✔ *नित्य लीला प्रवेश* ✔
▶ अथवा निकुंज लीला प्रवेश । निकुंज गमन । कुंज गमन । ऐसे शब्द हैं जो हम प्राय प्रयोग करते हैं ।
▶ कुंज वह है जहां सखा एवं
सखियां दोनों का प्रवेश है ।
▶ निकुंज में केवल सखियों
का प्रवेश है और
▶ निभृत निकुंज में केवल मंजरियों का प्रवेश है । न सखियों का ना सखाओं का । इस गहराई को समझे रहना चाहिए ।
▶ दूसरी बात है नित्य लीला प्रवेश की ।
गुरुदेव नाम मंत्र अथवा गोपाल मंत्र देकर भक्ति का बीजारोपण कर देते हैं ।
▶ उस बीज को श्रवण कीर्तन और स्मरण के जल से सींचना होता है । उसको सीचने पर एक भक्ति पौधा उत्पन होता है और पौधे के साथ-साथ खरपतवार भी पैदा होती है पूजा प्रतिष्ठा एवं लाभ की ।
▶ हम भजन क्यों करें हमें क्या लाभ है ।
हम भजन करते हैं हमारी पूजा होनी चाहिए
हम भजन करते हैं हमारी प्रतिष्ठा होनी चाहिए ।
▶ यह खरपतवार ऐसी है कि, जो हम श्रवण कीर्तन स्मरण का जल देते हैं । इस खरपतवार को यदि उखाड़ कर फेंका नहीं गया तो यह खरपतवार उस श्रवण कीर्तन स्मरण रुपी जल से स्वयम को पुष्ट करती जाती है और भक्ति रूपी बेल या पौधा शिथिल हो जाता है और कही कभी नष्ट भी हो जाता है ।
▶ इसलिए भजन के साथ साथ हम इस बात की चेष्टा रखें कि कहीं खरपतवार तो नहीं हो गई, कहीं खरपतवार हमारे जल को अपनी पुष्टि के लिए प्रयोग तो नहीं कर रही ।
▶ श्रद्धा
▶ साधु संग
▶ भजन क्रिया
▶ अनर्थ निवृत्ति
▶ निष्ठा
▶ रुचि
▶ आसक्ति और
▶ भाव ।
▶ ये उस भक्ति बेल की सीढ़ियां हैं
▶ भाव पर पहुंच कर साधक को साक्षात दर्शन होने लगता है और मन ही मन जो प्रक्रियाएं वह करता है उसका प्रभाव पंच भौतिक स्थिति पर पड़ने लगता है, दिखने लगता है ।
▶ जैसे यदि मानसिक लीला में यह देखा गया कि प्रिया जी का कुछ रंग उड़ कर मेरे ऊपर आ गिरा है तो वास्तव में मेरे वस्त्र पर रंग गिरा दीखता है ।
▶ यह है भाव तक की स्थिति । भाव तक की प्रक्रिया इस पंच भौतिक देह से ही होती रहता है । जैसे ही प्रेम उदित होता है यह पंच भौतिक देह पात हो जाता है ।
▶ फिर योगमाया इस सुक्ष्म शरीर को वहां ले जाती है जहा इस ब्रह्मांड में इस समय ठाकुर की नित्य लीला चल रही होती है ।
▶ वहां ले जाकर इस जीव को किसी परिकर भूत गोपी के गर्भ में स्थापित कर देती है । फिर यह जीव उस गोपी के गर्भ से जन्म लेता है और परिकर के रूप में कृष्ण की समस्त लीलाओं का दर्शन करता है । सहायता करता है । मंजरी सखी रूप में इसका लीला में प्रवेश होता है ।
▶ नित्य लीला में प्रवेश का यह शास्त्रीय क्रम है जो कि विश्वनाथ चक्रवर्ती पादने भक्ति रसामृत सिंधू बिंदु में वर्णित किया है ।
▶ नित्य लीला प्रवेश । यह गुड़ का चीला नहीं है जो लपेटा और खा गए । बहुत ही चेष्टा, भक्ति भजन गहराई से चिंतन आदि करने पर अगले शरीर में प्राप्त होता ह ।
▶ इस शरीर में साधक केवल भाव् तक ही पहुंच पाता है । और भाव तक कितने पहुंचते हैं यह आप हम सभी जानते हैं । अतः लगे रहिये । ऊँची ऊँची बातें बनाने की अपेक्षा भजन म लगिए । बहुत कठिन ह डगर पनघट की ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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