✔ *महिमा के बिना श्रद्धा असंभव* ✔
▶ किसी भी व्यक्ति वस्तु की जब तक हमें महिमा का ज्ञान ना हो तब तक हम उसे सामान्य रुप में लेते हैं ।
और किसी ने कहा इनको नमस्ते करो तो हम नमस्ते कर देते हैं । लेकिन जब हमें पता चलता है कि यह कोई
▶ अच्छा संत है या
कोई राजनेता है या
हमारी कॉलोनी का चेयरमैन है या
हमारे पिताजी का मित्र है या
यह एक सज्जन व्यक्ति है
▶ तब हम उसको हृदय से प्रणाम करते हैं । उसके प्रति हमारी सम्मान की दृष्टि हो जाती है । यही कारण है कि एक व्यक्ति को बाहर के अनेकों लोग प्रणाम करते हैं ।
▶ और घर वाले उसे पागल समझते हैं । घर वालों को उसकी महिमा का ज्ञान नही होता है ।
▶ यही स्थिति अध्यात्म जगत में भी है । मेरे कहने से आप महामंत्र की माला करना शुरू हो गए, बहुत अच्छी बात है ।
▶ लेकिन साथ-साथ यदि आपको
▶ महामंत्र की महिमा का ज्ञान हो जाए
श्री कृष्ण के गुणों का ज्ञान हो जाए
उनकी करुणा का ज्ञान हो जाए
▶ उनके भजन करने पर क्या आनंद मिलता है उसका ज्ञान हो जाए
▶ वह सृष्टि के नियंता परम ब्रह्म है यह ज्ञान हो जाए
▶ वह सारे दुखों को एक क्षण में मिटा सकते हैं अपितु सर्वाधिक सुख या आनंद को प्राप्त करा सकते हैं
उनकी एक कृपा कोर से हमारा जीवन आनंदमय हो सकता है
▶ उनके नाम से हमारा हृदय शुद्ध हो सकता है हमारा चित्त रूपी दर्पण जो जन्म जन्म से मैला है वह साफ हो सकता है
▶ यह सब महिमा यदि हमें पता लग जाए और फिर हम कृष्ण के नाम का जप करें । कृष्ण का भजन करें । कृष्ण का पूजन करें । तो बात कुछ और ही होगी ।
अब प्रश्न उठता है कि यह महिमा का पता कैसे लगे ।
▶ मोटे तौर पर इसके 2 उपाय हैं । श्रवण और दूसरा ग्रंथ अध्ययन । ग्रंथ भी प्रामाणिक लेखकों द्वारा लिखे हुए ।
श्रवण में एक वक्ता चाहिए सौ पचास श्रोता चाहिए । आजकल वक्ता भी प्रोफेशनल हो गए हैं उनको भेंट, पैसे, यश से मतलब है । किसी का कल्याण हो न हों ।
▶ उनको आडंबर चाहिए । उनको मंच् चाहिए उनको बड़ा पंडाल चाहिए । उनको बेहतर यजमान चाहिए ।
फिर वह तीन से पांच कथा कह रहे हैं । आपका ऑफिस का टाइम है तो श्रवण में अनेक कठिनाइयां हैं ।
▶ ग्रंथ अध्ययन बहुत ही सहज है । लाखों रुपए खर्च होते ही नहीं । सौ दो सौ के ग्रंथ वरिष्ठ वैष्णव से पूछ कर ले आइए ।
उसको दिन में जब आपको सुविधा मिले एक एक पेज । दो पेज पढ़िए समझें तो उससे आपको
▶ कृष्ण की
कृष्ण नाम की
कृष्ण धाम की
कृष्ण के भक्तों की
कृष्ण के भजन की
कृष्ण के दर्शन की
कृष्ण के स्मरण की
कृष्ण के कीर्तन की
▶ महिमा का ज्ञान हो जाएगा । उस महिमा का ज्ञान होने पर आप जो भी करते हैं उसमें श्रद्धा की वृद्धि होगी, अपितु रुचि होने लग जाएगी ।
रुचि होते-होते उसमें आसकती हो जाएगी । कल्याण तो बिना महिमा जाने भी हो जाएगा, लेकिन महिमा जानकर यदि हम साधन में लगेंगे तो हमारी स्पीड , हमारी डेंसिटी , बहुत अधिक हो जाएगी ।
▶ जिस पर अति शीघ्रता से हम अपने उद्देश्य श्री कृष्ण चरण सेवा को प्राप्त कर लेंगे ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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