✔ *डॉक्टर म हलवाई नहीं?* ✔
▶ भजन एवम् प्रचार
यह साधक की दो आंखें हैं । कोई कोई वर्ग प्रचार में लगे हुए हैं । उनके द्वारा किया गया प्रचार अद्भुत ह । स्तुत्य है । अनुकरणीय है ।
कोई वैष्णव भजन में लगे हुए हैं । वह प्रचार नहीं कर रहे हैं । लेकिन उनका भजन स्तुत्य है, अनुकरणीय है ।
हमें यह चाहिए कि जो जिस सेवा में । जिस विधा में लगा हुआ है उसके उस गुणों को देखें ।
यदि कोई भजन में दृढ़ता से लगा है और प्रचार नहीं कर रहा है तो हम यह कहें कि इसमें प्रचार न करने का दोष है तो यह उचित नहीं ।
▶ और कोई यदि जोरदार प्रचार कर रहा है और उसमे भजन की दृढ़ता नहीं तो भजन की दृढ़ता ना होने को दोष उस में देखना उचित नहीं ।
इस दृष्टि को यदि हम रखेंगे तो एक पुरुष में स्त्री न होने का दोष है । और एक स्त्री में पुरुष न होने का दोष ।
▶ एक डॉक्टर में हलवाई न होने का दोष ।
एक हलवाई में डॉक्टर ना होने का दोष ।
▶ अतः यह हमारी दोषदृष्टि के कारण है । यह दोष नहीं है । हर व्यक्ति अपने अपने विधा में , अपनी अपनी सेवा में अपनी-अपनी रुचि से साधनों में, कामों में उपायों में , विधाओं में लगा हुआ है ।
▶ हमें उसकी विधा की प्रशंसा ही करनी चाहिए अपितु उससे कुछ सीखना चाहिए और सृष्टि में सभी का अपना महत्व है ।
दृढ भजन का भी अपना महत्व है । दृढ़ आचरण का भी अपना महत्व है । और निष्ठापूर्वक प्रचार का भी अपना महत्व है ।
▶ अतः दृष्टि सदैव गुणों पर दोषों पर नहीं कदापि नहीं । दोष देखने ही हैं तो अपने देखो ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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