✔ *सारे कलेश की जड़ भोजन* ✔
▶ हम भोजन को बहुत हल्के में लेते हैं लेकिन भोजन का हमारे जीवन पर कितना, अरे कितना क्या, पूरा का पूरा प्रभाव पड़ता है ।
▶ हमारा स्वभाव
▶ हमारा चिंतन
▶ हमारा आचरण
▶ हमारा क्रोध
▶ हमारा लोभ
▶ हमारा काम
▶ हमारी ईर्ष्या
▶ हमारा स्वास्थ्य
▶ हमारे मन की चंचलता
▶ यह सब भोजन के ही कारण है । शरीर स्वस्थ रहे और शरीर से भजन होता रहे एक वैष्णव्ं को इतना ही भोजन लेना खाना बनाना चाहिए ।
▶ भगवान के भोग के नाम पर जो हम नाटक करते हैं वह अपने स्वाद के लिए ही होता है ।
▶ भगवान में इतनी ही भावना ह तोै एक थाली भगवान के लिए बनाईये । भगवान को भोग रखिए और एक-एक कनिका पूरे घर में आसपास में बांट दीजिए । स्वयं वही सादा फुलका सादी सब्जी खाइए ।
▶ यदि हमारा भोजन तामसिक होगा तो तमोगुण हावी होगा और तमोगुण के जो कार्य हैं ईर्ष्या द्वेष काम क्रोध यह हमारी दिनचर्या में भारी रहेंगे ।
▶ यदि हमारा भोजन राजसिक होगा तो भोगने की प्रवृत्ति, मन की चंचलता, मन की भटकन हमारी दिनचर्या में रहेगी ।
▶ यदि भोजन सात्विक होगा तो हम शांत होंगे चित्त्त शांत होगा अंतः करण स्वच्छ होगा चंचलता नहीं रहेगी और भजन में मन लगेगा ।
▶ भजन के साथ साथ किसी भी कार्य में मन की स्थिरता सात्विक भोजन से रहेगी ।
▶ अतः भोजन हमारे जीवनचर्या की जड़ है और भोजन से पहले शुद्ध धन भोजन की जड़ है इन दोनों प्वाइंट्स पर यदि हम ध्यान रखें ।
▶ एक दिन में नहीं होगा धीरे धीरे केंद्रित करें ।अपने धन और अपने भोजन को यदि हम शुद्ध कर लें तो बहुत अधिक अंतर होगा ।
▶ जूठा खाना होटल में खाना आदि-आदि अनेक बार पहले भी कहा जा चुका है । अतः आज से ही अपने भोजन को शुद्ध करें ।
▶ शरीर के निर्वाह लायक खाएं । रस के लिए । स्वाद के लिए कभी न खाएं । भूख से आधा खाएं । कम खाएं । बाकी जल पीकर भूख को मिटाए । अंतर महीने दो महीने में दिखने लगेगा । मुझे दिख रहा है ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
▶ हम भोजन को बहुत हल्के में लेते हैं लेकिन भोजन का हमारे जीवन पर कितना, अरे कितना क्या, पूरा का पूरा प्रभाव पड़ता है ।
▶ हमारा स्वभाव
▶ हमारा चिंतन
▶ हमारा आचरण
▶ हमारा क्रोध
▶ हमारा लोभ
▶ हमारा काम
▶ हमारी ईर्ष्या
▶ हमारा स्वास्थ्य
▶ हमारे मन की चंचलता
▶ यह सब भोजन के ही कारण है । शरीर स्वस्थ रहे और शरीर से भजन होता रहे एक वैष्णव्ं को इतना ही भोजन लेना खाना बनाना चाहिए ।
▶ भगवान के भोग के नाम पर जो हम नाटक करते हैं वह अपने स्वाद के लिए ही होता है ।
▶ भगवान में इतनी ही भावना ह तोै एक थाली भगवान के लिए बनाईये । भगवान को भोग रखिए और एक-एक कनिका पूरे घर में आसपास में बांट दीजिए । स्वयं वही सादा फुलका सादी सब्जी खाइए ।
▶ यदि हमारा भोजन तामसिक होगा तो तमोगुण हावी होगा और तमोगुण के जो कार्य हैं ईर्ष्या द्वेष काम क्रोध यह हमारी दिनचर्या में भारी रहेंगे ।
▶ यदि हमारा भोजन राजसिक होगा तो भोगने की प्रवृत्ति, मन की चंचलता, मन की भटकन हमारी दिनचर्या में रहेगी ।
▶ यदि भोजन सात्विक होगा तो हम शांत होंगे चित्त्त शांत होगा अंतः करण स्वच्छ होगा चंचलता नहीं रहेगी और भजन में मन लगेगा ।
▶ भजन के साथ साथ किसी भी कार्य में मन की स्थिरता सात्विक भोजन से रहेगी ।
▶ अतः भोजन हमारे जीवनचर्या की जड़ है और भोजन से पहले शुद्ध धन भोजन की जड़ है इन दोनों प्वाइंट्स पर यदि हम ध्यान रखें ।
▶ एक दिन में नहीं होगा धीरे धीरे केंद्रित करें ।अपने धन और अपने भोजन को यदि हम शुद्ध कर लें तो बहुत अधिक अंतर होगा ।
▶ जूठा खाना होटल में खाना आदि-आदि अनेक बार पहले भी कहा जा चुका है । अतः आज से ही अपने भोजन को शुद्ध करें ।
▶ शरीर के निर्वाह लायक खाएं । रस के लिए । स्वाद के लिए कभी न खाएं । भूख से आधा खाएं । कम खाएं । बाकी जल पीकर भूख को मिटाए । अंतर महीने दो महीने में दिखने लगेगा । मुझे दिख रहा है ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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