Tuesday, 27 December 2016

Suksham Sutra 32



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सूक्ष्म सूत्र / गागर में सागर
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 🔮 भाग 32

💡 मित्र दुराचारी है, अहंकारी है,
मतलबी है, पसन्द नही है,
उसकी मित्रता एकपक्षीय है,
ये सब पीठ पीछे कहने के लिए है.
पर सामने ससब कुछ नजरअंदाज
करते है हम लोग और
उसका साथ नही छोड़ते. क्यों?
क्योंकि वह धनवान है.
'सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयन्ति'

💡 सबसे बड़ा धनी वह है जो
अपनी आय से कम व्यय करता है
किसी से ऋण से नही लेता.
किसी का धन बाकि नही रखता.
उधार खरीदारी नही करता,
यदि कोई कारण बन जाए तो
मांगने से पूर्व ही उसे चूका देता है.

💡 धन अर्जन करना साधन है.
साध्य है-उस धन को भोगना,
परिवार का पालन करना,
समाज और राष्ट्र कल्याण करना.
परन्तु कभी कभी मनुष्य धनोपार्जन में ही
इतना तल्लीन हो जाता है की
साध्य को भूल जाता है और केवल साधन में ही
लगा रह जाता है. परिणामतः जीवन पर्यन्त
क्लेश और कष्ट भोगता रहता है|

 ॥ जय श्री राधे ॥ 
 ॥ जय निताई  ॥ 

 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

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