✔ *आध्यात्मिक माने क्या* ✔
▶ तीन चर्चाएं हैं ।
▶ आधिदैविक,
जिसमें देवी देवताओं के बारे में चर्चा है ।
▶ आधिभौतिक,
जिसमें शरीर, पंचभौतिक इस जगत, कार, बंगले, सुख-समृद्धि आदि के बारे में चर्चा है ।
▶ आध्यात्मिक
इसमें यह जो हमारी आत्मा है जिसको हम दार्शनिक भाषा में जीव कहते हैं और जो जीव श्रीकृष्ण का अंश है, उस जीवात्मा की चर्चा है ।
▶ यह जीवात्मा हमारे पाप पुण्य और कर्मों के कारण विभिन्न शरीर धारण करता हुआ, हमारे साथ-साथ भटकता है ।
▶ इसके कल्याण की चर्चा ही आध्यात्मिक चर्चा है। आत्मा शब्द एकदम नितांत अपने से अर्थ रखता है ।
▶ आध्यात्मिक में भी फिर अनेक प्रकार के लोग हैं । अध्यात्म को पढ़ते हैं, सुनते हैं, जान लेते हैं, बस इतना काफी है ।
▶ दूसरे लोग अध्यात्म को सुनते हैं , पढ़ते हैं जान लेते हैं और दूसरों पर घटाते हैं । दासाभास ऐसा तो नहीं करते । हमारे गुरु जी ने तो कभी माला झोली हाथ में नहीं ली ।
▶ फलां पंडित जी तो तिलक ही नही लगाते हैं, फ़लां व्यक्ति ऐसा नहीं करता है, वैसा नहीं करता है । अर्थात अध्यात्मज्ञान को दूसरों पर घटाते हैं ।
▶ तीसरे जो लोग हैं वह इस के नाम को सार्थक करते हैं वह अध्यात्म को पढ़ते हैं, सुनते हैं, समझते हैं और अपने आप पर घटाते भी हैं ।
▶ और अपनी प्रगति के लिए उस पर आचरण भी करते हैं, एक्शन भी करते हैं । ऐसे ही लोग अध्यात्म का वास्तविक लाभ उठाते हुए अपने इस आत्मा को भगवान श्री कृष्ण की चरण सेवा में लगा कर अपने इस मानव जीवन को सफल करते हैं ।
▶ कभी भी हम कुछ भी पढ़े, या समझे, उसको अपने पर घटाएं । यही है अध्यात्म । आत्म शब्द है यहाँ ।
▶ आत्म का अर्थ है अपना । अपने पर घटाना । जो दूसरे पर घटाते हैं , वह आध्यात्मिक नहीं है
▶ दूसरे की और तो देखना ही नहीं । वह जो कर रहा है, उसे करने दो और अध्यात्म में
▶ पति पत्नी
पुत्र पिता
पड़ोसी अड़ोसी
▶ यह सब अपने से पृथक हैं । शरीर भी अपना नहीं है । "शरीर माद्यम खलु धर्म साधनम" ।
▶ शरीर में जो हाथ पैर हमें दिए हैं और यह जो संसार है हमारे इर्द-गिर्द इसका लाभ उठाते हुए इसका प्रयोग करते हुए हमें आत्म कल्याण करना है ।
▶ और जो आत्म कल्याण करता है वही आध्यात्मिक है । चेक करें हम कितने आध्यात्मिक हैं ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
No comments:
Post a Comment