✔ *वेश दीक्षा* ✔
▶ एक वैष्णव को जब अध्यात्म में, भजन में प्रवेश करना होता है, सबसे पहले उसको भजन, भगवान, भक्ति, अध्यात्म में श्रद्धा होती है ।
▶ श्रद्धा के बाद भगवान के भक्ति में, भजन में लगे हुए वैष्णव जन, साधु जन का वह संग करता है। साधु जन का संग करने से उसको अनेक साधु वैष्णव में से किसी एक का आश्रय ग्रहण करना पड़ता है ।
▶ क्योंकि अध्यात्म में भी अनेक मत हैं । अनेक संप्रदाय हैं । अनेकों उपास्य हैं । अनेक उपासना हैं । उन सब में से कुछ एक चुनना पड़ता है ।
▶ यह कोई बुराई नहीं है । यह ईश्वर द्वारा प्रदत्त जीव की रुचि के लिए विविधता प्रदान की गई है ।
▶ जैसे शिक्षा जगत में कॉमर्स है । साइंस है । आर्ट्स है । मैनेजमेंट है । इंजीनियरिंग है। टेक्निकल और बहुत सारे हमारे पास विकल्प उपलब्ध हैं ।
▶ उसी प्रकार अध्यात्म में भी इन सब विकल्पों में से एक विकल्प चुन कर अपनी रुचि के अनुसार किसी एक वैष्णव साधु के आश्रय में रहना पड़ता है ।
▶ उस साधु को ही शिक्षा गुरु अथवा बाद में दीक्षा गुरु कहते हैं । दीक्षा में सर्वप्रथम वह साधु उस साधक को नाम प्रदान करते हैं ।
▶ उसे नाम दीक्षा बोलते हैं । महामंत्र का नाम साधक को दिया जाता है । उससे उसका चित की शुद्धि होती है । और वह दीक्षित होने की योग्यता प्राप्त करता है ।
▶ कभी-कभी कुछ समय या महीने बाद और कभी-कभी अनेक वर्षों के बाद फिर उसको गोपाल मंत्र दिया जाता है और इसे मंत्र दीक्षा कहते हैं ।
▶ मंत्र दीक्षा के बाद फिर एक वेश दीक्षा होती है । वेश दीक्षा का अर्थ बाबाजी बन्ना । उसकी ग्रह्स्थ से दूरी हो जाती है । वह विरक्त बाबा रूप में रहता है ।
▶ जब सनातन गोस्वामी पाद की हम जीवन चरित्र पढ़ते हैं तो हम देखते हैं कि उनकी नाम दीक्षा और उनकी मंत्र दीक्षा तो पहले ही उनके कुलगुरु संभवत श्री सर्वज्ञ शिरोमणी नाम के किन्ही वैष्णव द्वारा या परंपरा अनुसार उनके कुल के किसी गुरु द्वारा पहले ही हो चुकी थी ।
▶ महाप्रभु ने उन्हें शक्ति प्रदान करनी थी क्योंकि सनातन ही सबसे बड़े सबसे वयोवृद्ध गोस्वामी थे । जब सनातन महाप्रभु से मिले हैं । तब उनकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी और एक अलग प्रकार का दरवेश का वेश था ।
▶ तब महाप्रभु ने चंद्रशेखर से कहकर उनका दाढ़ी कटवाई मस्तक मंडित करवाया और चंद्रशेखर की प्रयोग की हुई धोती के आधे हिस्से से बहिरवास बनाया और आधे में ऊपर का वस्त्र ।यह एक प्रकार से महाप्रभु द्वारा सनातन को दी गई वेश दीक्षा ही थी ।
▶ श्रीसनातन की मंत्र दीक्षा अवश्य कुलगुरु से हुई लेकिन सनातन की वेश दीक्षा साक्षात महाप्रभु द्वारा संकेत रूप में हुई ।
▶ और महाप्रभु द्वारा वेश दीक्षा होने के पश्चात सनातन धाम में आए और वहां से षड गोस्वामी पाद का एक स्तंभ प्रारंभ हुआ और उन पर जो कृपा हुई और उन्होंने जो हम जीवो पर और गोस्वामी पाद पर कृपा की, उसको हम आप सभी लोग जानते ही है ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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