✔ *क्या कहेंगे इसको* ✔
▶ मेरे एक निकट के रिश्तेदार हैं, दीक्षित भी हैं, भजन भी करते हैं, विद्वान भी हैं । पूज्य पिताजी के साथ उन्होंने ग्रंथ लेखन में सहायता भी की है । 2 । 4 ग्रंथों का अनुवाद संपादन भी किया है ।
▶ ग्रहस्थ हैं । अच्छी किसी सरकारी सेवा में थे । वहां से अवकाश मुक्त हुए । 40,000 रु लगभग पेंशन आती है । दो पुत्र हैं , दोनों पर्याप्त पैकेज में कार्यरत हैं ।
▶ जब रिटायर हुए तब मैंने कहा कि अब तो आपके पास समय है, आप अपना समय ग्रन्थसेवा में दीजिए
▶ उन्होंने कोई रुचि नहीं दिखाई । उसके बाद चर्चा हुई । मैंने कहा चलिए 100000 नाम करिए , अध्ययन करिए , जप करिए । सेवा पूजा करिए । सत्संग करिए । भजन करिए ।
▶ अब आपकी आर्थिक परिस्थिति ठीक है । पति-पत्नी के लिए 40,000 रुपए महीना पर्याप्त है । मकान अपना है ।
▶ वह एक डेढ़ साल तो घर पर रहे भजन वजन पर केंद्र किया नहीं । सामान्य जो एक आधा घंटा प्रतिदिन हम आप लोग करते हैं । वैसे किया और दिन भर अपितू घर गृहस्थी की बातों में महिलाओं की दखलंदाजी में रहते थे
▶ बाद में उन्होंने एक प्राइवेट जॉब ज्वाइन किया जो आज तक कर रहे हैं ₹30000 प्राप्त होते हैं सुबह 8:00 बजे जाते हैं रात्रि 8:00 बजे घर आते हैं
▶ अब कहते हैं गिरिराज, भजन के लिए समय ही नहीं मिलता । मैं क्या करुं । इस परिस्थिति में इसे हम आप क्या कहेंगे ।
▶ अपने पैर पर स्वयं कुल्हाड़ी मारना । जब पर्याप्त राशि पेंशन में मिल रही है । पर्याप्त समय है । पूरा दिन आप खाली हैं । तो आपने भजन की तरफ अपनी चेष्टाओं को नहीं लगाया ।
▶ लोग कहते हैं सारा दिन भजन भी कितना करें । मैं कहता हूं कि भजन की इतनी विधाएं हैं कि दिन और रात भी कम पड़ती है भजन की विधाओं में ।
▶ जप माला है
▶ श्री विग्रह सेवा है
▶ श्री विग्रह को तीन समय भोग लगाना है
▶ तुलसी सेवा है
▶ आसपास के मंदिरों में दर्शन सेवा है
▶ ठाकुर जी का श्रंगार बनाना है
▶ महीने में एक दो बार वृंदावन आना है
▶ कीर्तन करना है
▶ ग्रंथों का अध्ययन करना है
▶ विभिन्न ग्रंथों का पाठ करना है इत्यादि
इतनी विधाएं हैं कि समय कम पड़ता है । लेकिन आवश्यकता है इस विषय में चिंतन करने की और अपनी वृत्तिको भजन के अंगों में लगाने की ।
लगभग हर चार छह दिन में ठाकुर के उत्सव या गोस्वामी पाद के तिरोभाव उत्सव आते हैं । उत्सव वाले दिनों में उन गोस्वामी पाद के चित्रपट का विशेष पूजन करना । उनके चरित्र का अध्ययन करना इत्यादि इतना काम है
जिस प्रकार एक घर की महिला को 1 मिनट का समय नहीं मिलता है उसी प्रकार यदि हम भजन में लग जाए तो 1 मिनट का समय हमे भी नहीं मिलता है लेकिन ।
वाह रे दुर्भाग्य । समय होते हुए भी हमने फिर उस समय को नौकरी में लगा दिया और अपने महत्व पूर्ण जीवन को भजन के अतिरिक्त फिर पैसे कमाने में गंवा दिया ।
और वह पैसा आवश्यकता से आज भी इतना अधिक है कि पड़ा रह जाना है । क्योंकि धन का सुख भोगना भी प्रारब्ध के वशीभूत होता है । और सोच के वशीभूत होता है ।
इसलिए हम आप सदा चेष्टा शील रहे कि समय को यथासंभव भजन में । भक्ति के अंगों में लगाकर अपने जीवन को सफल करें ।
यह बात समझ आए इसके लिए आवश्यक है कि हमारा चित्त साफ हो । चित्त साफ होने के लिए आवश्यक है कि हम नियम से संख्या पूर्वक महामंत्र का जाप करें ।
महामंत्र का नियम पूर्वक , संख्या पूर्वक , श्रद्धा पूर्वक जाप करने से यह तथ्य समझ आ जाएंगे और यदि समझ आ गए तो आचरण में भी आ जाएंगे और आचरण में आ गए तो कल्याण भी हो जाएगा
क्या सोचते हैं आप ??
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
▶ मेरे एक निकट के रिश्तेदार हैं, दीक्षित भी हैं, भजन भी करते हैं, विद्वान भी हैं । पूज्य पिताजी के साथ उन्होंने ग्रंथ लेखन में सहायता भी की है । 2 । 4 ग्रंथों का अनुवाद संपादन भी किया है ।
▶ ग्रहस्थ हैं । अच्छी किसी सरकारी सेवा में थे । वहां से अवकाश मुक्त हुए । 40,000 रु लगभग पेंशन आती है । दो पुत्र हैं , दोनों पर्याप्त पैकेज में कार्यरत हैं ।
▶ जब रिटायर हुए तब मैंने कहा कि अब तो आपके पास समय है, आप अपना समय ग्रन्थसेवा में दीजिए
▶ उन्होंने कोई रुचि नहीं दिखाई । उसके बाद चर्चा हुई । मैंने कहा चलिए 100000 नाम करिए , अध्ययन करिए , जप करिए । सेवा पूजा करिए । सत्संग करिए । भजन करिए ।
▶ अब आपकी आर्थिक परिस्थिति ठीक है । पति-पत्नी के लिए 40,000 रुपए महीना पर्याप्त है । मकान अपना है ।
▶ वह एक डेढ़ साल तो घर पर रहे भजन वजन पर केंद्र किया नहीं । सामान्य जो एक आधा घंटा प्रतिदिन हम आप लोग करते हैं । वैसे किया और दिन भर अपितू घर गृहस्थी की बातों में महिलाओं की दखलंदाजी में रहते थे
▶ बाद में उन्होंने एक प्राइवेट जॉब ज्वाइन किया जो आज तक कर रहे हैं ₹30000 प्राप्त होते हैं सुबह 8:00 बजे जाते हैं रात्रि 8:00 बजे घर आते हैं
▶ अब कहते हैं गिरिराज, भजन के लिए समय ही नहीं मिलता । मैं क्या करुं । इस परिस्थिति में इसे हम आप क्या कहेंगे ।
▶ अपने पैर पर स्वयं कुल्हाड़ी मारना । जब पर्याप्त राशि पेंशन में मिल रही है । पर्याप्त समय है । पूरा दिन आप खाली हैं । तो आपने भजन की तरफ अपनी चेष्टाओं को नहीं लगाया ।
▶ लोग कहते हैं सारा दिन भजन भी कितना करें । मैं कहता हूं कि भजन की इतनी विधाएं हैं कि दिन और रात भी कम पड़ती है भजन की विधाओं में ।
▶ जप माला है
▶ श्री विग्रह सेवा है
▶ श्री विग्रह को तीन समय भोग लगाना है
▶ तुलसी सेवा है
▶ आसपास के मंदिरों में दर्शन सेवा है
▶ ठाकुर जी का श्रंगार बनाना है
▶ महीने में एक दो बार वृंदावन आना है
▶ कीर्तन करना है
▶ ग्रंथों का अध्ययन करना है
▶ विभिन्न ग्रंथों का पाठ करना है इत्यादि
इतनी विधाएं हैं कि समय कम पड़ता है । लेकिन आवश्यकता है इस विषय में चिंतन करने की और अपनी वृत्तिको भजन के अंगों में लगाने की ।
लगभग हर चार छह दिन में ठाकुर के उत्सव या गोस्वामी पाद के तिरोभाव उत्सव आते हैं । उत्सव वाले दिनों में उन गोस्वामी पाद के चित्रपट का विशेष पूजन करना । उनके चरित्र का अध्ययन करना इत्यादि इतना काम है
जिस प्रकार एक घर की महिला को 1 मिनट का समय नहीं मिलता है उसी प्रकार यदि हम भजन में लग जाए तो 1 मिनट का समय हमे भी नहीं मिलता है लेकिन ।
वाह रे दुर्भाग्य । समय होते हुए भी हमने फिर उस समय को नौकरी में लगा दिया और अपने महत्व पूर्ण जीवन को भजन के अतिरिक्त फिर पैसे कमाने में गंवा दिया ।
और वह पैसा आवश्यकता से आज भी इतना अधिक है कि पड़ा रह जाना है । क्योंकि धन का सुख भोगना भी प्रारब्ध के वशीभूत होता है । और सोच के वशीभूत होता है ।
इसलिए हम आप सदा चेष्टा शील रहे कि समय को यथासंभव भजन में । भक्ति के अंगों में लगाकर अपने जीवन को सफल करें ।
यह बात समझ आए इसके लिए आवश्यक है कि हमारा चित्त साफ हो । चित्त साफ होने के लिए आवश्यक है कि हम नियम से संख्या पूर्वक महामंत्र का जाप करें ।
महामंत्र का नियम पूर्वक , संख्या पूर्वक , श्रद्धा पूर्वक जाप करने से यह तथ्य समझ आ जाएंगे और यदि समझ आ गए तो आचरण में भी आ जाएंगे और आचरण में आ गए तो कल्याण भी हो जाएगा
क्या सोचते हैं आप ??
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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