम विष्णुभक्त हैं। सत्यवादी, परोपकार है और 'राजपण्डित' कहलाते है। इनकी पत्नी है परम भाग्यशालिनी महामाया देवी। इनके गर्भ से श्रीविष्णुप्रिया जी ने जन्मलीला सम्पन्न की। अनुमानत:सम्वत् १५५० हैं तप्त स्वर्ण कान्ति की भाँति अति सुन्दर अंग-कान्ति हैं श्रीविष्णुप्रियादेवीजी की।
🎉🎈जन्म-महोत्सव मनाया जा रहा हैं। श्रीसनातन मिश्र के भुवन मे अनेक बाजों की ध्वनि के साथ। श्रीगौंराग शिशु खेल रहे है समवयस्क बालकों के साथ। आनन्द ध्वनि सुनकर सबने कहा-चलो-चलो देखें क्या मंगल हो रहा है आज सनातन जी के घर। श्रीगौंराग तो अन्तर्यामी है, जानते है सब बात। सबसे आगे-आगे भागकर चले। दोनों ने एक दूसरे को सहज नहीं, अभूतपूर्व चितवन से देखा, पहचान गए एक दूसरे को। श्रीगौंराग तो सनातन-आंगन में 'हरिबोल' की उच्च ध्वनि कर बालक मण्डली के साथ नाच रहे है।
🎉🎈श्रीविष्णुप्रियादेवी जन्म-महोत्सव की कोटिश बधाई..!!
📯🎉🎈🎊🎈🙏🎉🎈🎊🎈📯
📕स्त्रोत एवम् संकलन
〽व्रजविभूति श्रीश्यामदासजी
🏡श्री हरिनाम प्रैस वृन्दावन द्वारा
📝लिखित-व्रज के सन्त ग्रन्थ से
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