Monday, 3 October 2016

शरीर ढकना है । सजाना नही

​​​​​​​✔  *शरीर ढकना है । सजाना नही*    ✔

▶ जय श्री राधे । दासाभास सहित हम सबको यह शरीर और संसार भजन के लिए मिला है ।

▶ इसी शरीर में रहकर इसी संसार में रहकर हमें भगवद् भजन भगवद्चरण सेवा प्राप्त करनी है

 ▶ "शरीर मादयम खलु धर्म साधनम"

▶ संसार को भी दुखालय कहां गया, लेकिन इसका सबसे बड़ा सुख यह है कि इसी संसार में रहकर भगवतचरण प्राप्ति होती है ।

▶ यह दुखालय कब बनता है ,  यह शरीर भी बाधा कब बनता है,  तब बनता है जब दासाभास सहित हम सब इस संसार और शरीर को प्रयोजन से अधिक अतिवादिता में आकर विषय भोग में लगा देते हैं ।

▶ उदाहरण लीजिए । जैसे शरीर को हमें ढकना है। ढकने के लिए कपड़े हैं । कोई भी ऐसा वस्त्र जिससे शरीर सहजता से ढक जाए ।
यह है प्रयोजन ।

▶ अब इसके बाद शुरू होती है विषय की बात । पैंट के साथ कुर्ता नहीं पहनना, धोती के साथ टी शर्ट नहीं पहनी, पीले कुर्ते के साथ पीली लेगिंग पहनी है आदि ।

▶ यह थोड़ा लंबा है , यह थोड़ा छोटा है , यह प्रेस किया हुआ नहीं है । अरे दासाभास ! आजकल तो इसका कोई फैशन ही नहीं है ।

▶ यह सारी चीजें प्रयोजन से ऊपर गई । और जब प्रयोजन से ऊपर शरीर+संसार जाएगा तो हमारी वृत्तियां, हमारा केंद्र, हमारा चिंतन उसी में रहेगा ।

▶ इस संसार में हमें रहना है । दो समय का भोजन , थोड़े से वस्त्र, थोड़ा सा एकांत स्थान ऊंचा हो नीचा हो । थोड़ी अनुकूलता ।

▶ बस इतना ही संसार का प्रयोजन है । ऐसे ही इतना ही शरीर का प्रयोजन है ।  हम आप दासाभास सभी विषय में फसे हुए हैं । और प्रयोजन से 20।20 गुना हम लोग शरीर और संसार में उलझे हुए हैं ।

▶ एक दिन में नहीं होगा दासाभास सहित हम सब को चेष्ठा रखनी है । दृष्टी रखनी है कि हम सब संसार शरीर को भजन में लगाएं । क्योंकि यह संसार और शरीर विषय भोग के लिए नहीं मिला है  । यह भजन के लिए मिला है ।

▶ भजन के साथ-साथ संसार और शरीर से संतुलन बनाए और प्रयास में यह रहे कि भजन बढ़ता जाए और संसार और शरीर की यह जो अतिवादिता है, विषयवादिता है । यह छूटती जाए ।

▶ इसमें एक जीवन भी लग सकता है । दो जन्म ही लग सकते हैं और हमारी चेष्टा बलवती हो तो दो । चार । दस । बीस साल में भी यह काम हो सकता है ।

▶ अतः मन में, चिंतन में इसे रखना होगा । दासाभास भी रखेगा । आप भी रखिए तो दोनों मिलकर एक ना एक दिन हम सब होंगे कामयाब ।

​🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn​
 
 
शरीर ढकना है । सजाना नही

No comments:

Post a Comment