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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
भाग 30
ब्राह्मण-क्षत्रिय- वैश्य -शूद्र
इन चार वर्णों की अपेक्षा आज के परिपेक्ष्य में
यह चार वर्गीकरण अधिक प्रासंगिक है
धर्मव्यवसायी : जो धर्म द्वारा धन अर्जन करें
कर्मव्यवसायी : जो व्यापर से धन अर्जन करें
सेवाव्यवसायी : जो नौकरी से धन अर्जन करें
क्योंकि हर किसी ने केवल धन अर्जन को ही
इस जीवन का लक्ष्य बना लिया है जबकि
जीवन का लक्ष्य है श्री कृष्ण प्रेम प्राप्ति या भक्ति
तीन बातों से कभी संतुष्ट न रहें -
१. अभ्यास से
२. परोपकार से
३. भगवद भजन से
तीन बातों से सदा संतुष्ट रहना चाहिए -
१. स्वंय की पत्नी से
२. जितना भोजन विधाता ने दिया हो उस से और
३. जितना धन ईमानदारी से अर्जित किया हो
राजा को उसकी प्रजा के पाप लगते है
इसलिए कोई पाप करें तो दंड का प्रवधान है
राजा के पुजारी को राजा के पाप लगते है
इसलिए पहले राजपुरोहित की आज्ञा के बिना
रजा कोई काम नही करते थे|
पति को पत्नी के पाप लगते है
इसलिए पुरुष को चाहियें कि स्वयं सदाचरण
करे और पत्नी को भी पाप कर्म में न लगने दे.
और गुरु को शिष्य के पाप लगते है
इसलिए श्रीमदभागवत में कहा हैं कि
गुरुओ को बहुत शिष्य नही बनाना.
॥ जय श्री राधे ॥
॥ जय निताई ॥
लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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