Tuesday, 25 October 2016

धाम कृपा कैसे हो

धाम कृपा कैसे हो


​​✔  *धाम कृपा कैसे हो*    ✔

▶ ब्रजवास करने वाले वैष्णवो के लिए तीन महत्वपूर्ण बातें बताई गई ।

▶ प्रिया लाल जी की सेवा, कृपा से ही प्राप्त होती है और कृपा नियम पूर्वक धाम वास करने से होती है ।

▶ साधन का फल, सभी साधनों का फल धामवास, और धाम वास का फल कृपा । कृपा का फल प्रिया लाल जी के चरणों की सेवा ।

▶ लेकिन हम जो धामवास करते हैं, वह पांच नंबर का धाम वास है । संपूर्ण धाम वास के लिए 3 नियमों का पालन करना आवश्यक है ।

▶ पहला है सुअल्प भोजन ।

▶ शरीर रक्षा होती रहे बस, इसके लिए रुखा सूखा किसी भी प्रकार पेट भर लेना वो भी अल्प अर्थात मात्र म कम ।

▶ भोजन का, जिह्वा का रस यदि छूट जाएगा तो शब्द, रस रूप, गंध, स्पर्श यह पांचों विषय अपने आप छूट जाएंगे , ऐसा शास्त्रीय वचन है ।

▶ धाम में रहते हुए, साथ ही मैं तो कहूंगा धामवास की इच्छा करते हुए भी, जहां भी हम हैं, हम अपने भोजन में शुद्धि लाएं ।

▶ रजोगुणी तमोगुणी भोजन से हमारा सत्यानाश हो रहा है और होना ही है ।

▶ दूसरा है स्वतंत्रता

▶ धाम वास तो  कर रहे हैं लेकिन अपनी जान को 50 झंझट हमने लगाए हुए हैं ।

▶ भजन में बैठे हैं चित लगने को हुआ तभी हमें ध्यान आता है कि हमें 2:00 बजे वहां जाना है 4:00 बजे वहां जाना है ।

▶ अतः साधक बाह्य विषयों से बिल्कुल स्वतंत्र हो उसके दिमाग में भजन भजन भजन । भजन की प्राथमिकता हो । भजन मैं उसका बंधन हो ।अन्य बाह्य लौकिक विषयों से वह स्वतंत्र हो तभी वह धाम की कृपा प्राप्त कर सकता है ।

▶ तीसरा है आनुगत्य

▶ आनुगत्य का अर्थ सदगुरुदेव दीक्षा गुरु देव अथवा शिक्षा गुरुदेव अथवा किसी श्रेष्ठ वैष्णव की आनुगत्य में भजन किया जाए ।

▶ मनमाने ढंग से ठाकुर के श्री विग्रह को इधर उधर लेकर डोलना । वेश बनाना । मनमानी कल्पनाएं करना । मनमानी बातें करना । मेरे ठाकुर एवम मेरे बीच में अब कोई नहीं है ।

▶ इत्यादि इत्यादि से धाम की कृपा प्राप्त नहीं होगी । ध्यान रहे धामवास सभी साधनों का फल है और यह साध्य भी है ।

▶ अर्थात धाम वास मिल गया और उपरोक्त नियमानुसार आचरण हो गया तो समझिए हमें जीवन में जो पाना है वह मिल गया ।

▶ अतः कठिन अवश्य है लेकिन असंभव नहीं । हम यदि धाम में नहीं भी हैं तो भी इन नियमों का यदि पालन करते रहें तो शीघ्र ही हम पर धाम की कृपा होकर धाम में वास मिल जाएगा और धाम में वास मिल गया तो फिर दिल्ली दूर नहीं है ।

▶ आदरणीय गो श्री अच्युतलाल भट्ट जी कथा सार


🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

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